बीसवीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना का असर भोपाल पर पिछले 38 सालों से बना हुआ है। और यह नहीं मालूम कि आगे कब तक बना रहेगा। लेकिन इसके असर से बचने के लिए बनाई गई सुरक्षा की दीवारों को आए दिन सरकारी महकमा तो तोड़ता ही है, साथ ही यह महकमा ऐसी स्थिति पैदा कर देता है कि इससे पीड़ित स्वयं भी इसमें शामिल हो जाते हैं।
भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास बसी 42 बस्तियों में, जहां अदालती आदेश के बावजूद पीने का स्वच्छ जल नसीब नहीं हो पा रहा है और वे उस भूजल को पीने को मजबूर हैं, जिसके उपयोग पर अदालत ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च लखनऊ की रिपोर्ट के आधार पर उपयोग पर रोक लगा रखी है।
पीड़ित संगठनों द्वारा यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे की वजह से इसके आसपास की बस्तियों में लगातार फैल रहे भूजल प्रदूषण और साफ पानी मुहैया कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति को पत्र लिखा है। पत्र में समिति के चेयरमैन जस्टिस शील नागु और सदस्य सचिव राजीव कारमाहे से जल्द बैठक बुलाने और निरीक्षण करने के लिए आग्रह किया गया है।
ध्यान रहे कि यूनियन कार्बाइड की दुर्घटना के बाद यहां के भूजल में घातक रसायन बड़ी मात्रा में जमीन के नीचे चले गए हैं और लगातार समय बीतने के साथ और भी यहां के भूजल को प्रदूषित कर रहे हैं। ऐसे में यहां का पानी किसी जहर से कम नहीं है।
हालांकि राज्य सरकार ने यहां पेयजल की आपूर्ति के लिए अपने बजट में 50 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा था। यूनियन कार्बाइड कारखाने के आसपास की 42 बस्तियों के भूजल को पेयजल के रूप में उपयोग करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नौ साल पहले ही रोक लगा दी थी। आदेश दिया था कि इन बस्तियों के लिए राज्य सरकार बकायदा पाइप लाइन बिछा कर स्वच्छ जल मुहैय्या कराए।
यही नहीं आदेश में यह भी कहा गया कि अदालत द्वारा बनाई निगरानी कमेटी हर चार माह में इस पाइप लाइन से सप्लाई होने वाले पानी की जांच कर इसकी गुणवत्ता की रिपोर्ट देगी। लेकिन निगरानी कमेटी मार्च, 2019 से अब तक कभी जांच नहीं की। पिछले एक हफ्ते से पाइप लाइन से आने वाला पानी की आपूर्ति भी अनियमित हो गई है।
यह पहली बार नहीं हुआ है। ऐसा पिछले डेढ़ सालों में कई बार हो चुका है। ऐसे हालात में बस्तिवासी यहां ट्यूब वेल का पानी पीने पर मजबूर हैं। भोपाल ग्रुप फॉर इंफोर्मेशन एंड एक्शन की अध्यक्ष रचना ढींगरा ने बताया कि 2021 में तो यूनियन कार्बाइड कारखाने के पास के इंद्रा नगर में लोक यांत्रिकी विभाग द्वारा विधायक निधि से एक बोरवेल तक खुदवाया जा रहा था, यह जानते हुए भी कि इस बस्ती का भूजल यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले कचरे के कारण प्रदूषित है और अदालती रोक है।
भूजल प्रदूषण से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामले में पहले से ही आदेश है कि इन क्षेत्रों में पाइपलाइन से स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराया जाए और सारे सरकारी बोरवेल को सील कर बंद किए जाने के आदेश हैं ताकि स्थानीय रहवासी प्रदूषित भूजल का सेवन ना करें। इसके बावजूद क्षेत्र में विभाग की तरफ से बोरवेल का खनन किया जा रहा था जो कि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का खुला उल्लंघन था।
उन्होंने कहा कि विभागों को यूनियन कार्बाइड कारखाना के जहरीले कचरे से आसपास की बस्तियों में फैल रहे जल प्रदूषण पर गंभीर होना चाहिए जो कि नहीं हैं। उनका कहना था कि यदि हम बोर खनन की जानकारी और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के बारे में विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को न बताते तो विभाग और अधिकारी क्षेत्र में बोरवेल का खनन कर चुके होते।
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार के विधायक तक सात-आठ माह पूर्व लोगों के घरों में हैंडपंप लगवा रहे थे। यही नहीं उनका कहना है कि कोर्ट के आदेश के बाद भी नगर निगम ने कई सरकारी ट्यूब वेल इलाके के बंद ही नहीं किए हैं अब तक।
इलाके में पाइप लाइन से अनियमित पेयजल की सप्लाई होने के कारण लोग चोरीछुपे अपने-अपने घरों में हैंडपंप लगवा रहे हैं और इस काम में सरकारी महकमा भी मदद कर रहा है। भोपाल इफरमेशन एक्शन की अध्यक्ष रंजना धींगरा ने तो यहां तक बताया कि इस इलाके में स्थानीय विधायकों ने भी हैंडपंप लगवाने में मदद की है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा यहां ग्राउंट वाटर से पानी की आपूर्ति पर रोक लगाने के बाद यहां बस्तियों में नर्मदा का पानी पाइप लाइन के माध्यम से आ रहा था, लेकिन नर्मदा का पानी नगर निगम ने डेढ़ साल पहले बंद कर दिया था और इसकी जगह कोलार बांध और बड़े तालाब का पानी सप्लाई किया जाने लगा।
यह पानी भी पूरी तरह से स्वच्छ नहीं है। लेकिन अब तो इस पानी को भी निगम सप्लाई करने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। गैस पीड़ित संगठनों ने बताया कि घातक रसायनों का असर 29 अन्य बस्तियों तक जा चुका है।
रचना ढींगरा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि यहां संभावना ट्रस्ट ने अब तक पानी की जांच में पाया है कि 42 बस्तियों में भूजल पेयजल के लिए उपयुक्त नहीं है। साथ ही उन्होंने लखनऊ स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टॉक्सीकॉलिजिकल रिसर्च सेंटर से आग्रह किया है कि वह यहां आकर एक बार फिर से इस पानी की जांच करें।