दिल्ली एनसीआर सहित देश के लगभग सभी बड़े शहरों में पार्टिकुलेट मेटर यानी पीएम का बढ़ता स्तर बच्चों के लिए जानलेवा बना हुआ है। इस जानलेवा पीएम का असर जानने के लिए डाउन टू अर्थ दिल्ली सहित अन्य शहरों से रिपोर्ट कर रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा: जानलेवा पीएम : बच्चों की अटक रहीं सासें, अस्पतालों में लगी हैं लंबी कतारें । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा: सबसे ज्यादा बेहाल हैं राजधानी के पांच साल तक के बच्चे, अस्पतालों में बढ़ी संख्या। इसके बाद आपने गोरखपुर , फरीदाबाद व बिहार के शहरों का हाल पढ़ा, आज पढ़ें भोपाल के गैस पीड़ितों का हाल
दस नवम्बर की सुबह घड़ी में 10 बजकर 43 मिनट हो रहे हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पर्यावरण परिसर के मुख्य द्वार पर लगे बोर्ड में भोपाल का वायु गुणवत्ता सूचकांक 236 दर्शा रहा है। इसका अर्थ यहां की हवा का बेहद खराब होना है। यह स्थिति केवल दस नवम्बर की ही नहीं है।
पिछले 25 दिनों से भोपाल की हवा इस बोर्ड पर इसी तरह के खतरनाक आंकड़े पेश कर रही है। उत्तरी भारत में बिगड़ते पर्यावरण की खबरों और हरा—भरा झीलों का शहर कहे जाने वाले भोपाल शहर के वाशिंदों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। ज्यादा इसलिए क्योंकि यह वह शहर है जिसने भोपाल गैस त्रासदी का दंश सहा है, और इसका असर लोगों पर त्रासदी के चौथे दशक में भी दिखाई दे रहा है।
फिलहाल बिगड़े हुए पर्यावरण का लोगों की सेहत पर असर जानने डाउट टू अर्थ भोपाल गैस त्रासदी वाले इलाके में पहुंचा। आमतौर पर साफ रहने वाली राजधानी की फिजा में धूल और धुआं ज्यादा महसूस हो रहा है।
विधानसभा के चुनावी माहौल में इलाका चुनावी झंडों—बैनरों से पटा है, माइक से घोषणाएं आरोप प्रत्यारोप हैं, वाहनों पर धूलकणों की परत चढ़ी नजर आ रही है, लेकिन पिछले चुनावों में गैस पीड़ितों की लड़ाई का मुद्दा इसचुनाव से पूरी तरह से गायब नजर आ रहा है।
गैस त्रासदी की बरसी पर तीन दिसम्बर को चुनाव परिणाम आएंगे, लेकिन इस पर किसी राजनीतिक दल की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, अलबत्ता गैस पीड़ितों के हकों की लड़ाई के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों की ओर से एक ज्ञापन तैयार किया गया है, जिसे आज वह मुख्य निर्वाचन अधिकारी अनुपम राजन को 10 नवम्बर की शाम को सौंप रहे हैं, इसमें चुनाव परिणाम की तारीख बदलने की मांग की गई है।
पुराने भोपाल के जवाहर लाल नेहरू गैस राहत अस्पताल में रोज की तरह भीड़ जमा है। रजिस्ट्रेशन के लिए पुरुषों और महिलाओं की कतार लगी है। डॉ नईम अंसारी अपनी कुर्सी पर बैठै हैं। फिलहाल ऐसी स्थिति तो नहीं लग रही है कि वायु प्रदूषण का सीधा कोई असर देखने को मिल रहा हो, अस्पताल में सामान्य वायरल—सर्दी—जुकाम के ही मरीज आ रहे हैं।
अस्पताल के पहले माले पर में शिशु रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शालिनी गुलाटी के केबिन के बाहर बैठे अभिभावको ने बताया कि उनके बच्चे सर्दी—खांसी और बुखार से पीड़ित हैं, किसी का पेट भी खराब है।
शालिनी गुलाटी बच्चा वार्ड में राउंड पर हैं। उन्होंने बताया कि ऐसा एकदम तो समझ में नहीं आ रहा कि प्रदूषण के कारण मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन जिस तरह से फिजा खराब हो रही है, उसमें बच्चों की सेहत पर खास ध्यान रखा जाना चाहिए। उन्होंने इस आशंका से इंकार नहीं किया कि आने वाले दिनों में खराब हवा का असर बच्चों और बुजुर्गों की सेहत पर दिखाई दे। इसलिए सावधानी तो बरती जानी चाहिए।
इधर भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के बालकृष्ण नामदेव ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि पिछले कुछ दिनों सांस लेने, सांस फूल जाने संंबंधी शिकायतों वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। मौसम के बदलाव के कारण लोगों को समस्या हो रही है।
नामदेव खुद भी गैस पीड़ित हैं, उनकी तकलीफें इन दिनों बढ़ी हुई हैं, वह आशंकित हैं कि दिवाली पर पटाखों से प्रदूषण और बढ़ेगा तब इन गैस पीड़ितों की तकलीफें और भी बढ़ जाएंगी। उनकी चिंता है कि इस ओर प्रशासन का बिलकुल भी ध्यान नहीं है।
भोपाल ग्रुप फॉर इनफार्मेशन एन्ड एक्शन की रचना ढींगरा कहती हैं कि गैस लगने की वजह से पीड़ितों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है, श्वसन तंत्र पर गहन असर पड़ा है। कोरोना का असर भी गैस पीड़ित आबादी पर सामान्य आबादी से कई गुना अधिक था। इसलिए वायु प्रदूषण का ज्यादा असर गैस पीड़ितों के स्वास्थ्य पर सामान्य आबादी से ज्यादा पड़ेगा।
उनकी चिंता है कि आज भी गैस पीड़ितों की एक बड़ी आबादी मजदूरी करती है जिसकी वजह से उनके पास प्रदूषण से बचने के लिए घर पर रहने का विकल्प नहीं है। ऐसे में उनकी जिंदगी और मुश्किल भरी है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की नसरीन बी कहती हैं कि हम तो पहले से ही प्रदूषित हवा और प्रदूषित पानी पीने को मजबूर हैं, ऐसे में यह बिगड़ा मौसम हमारी सेहत पर बुरा असर डाल रहा है। आने वाले वक्त को लेकर हम चिंता में हैं। उनका यह भी कहना है कि अब तो गैस पीड़ितों को बेहतर इलाज भी मुश्किल हो रहा है।