अब मूर्ख दिवस की बजाए 1 अप्रैल को स्वच्छ उत्सर्जन के लिए मील का पत्थर मान जाएगा। 1 अप्रैल 2018 को दिल्ली द्वारा कदम उठाए जाने के बाद अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ने स्वच्छ परिवहन ईंधन के लिए चरणबद्ध तरीके से कदम उठाया है। 1 अप्रैल 2020 तक भारत स्टेज VI (बीएस-VI) उत्सर्जन मानकों को पूरा करने वाले वाहनों के लिए रास्ता बनाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
1 मई 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया है (केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के हलफनामे के आधार पर) कि एनसीआर के 23 में से 17 जिलों और आसपास के तीन जिलों यानी, राजस्थान के करौली और धौलपुर और उत्तर प्रदेश के आगरा में 1 अप्रैल, 2019 से बीएस-VI ईंधन की बिक्री शुरू हो जाएगी।
हरियाणा के शेष जिलों- भिवानी, रोहतक, सोनीपत, पानीपत, जींद और करनाल में यह ईंधन अक्टूबर 2019 से मिलना शुरू हो जाएगा। भारत दुनिया का एकमात्र प्रमुख वाहन उत्पादक देश है, जिसने स्टेज वी उत्सर्जन मानकों की जगह सीधे बीएस-IV से बीएस-VI मानक को अपनाया और नए वाहन उत्सर्जन में 80-90 फीसदी की कटौती का लक्ष्य रखा।
आज एनसीआर के लक्षित जिलों में सभी ईंधन रिटेल आउटलेट्स में 10 पीपीएम सल्फर मिला पेट्रोल और डीजल मिलना शुरू हो गया। पहले बीएस- IV ईंधन में सल्फर 50 पीपीएम होता था, यानी अब यह पांच गुना कम हो गया है। सबसे अच्छा उत्सर्जन परिणाम तभी संभव है, जब वाहन और ईंधन दोनों नए मानकों को अपनाएं। केवल स्वच्छ ईंधन बदलने के भी कई लाभ हैं। ये लाभ क्या हैं?
हमारे ऑन-रोड वाहन कम पार्टिकल फैलाएंगे : हमारे सभी वाहन कम कण फैलाएंगे जब उनके टैंक में 10 पीपीएम सल्फर ईंधन होगा। ईंधन में मौजूद सल्फर ऐसे कण बनाने में योगदान देता है।
यूनाइटेड स्टेट्स एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार, “उत्सर्जन को बढ़ाने के लिए डीजल ईंधन में मौजूद सल्फर का योगदान होता है और ईंधन सल्फर के स्तर और कण उत्सर्जन के बीच एक सीधा संबंध है।” जैसे-जैसे सल्फर का स्तर बढ़ता है, सल्फर से संबंधित पार्टिकुलेट मैटर बढ़ता है। इसके विपरीत, यदि सल्फर स्तर कम हो जाता है, तो संबंधित कण उत्सर्जन भी कम हो जाएगा।
सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन एक घातक गैस है जो ईंधन में सल्फर की मात्रा जितना ही खतरनाक है : ईंधन में मौजूद सल्फर भी सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को बढ़ाता है, जो स्मॉग का एक हानिकारक घटक है। इसके अलावा, ऑक्सीजन युक्त डीजल निकास में सल्फर डाइऑक्साइड के कई प्रतिशत सल्फेट कण बन जाते हैं और अति सूक्ष्म कणों के निर्माण में योगदान करते हैं। फेफड़ों में गहराई से घुसने की इनकी क्षमता के कारण इन्हें विशेष रूप से खतरनाक माना जाता है। इस प्रकार, अगर ईंधन में सल्फर का स्तर कम हो जाता है, तो ऑन-रोड लाभ होगा।
10 पीपीएम सल्फर ईंधन, ऑन-रोड डीजल कारों के उत्सर्जन नियंत्रण प्रणाली को अधिक कुशलता से काम करने की अनुमति देते हैं : पुराने, ऑन-रोड, ड्यूटी डीजल वाहन जो बीएस- II से बीएस- IV तक के मानकों को पूरा करते हैं, आमतौर पर मानकों का पालन करने के लिए ऑक्सीकरण उत्प्रेरक के साथ फिट किए गए होते हैं। उच्च सल्फर ईंधन उत्प्रेरक की प्रभावशीलता को कम करता है और सल्फेट्स बनने के कारण यह अतिरिक्त कणों के रूप में उत्सर्जित होते हैं। यह समस्या काफी हद तक कम हो जाएगी और अगर वे बीएस-VI ईंधन पर चलते हैं। इससे ऑन-रोड वाहनों के सिस्टम प्रदर्शन में भी सुधार होगा।
इंजन को कम नुकसान जो उत्सर्जन को कम कर सकते हैं: सल्फर इंजन पर भी नकारात्मक प्रभाव डालता है। कम तापमान पर चलने वाले डीजल इंजनों में उच्च सल्फर सामग्री एक समस्या बन जाती है। ऐसी स्थिति में नमी सल्फर के साथ मिलकर एसिड बनाता है और जंग का निर्माण होता है। आमतौर पर, सल्फर का स्तर जितना कम होता है, इंजन को कम नुकसान होता है। इस तरह, सभी ऑन-रोड वाहनों को अल्ट्रा-लो सल्फर ईंधन से लाभ होता है।
पेट्रोल वाहनों को भी होगा फायदा: पेट्रोल में सल्फर उत्प्रेरक की दक्षता को कम करता है और गर्म निकास गैस ऑक्सीजन सेंसर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। यदि सल्फर का स्तर कम हो जाता है, तो उत्प्रेरक से लैस मौजूदा वाहनों में आमतौर पर उत्सर्जन में सुधार होगा। यूएसईपीए के अनुसार, उत्प्रेरक के प्रयोगशाला परीक्षण ने उच्च सल्फर स्तरों के कारण दक्षता में कमी को दिखाया है। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि सल्फर निकास गैस ऑक्सीजन सेंसर को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है और उन्नत ऑन-बोर्ड डायग्नोस्टिक (ओबीडी) सिस्टम के स्थायित्व को प्रभावित कर सकता है। यूएसईपीए अनुमान बताता है कि गैसोलीन (पेट्रोल) में सल्फर के स्तर को 30 पीपीएम से 10 पीपीएम तक कम करके, 2017 में ऑन-रोड वाहनों से नाइट्रोजन ऑक्साइड का समग्र उत्सर्जन 8 प्रतिशत, कार्बन मोनोऑक्साइड का 8 प्रतिशत कम हो गया है और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों में 3 प्रतिशत की कमी आई है।
उन्नत उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियों के रेट्रो-फिटमेंट का मौका देता है: बीएस-VI डीजल वाहनों में कण उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए उन्नत और परिष्कृत उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियों की आवश्यकता होती है। यदि सड़क पर मौजूद वाहनों में 10 पीपीएम सल्फर ईंधन उपलब्ध हो तो उसे फिट किया जा सकता है। ये उन्नत प्रणाली सल्फर के प्रति बेहद संवेदनशील हैं। 10 पीपीएम सल्फर जैसे स्वच्छ ईंधन ने मौजूदा मॉडल में विशेष रूप से बसों और ट्रकों में इंजन-री-पावरिंग के साथ-साथ सड़क पर उत्सर्जन कम करने के लिए उन्नत उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियों को रेट्रो-फिट करने का अवसर खोल दिया है। लेकिन भारत में उन्नत-उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियों के साथ मौजूदा वाहनों के रेट्रो-फिटमेंट को प्रमाणित करने के लिए कोई रेट्रो-फिटमेंट नीति नहीं है। यह आवश्यक है क्योंकि रेट्रो-फिटमेंट ऑफ-द-शेल्फ समाधान नहीं है।
प्रारंभिक बदलाव की संभावना: पहले से ही, कई कार कंपनियों ने बीएस-VI मानकों को पूरा करने की घोषणा की है, खासकर पेट्रोल सेक्शन में। यदि इसे प्रोत्साहन दिया जाता है, तो कारों, दोपहिया और तिपहिया वाहनों के मॉडल भी इस क्षेत्र में आ सकते हैं। इससे कई पेट्रोल कार मॉडल बीएस-VI मानकों को जल्दी और सस्ती कीमत पर पूरा करने में सक्षम होंगी। अब व्यापक रूप से उपलब्ध स्वच्छ ईंधन के साथ, उच्च सल्फर ईंधन भराई की संभावना कम से कम हो सकती है।
अल्ट्रा-लो सल्फर ईंधन क्यों इतना महत्वपूर्ण है: ईंधन सल्फर उन्नत उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियों की दक्षता को नुकसान पहुंचा सकता है, जो कणों और नाइट्रोज ऑक्साइड को कम करने के लिए बीएस-VI अनुपालन करने वाले वाहनों में लगाए जाएंगे। बीएस-VI वाहनों में डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर 10 पीपीएम सल्फर ईंधन के उपयोग से पार्टिकुलेट मैटर को नियंत्रित करने में 95 प्रतिशत से अधिक दक्ष हो सकते हैं। लेकिन अगर सल्फर से भरपूर ईंधन से बीएस-VI वाहन चलते हैं, तो दक्षता में काफी गिरावट आ सकती है। अध्ययन से पता चलता है कि उत्सर्जन क्षमता 150 पीपीएम सल्फर ईंधन के साथ शून्य तक गिर सकती है और 350 पीपीएम सल्फर ईंधन से कण उत्सर्जन दोगुना से अधिक हो सकता है। सड़क पर मौजूद वाहनों में 50 पीपीएम सल्फर के असर का परिणाम उपलब्ध नहीं है। लगभग शून्य सल्फर ईंधन के उपयोग से सिस्टम कुछ हद तक अपनी मूल दक्षता को ठीक कर सकता है, लेकिन उत्प्रेरक पर सल्फेट भंडारण के कारण रिकवरी में समय लगता है। ईंधन सल्फर सल्फर एसिड के निर्माण के कारण ईजीआर प्रणाली के स्थायित्व और विश्वसनीयता में बाधा डालता है। प्रीमियम घटकों की आवश्यकता और रखरखाव की लागत में वृद्धि के कारण एसिड निर्माण सिस्टम की लागत को बढ़ाता है।
इसी तरह, डीजल वाहनों में एनओ नियंत्रण के लिए फिटेड सेलेक्टिव कैटेलिटिक रिडक्शन (एससीआर) पर सल्फर का प्रभाव हानिकारक हो सकता है। सल्फर एससीआर प्रणालियों में रूपांतरण दक्षता को कम नहीं करता है जैसा कि अन्य उन्नत नियंत्रण प्रौद्योगिकियों में होता है, लेकिन उत्सर्जन अलग-अलग तरीकों से प्रभावित होता है। ईंधन सल्फर डाउनस्ट्रीम ऑक्सीकरण उत्प्रेरक से पीएम उत्सर्जन को बढ़ाएगा। यूरिया-आधारित एससीआर प्रणालियों में सल्फर प्रतिक्रिया अमोनियम बाइ-सल्फेट भी बना सकती हैं, जो गंभीर रूप से सांस को प्रभावित करता है। कुल मिलाकर, ईंधन में उच्च सल्फर का स्तर समय के साथ अधिक गंभीर समस्या का कारण बनता है। गलत ईंधन की संभावना को रोकने के लिए स्वच्छ ईंधन के पक्ष में आवश्यक नीति को अपनाया जाना चाहिए।
तो आइए सुनिश्चित करें कि सभी 1 अप्रैल जहरीले धुंए से सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो।