भूले नहीं भूलता भोपाल: ट्रेड सीक्रेट के नाम पर देश में जारी है खतरनाक रसायन का खेल

तेजी से बढ़ता रासायनिक उद्योग जगत अपने व्यापार को गुप्त रखने की हर कोशिश में जुटा है लेकिन पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की चिंताओं को लेकर बेहद लापरवाह बना हुआ है
फाइल फोटो: सीएसई
फाइल फोटो: सीएसई
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कोरोनाकाल के दर्मियान (2020-2023) कुल 29 रासायनिक हादसे देश में घटे और इनमें कुल 118 लोगों की मौत हुई और करीब 257 लोग घायल हो गए। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पाया कि यह सभी रासायनिक हादसे रासायनिक संयंत्रों में खराबी, गैर रिसाव, विस्फोट और फैक्ट्री में आग जैसी घटनाओं के कारण घटे।

साइंटिस्ट्स फॉर पीपल समूह के वैज्ञानिकों ने इन हादसों पर 2021 में जारी रिपोर्ट पर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भोपाल त्रासदी के 40 वर्षों बाद भी प्रक्रिया सुरक्षा नियमों में अब तक सुधार नहीं हुआ है। रासायनिक हादसे देश के अलग-अलग हिस्सों में जारी है लेकिन सवाल है कि ऐसा क्यों है?

तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग जगत लगातार ट्रेड सीक्रेट कानून की मांग कर रहा है। इस ट्रेड सीक्रेट कानून के जरिए कंपनियां अपनी बौद्धिक संपदा की आड़ में अहम जानकारियों को बचाए रख सकती हैं।

ट्रेड सीक्रेट कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में लाभदायक है लेकिन ऐसी कंपनियां जिनसे पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को क्षति पहुंच सकती है वह इसे एक हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं। ट्रेड सीक्रेट कानून के अभाव में फिलहाल कंपनियां नॉन डिसक्लोजर एग्रीमेंट (एनडीए) का इस्तेमाल करते हुए अपने व्यापार की गुप्त संरचनाओं को बताने के लिए बाध्य नहीं हैं।

"कंपनियां ट्रेड सीक्रेट (एनडीए) का उपयोग करके अपनी सुरक्षा करती हैं और वर्तमान में देश में ट्रेड सीक्रेट से संबंधित कोई विशिष्ट कानून नहीं है। सूचना के अधिकार कानून, 2005 की धारा 8 (i) में प्रावधान है कि बौद्धिक संपदा और ट्रेड सीक्रेट से जुड़ी जानकारी मांगी जा सकती है यदि वह सार्वजनिक हित में हो। हालांकि, निजी कंपनियों के मामले में यह लागू नहीं होता है।"

प्रोफेसर डॉ अनिर्बान मजूमदार, दी वेस्ट बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूडिशियल संसाइसेज

प्रो. मजूमदार भोपाल गैस त्रासदी की मिसाल देते हैं, “यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) को 2001 में अधिग्रहित करने वाली डाओ केमिकल्स ने रसायन की संरचना का खुलासा करने से इनकार कर दिया था। यदि वह संरचना का खुलासा करती तो त्रासदी के शिकार हुए लोगों का इलाज किया जा सकता था। यूसीसी 1950 से ही ट्रेड सीक्रेट का इस्तेमाल कर रही थी।”

इस मामले में भोपाल गैस त्रासदी इसलिए सबसे बड़ा उदाहरण है क्योंकि अब भी मिथाइल आइसोसाइनेट का इस्तेमाल देश में जारी है और इसे मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज एंड इंपोर्ट ऑफ हजार्ड्स केमिकल रूल्स, 1989 के तहत हजार्ड्स श्रेणी (अनुसूची 1) में रखा गया है।

डाउन टू अर्थ के द्वारा सूचना अधिकार कानून के तहत पूछे गए सवाल कि एमआईसी का कितना और कहां इस्तेमाल किया जा रहा है? इसकी जानकारी डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल्स एंड पेट्रोकेमिकल्स ने नहीं दी।

मजूमदार कहते हैं, “कुछ रिपोर्ट यह पुष्टि करती हैं कि डाओ केमिकल्स अब भी सिंगापुर स्थित मेगा वीजा नामक कंपनी के माध्यम से भारत में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन के उत्पादों का व्यापार कर रही हैं।”

देश में कई ऐसे घातक रसायन हैं जिनको न ही हजार्ड्स श्रेणी में रखा गया है और न ही उनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध है
गोपाल कृष्ण, टॉक्सिक वॉच एलाइंस

गोपाल कृष्ण बताते हैं कि भोपाल में यूसीसी का रिसर्च एंड डेवलपमेट सेंटर था, जिसमें अमेरिका में प्रतिबंधित गैसों और रसायनों का इस्तेमाल वार वेपन बनाने के लिए किया। हालांकि, जब हादसा हुआ तो इनमें से किस गैस ने त्रासदी मचाई सही से आजतक नहीं जाना जा सका है।

यूसीसी की औद्योगिक इकाई भोपाल में एमआईसी गैस का इंटरमीडिएट रसायन के तौर पर इस्तेमाल कर कार्बारिल सेविन नाम से कीटनाशक तैयार करती थी। इस कीटनाशक को देश में त्रासदी के करीब तीन दशक बाद 8 अगस्त, 2018 से प्रतिबंधित किया गया। यह देरी क्यों की गई, इसकी भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।

अब भी कई खतरनाक कृषि रसायनों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सका है। मिसाल के तौर पर मानव और पर्यावरण के लिए खतरनाक सिंथेटिक कीटनाशनक डाक्लोरोडाइफेनिलट्राइक्लोरोइथेन (डीडीटी) को भारत में पूरी तरह से फेज आउट नहीं किया जा सका है।

इसका निर्माण भारत सरकार का उद्यम एचआईएल लिमिटेड के जरिए किया जा रहा है। कंपनी फिलहाल डीडीटी का उत्पादन अफ्रीकी देशों की मांग को पूरा करने के लिए कर रही है। 17वीं, लोकसभा (2023-24) की स्टैंडिंग कमेटी ऑन केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स रिपोर्ट के मुताबिक, भारत सरकार ने डीडीटी के फेजआउट की योजना दिसंबर, 2024 तक टाल दी है।

भारत सरकार ने मई 2002 में स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों (पीओपीएस) पर स्टॉकहोम कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए और 13 जनवरी 2006 को इसे अनुमोदित किया था। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने “डीडीटी के गैर-पीओपी विकल्पों के विकास और प्रचार” परियोजना की परिकल्पना की थी।

पैन इंडिया की 2022 में अत्यधिक खतरनाक कीटनाशक श्रृंखला पर प्रकाशित रिपोर्ट “स्टेट ऑफ क्लोरपाइरीफोस, फिप्रोनिल, एट्राजीन एंड पैरा-क्वाट डाइक्लोराइड इन इंडिया” में कहा कि अत्यधिक विषाक्तता और व्यापक दुरुपयोग के कारण इन रसायनों को तुरंत प्रतिबंधित करने की आवश्यकता है क्योंकि ये मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और अन्य जीवों के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं।

पर्यावरण मंत्रालय की ओर से 27 नवंबर, 1989 को जारी अधिसूचना खतरनाक रसायनों का निर्माण, भंडारण और आयात नियम, 1989 के तहत देश में मिथाइल आइसोसाइनेट जैसे 684 विषाक्त तमाम रसायनों (हजार्ड्स केमिकल) अनसूची एक के तहत दर्ज हैं।

इसमें अब भी कई तरह के खतरनाक रसायनों का नाम नहीं है। गोपाल कृष्ण के मुताबिक, यह बहुत ही सीमित सूची है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित रसायनों का इस्तेमाल अब भी भारत में जारी है। एस्बेस्टस इसकी सबसे बड़ी मिसाल है।

स्रोत: ओईसीडी, औद्योगिक और उपभोक्ता रसायन जो कानूनों के द्वारा विनयमित नहीं हैं

इसके अलावा यदि अत्यधिक विषैले और पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव डालने वाले कृत्रिम रसायन समूह पर-और पॉलीफ्लूरोएल्काइल पदार्थ (पीएफएएस यानी फॉरएवर केमिकल) भी भारत में आंशिक तौर पर ही रेग्युलेटेड हैं।

यह ऐसे मानव निर्मित रसायन हैं जिनका आम जीवन में प्रभाव और इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। तेल, पानी और चिकनाई से बचाने वाले नॉन स्टिक बर्तन हों या फिर फूड पैकेजिंग कई जगहों पर इनका इस्तेमाल किया जा रहा है। इन रसायनों की संख्या 10 हजार से भी ज्यादा है। यूरोपियन केमिकल्स एजेंसी (ईसीएचए) ने इसी साल पीएफएएस को यूरोप में रेग्युलेट करने के लिए कदम तेज किए हैं।

हालांकि, भारत में इस पर कोई बातचीत नहीं है। औद्योगिक इकाइयां ऐसे कई रसायनों का इस्तेमाल कर रही हैं, जिनमें हादसे होने की अत्यधिक संभावनाएं हैं। हालांकि, प्राधिकरणों के पास अहम जानकारी तक नहीं हैं।

अक्टूबर, 2024 में सूचना के अधिकार के तहत डाउन टू अर्थ ने डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल से भोपाल गैस त्रासदी और खतरनाक रसायनों व व्यापारिक रहस्यों के बारे में सवाल पूछा गया तो आरटीआई में दो टूक जवाब आया “सूचना अधिकारी के पास ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।”

प्रोटेक्शन ऑफ ट्रेड सीक्रेट बिल, 2024 का मसौदा यदि तय हो जाता है तो कंपनियों को यह और ज्यादा ताकत देगा कि वे अपने खास सूचनाओं और सरंचनाओं को जाहिर न करें। हालांकि, राष्ट्रीय आपातकाल या सार्वजनिक हित जैसे गंभीर मामलों में उन्हें इसकी जानकारी सामने रखनी होगी। मजूमदार कहते हैं कि सवाल यह है कि इस मसौदे में अब तक ऐसा कोई साधन नहीं बताया गया है कि कंपनियां यह जानकारी कहां और कैसे रखेंगी।

रासायनिक उत्पादों की संख्या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, 2040 तक रासायनिक उद्योग का आकार 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

इसे गति देने के लिए देश में कंपनियों को गुप्त व्यापार में मदद करने वाला प्रोटेक्शन ऑफ ट्रेड सीक्रेट बिल 2024 का मसौदा तैयार है और इसके उलट देश में रसायनों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए अमेरिका और यूरोप की तरह विषाक्त पदार्थ नियंत्रण अधिनियम 1976 (टीएससीए) और रसायनों का पंजीकरण, मूल्यांकन, प्राधिकरण और प्रतिबंध (रीच) विनियमन जैसा कोई ठोस नियम (रूल) अब तक नहीं है। यहां तक कि भारत के पास कोई केमिकल इनवेंट्री और रसायनों के रजिस्ट्रेशन की जरूरत तक नहीं हैं।

बंदूक रखने के लिए किसी को 7 साल की कठोर कारावास का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन खतरनाक रसायनों की एक कैन खरीदने के लिए उसे बरी किया जा सकता है

डॉक्टर नरसिम्हा रेड्डी दोंथी, पब्लिक पॉलिसी एंड पब्लिक इंटरेस्ट कैंपेन और पैन इंडिया

पब्लिक पॉलिसी एंड पब्लिक इंटरेस्ट कैंपेन और पैन इंडिया से जुड़े डॉक्टर नरसिम्हा रेड्डी दोंथी देश में रसायनों की मौजूदा स्थिति पर अपनी टिप्पणी करते हैं, “हमारे पास शस्त्र अधिनियम के बराबर कोई कानून नहीं है। क्योंकि बंदूक रखने के लिए किसी को 7 साल की कठोर कारावास का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन खतरनाक रसायनों की एक कैन खरीदने के लिए उसे बरी किया जा सकता है।”

वह आगे कहते हैं “दरअसल हमें कानून की जरूरत है, हमें विनियमन की जरूरत है और हमें कानून और विनियमन को लागू करने के लिए संस्थागत तंत्र की जरूरत है।” टॉक्सिक लिंक के पीयूष मोहपात्रा बताते हैं कि ज्यादातर नीतियां उद्योग के बारे में ही चर्चा कर रही हैं। रसायनों के प्रबंधन और उनके खतरे की सूची व श्रेणी को लेकर कुछ खास अभी मौजूद नहीं है। भारत में 1992 के निजीकरण से पहले और भोपाल गैस त्रासदी के बाद काफी सख्ती थी। लेकिन निवेश के लिए उद्योगों को ढील देने की शुरुआत हुई और अंतरराष्ट्रीय कानूनों में साझेदारी के बाद भी अमल नहीं हो रहा। टीएससीए और रीच दोनों को ही उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा की रक्षा के लिए डिजाइन किया गया है ताकि मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के उपयोग को प्रतिबंधित किया जा सके और दोनों का अनुपालन एक तरह ही जरूरी है।

करीब पांच साल पहले 2019 में डाउन टू अर्थ ने ई-मेल के जरिए बातचीत की एक लंबी श्रृंखला में देश के भीतर मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) के उत्पादन और इस्तेमाल को लेकर सरकार से जानकारी मांगी। पूछे गए एक सवाल में जवाब आया “डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल के संयुक्त सचिव एमआईसी जैसी विषाक्त गैस की किसी अधिसूचना को लेकर काम कर रहे हैं। आप उनके संपर्क में बने रहिए।” फिलहाल मंत्रालय की ओर से ऐसी कोई अधिसूचना अभी तक नहीं आई है। केमिकल्स (मैनेजमेंट एंड सेफ्टी) रूल्स का मसौदा तैयार है लेकिन इसे अब तक फाइनल नहीं किया गया है।

भारत में 15 से ज्यादा अधिनियम और 19 नियम हैं जो रासायनिक उद्योग के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करते हैं। फिर भी इनमें से कोई भी अधिनियम विशेष रूप से उद्योग के लिए नहीं बनाया गया है।

उदाहरण के लिए, केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989, सामान्य रूप से सड़क परिवहन के सभी पहलुओं से निपटता है और रसायनों सहित खतरनाक सामानों के परिवहन को भी विशेष रूप से संबोधित करता है।

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा 2005-06 में जारी की गई भारत के लिए राष्ट्रीय रासायनिक प्रबंधन प्रोफाइल रिपोर्ट में बताया गया है कि पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 वर्तमान में रासायनिक उद्योग के लिए एक बड़े छाते की तरह काम करता है।

साथ ही, राष्ट्रीय रासायनिक नीति 2012 से लंबित है। सीपीसीबी के पूर्व वैज्ञानिक और दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट से जुड़े डीडी बसु कहते हैं, “हमें एक व्यापक कानून की आवश्यकता है जो रासायनिक उपयोग, उत्पादन और सुरक्षा को नियंत्रित करे।”

दुनियाभर में रसायनों को प्रतिबंधित करने और विनयमित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। हालांकि, भारत अब भी इस मामले में फिसड्डी है। डॉ दोंथी कहते हैं कि “हमें वास्तव में एक ऐसे रसायन विनियामक ढांचे और तंत्र की जरूरत है जो न केवल गुप्त व्यापार से निपटने के लिए काफी हो बल्कि आपूर्ति श्रृंखला सौदों को उजागर करने के लिए भी हो क्योंकि उद्योग व्यापार के हर चरण में अपने उत्तरदायित्व से बचते हैं।

उन्होंने कहा “कंपनियों ने अपने सौंदों की खरीददारी और बिक्री के लिए जो चेन बनाई है वह इस हिसाब से बनाई है कि नियामकों के द्वारा उनकी जांच न हो सके। हमने देखा है कि किस तरह से आम लोगों को जहर बांटा गया है।”

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