विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वायु प्रदूषण हर साल करीब 70 लाख लोगों की जान ले लेता है। जिनमें से 7 फीसदी मौतें निमोनिया के कारण होती हैं। वहीं दुनिया की 37 फीसदी आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहां वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा तय मानक से काफी अधिक है। वहीं दूसरी ओर दुनिया भर में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण डीजल से होने वाला उत्सर्जन है। जिसमें कालिख और एरोसोल प्रमुखता से होते हैं जोकि राख, धातु के कण, सल्फेट्स और सिलिकेट्स से बने होते हैं। डीजल से जो प्रदूषण होता है, उसमें बहुत ही महीन कण उत्सर्जित होते हैं। उसके संपर्क में आने से लोगों में न्यूमोनिया होने कि सम्भावना कहीं अधिक बढ़ जाती है।
गौरतलब है कि न्यूमोकोकल संक्रमण (निमोनिया), बीमारियों की एक व्यापक श्रृंखला का प्रतिनिधित्व करता है जो स्ट्रैपटोकोकस निमोनिया (एस. निमोनिया / निमोकोकस) की वजह से होता है। मूलतः स्ट्रैपटोकोकस जीवाणु निमोनिया और मैनिंजाइटिस बीमारी का सबसे आम कारण है। इसके साथ ही यह दुनिया भर में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों और बुजुर्गों में संक्रामक रोग से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है।
सामान्य से बैक्टीरिया को खतरनाक बीमारी में बदल देता है प्रदूषण
आश्चर्य की बात है कि यह बैक्टीरिया अधिकांश स्वस्थ लोगों में नाक और गले में मौजूद रहता है, और उन्हें इस बात का पता भी नहीं चलता न ही किसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं। लेकिन अगर यही बैक्टीरिया फेफड़े और रक्त तक पहुंच जाता है, तो कई हानिकारक बीमारियों का कारण बनता है। आखिर नुकसान न करने वाला यह बैक्टीरिया कैसे एक जानलेवा बीमारी का रूप ले लेता है इसे समझने के लिए लिवरपूल, क्वीन मैरी विश्वविद्यालय, लंदन और ट्रिनिटी कॉलेज डबलिन के शोधकर्ताओं द्वारा एक व्यापक अध्ययन किया गया है। जोकि जर्नल ऑफ एलर्जी एंड क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। जिसमें उन्होने न्यूमोकोकल के विकास में डीईपी (डीजल से होने वाले प्रदूषण) और उसकी भूमिका की भी जांच की है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इंसान और चूहे दोनों की कोशिकाओं पर डीजल से होने वाले प्रदूषण के प्रभाव को समझने का प्रयास किया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि डीईपी के संपर्क में आने के बाद मैक्रोफेज का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।
गौरतलब है कि मैक्रोफेज हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली का हिस्सा होते हैं। जोकि एक प्रकार का श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं। यह शरीर में बैक्टीरिया के संक्रमण को नियंत्रित करते हैं और मौजूद गंदगी को हटाते हैं। डीईपी के कारण मैक्रोफेज की न्यूमोकोकस बैक्टीरिया को खत्म करने की क्षमता घट जाती है। जिसके चलते श्वसन नली में बैक्टीरिया अधिक आसानी से जीवित रह सकता है और फेफड़ों पर आक्रमण करता है। इसके कारण सूजन पैदा हो जाती है, जिससे बैक्टीरिया रक्त में पहुंच जाता है, और गंभीर बीमारी का रूप धारण कर लेता है।
डॉ रेबेका शियर्स, जोकि इस अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता हैं ने बताया कि "हमारे अध्ययन से पता चलता है कि किस तरह डीईपी के संपर्क में आने से एक हानिरहित न्यूमोकोकल बैक्टीरिया, निमोनिया जैसी गंभीर बीमारी का रूप ले लेता है।"