भोपाल: यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे को जलाने की कवायद शुरू, संगठनों ने बताया अधूरा काम, इंदौर में विरोध

भोपाल गैस कांड के लिए जिम्मेवार यूनियन कार्बाइड के परिसर में 337 मीट्रिक टन कचरा जमा है
2-3 दिसंबर, 1984 को मध्यप्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में गैस लीक  हादसा हुआ था। इसमें 5 हजार से ज्यादा लोग काल के गाल में समा गए  और करीब 50 हजार से ज्यादा लोग अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हो गए  (फाइल फोटो: सूर्या सेन / सीएसई )
2-3 दिसंबर, 1984 को मध्यप्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में गैस लीक हादसा हुआ था। इसमें 5 हजार से ज्यादा लोग काल के गाल में समा गए और करीब 50 हजार से ज्यादा लोग अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर हो गए (फाइल फोटो: सूर्या सेन / सीएसई )
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भोपाल गैस कांड के लिए कुख्यात यूनियन कार्बाइड में पड़े जहरीले कचरे का मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है।

भोपाल गैस पीड़ित इस जहरीले कचरे समेत जमीन में दबे हुए खतरनाक कचरे से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान और अन्य दुष्प्रभावों को लेकर सालों साल से इसे नष्ट करने की मांग करते रहे हैं।

पिछले साल परिसर में मौजूद 337 मीट्रिक टन कचरे के निपटान की कवायद शुरू भी हुई, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 126 करोड़ रुपए की राशि भी ट्रांसफर कर दी गई, कचरा निष्पादन को लेकर अनुबंध होकर टाइमलाइन भी तय हो गई, लेकिन गैस पीड़ित संगठन इसे एक अधूरा कदम ही बता रहे हैं।

इधर भोपाल संसदीय सीट से पहली बार निर्वाचित होकर संसद में पहुंचे सांसद आलोक शर्मा ने भी इस विषय को प्रमुखता से उठा दिया। संगठनों ने इस आवाज का स्वागत किया है, वहीं यह उम्मीद भी जताई है कि वह गैस त्रासदी के विषय को समग्रता से देखेंगे।

डाउन टू अर्थ के पाठकों को बता दें कि दुनिया की सबसे खतरनाक त्रासदियों में शुमार भोपाल गैस कांड को इस साल चालीस बरस हो जाएंगे। पीड़ित लोग जहां एक ओर अब भी इसके दुष्परिणामों को भुगत रहे हैं, वहीं इसके दोषियों को सजा नहीं मिल पाने से हताश भी हैं।

कई एजेंसियों के अध्ययन में यह बात सामने आई है कि परिसर और उसके पीछे बने सोलर इवेपॉरेशन पोंड में पड़े जहरीले कचरे से कारखाने के आसपास बसी 42 बस्तियों के भूजल को ऐसे रसायनों से प्रदूषित किया है जिन्हे फॉरएवर केमिकल्स के नाम से जाना जाता है यानी वह अपना असर खोते नहीं हैं। इस कचरे के निपटान के लिए सरकार अपने स्तर पर कवायद कर रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक ओवरसाइट कमेटी इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए गठित की गई है।

कचरे को लेकर ओवरसाइट कमेटी ने 19 जून 2023 को एक बैठक आयोजित की थी और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिए थे कि इसके लिए तुरंत राशि हस्तांतरित की जाए।

इस साल मार्च में भोपाल गैस कांड राहत एवं पुनर्वास विभाग और पीथमपुर इंडस्ट्रियल वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड में एक करार भी हो चुका है। सरकार ने 126 करोड़ रुपए की राशि भी जारी कर दी है। एहतियाती दिशानिर्देशों के साथ एक टाइमलाइन के साथ एक टेंटेटिव वर्क प्लान जारी किया था। 7 अक्टूबर 23 को किए गए कांट्रेक्ट के अनुसार कचरा जलाने की तैयारी से लेकर रिपोर्ट सबमिट करने तक का काम न्यूनतम 185 से अधिकतम 377 दिन में पूरा किया जाना था।

इस काम में हो रही लेटलतीफी को लेकर भोपाल सांसद आलोक शर्मा ने 30 जुलाई को लोकसभा में यह विषय उठाया है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों भोपाल गैस पीड़ितों के लिए संघर्ष कर रहे संगठनों ने भोपाल सांसद आलोक शर्मा से मिलकर उन्हें स्थिति से अवगत करवाया था। भोपाल ग्रुप ऑफ़ फ़ॉर इनफ़ार्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में भोपाल सांसद के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि दशकों बाद भोपाल के किसी सांसद ने विश्व की भीषणतम औद्योगिक हादसे के बारे में कम से कम सवाल तो उठाया। उन्होंने यह भी कहा कि सांसद जी अगर वाकई में कारखाने की सफाई कराना और स्मारक का निर्माण कराना चाहते हैं तो उसके लिए कारखाने के अंदर 21 गड्ढे में दबे जहरीले कचरे और कारखाने के पीछे बने कार्बाईड के जहरीले तालाब में पड़ा हुआ हजारों टन जहरीला कचरे का आकलन करना होगा। उन्होंने कहा कि संपूर्ण कचरे के निष्पादन करने पर ही किसी स्मारक का निर्माण हो सकता है। ढींगरा ने कहा कि 337 एमटी कचरा पूरे कचरे का 1 प्रतिशत भी नहीं है और जो कचरा बाहर और अंदर दबा है उसी की वजह से अब तक 42 बस्तियो का भूजल अत्यंत जहरीले रसायनों से प्रदूषित हुआ है।

ढींगरा ने यह भी कहा कि इस कचरे के निपटान के लिए जो बजट आवंटित किया जा रहा है वह देश के लोगों के टैक्स का पैसा है, जबकि यह पैसा प्रदूषण करने वाली कंपनियों डाउ केमिकल और यूनियन कार्बाइड से वसूला जाना चाहिए। सांसद महोदय को चाहिए कि वे इस पर भी सवाल उठाए कि 2010 से केंद्र सरकार यूनियन कार्बाइड और डाउ केमिकल से इस कचरे की सफाई के लिए 350 करोड़ मांगे थे पर आज तक इस राशि को वसूलने के लिए सरकार द्वारा एक भी ठोस कदम क्यों नहीं उठाया गया है

अंतरराष्ट्रीय गोल्डमैन प्राइज 2004 से पुरस्कृत भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष राशिदा बी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भोपाल लोकसभा सीट से पहली बार सांसद बने आलोक शर्मा का यह विषय लोकसभा के पटल पर लाने के लिए बधाई देकर कहा है कि इस कचरे को नष्ट करने की यह पहल बढ़िया है, लेकिन साथ ही जो कारखाने के अंदर जमीन में कचरा दबा है, और जो आसपास के भूजल को प्रभावित कर रहा है, उसकी बात भी उठाने के लिए कहा है।

इंदौर में कचरे जलाने को लेकर स्थानीय लोग और राजनीतिक दलों ने विरोध शुरू कर दिया है। पीथमपुर और उसके आसपास बसे पचास गांव के लोग इस बात से आशंकित हैं कि कचरा जलाने से उनकी सेहत और पर्यावरण पर इसका बुरा असर पड़ेगा। कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस पर आंदोलन करने की धमकी दी है। स्थानीय अखबार पत्रिका ने इस कवायद के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया है।

उल्लेखनीय है कि भोपाल गैस कांड के कचरे को नष्ट करने का मुद्दा लंबे समय से चल रहा है। जैसे ही प्रक्रिया शुरू होती है इसका विरोध भी शुरू हो जाता है। विभागीय जानकारी के मुताबिक सबसे पहले पीथमपुर में ही चालीस मीट्रिक टन कचरे का 2008 में लैंड फिल गया था। इसके बाद 2014 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दस मीट्रिक टन कचरे को नष्ट करने का निर्देश मिला था। इस निर्देश के बाद 2015 में दस मीट्रिक टन कचरे का निपटारा करके इसके पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन किया गया था। वैज्ञानिक एवं अनुसंधान परिषद भारत सरकार ने यहां पर 1.1 मीट्रिक टन प्रदूषित मिट्टी, 1 मीट्रिक टन मरकरी, 1500 मीट्रिक टन कॉरोडेड संयंत्र एवं 150 मीट्रिक टन भूमिगत रासायनिक कचरा होने का आकलन किया है।

भोपाल गैस स्मारक बनाने की तैयारी: सरकार लंबे समय से भोपाल गैस कारखाने के 67 एकड़ जमीन पर एक स्मारक बनाने की योजना बना रही है। लगभग 380 करोड़ रुपए की लागत से तैयारी होने वाले इस स्मारक को डिजाइन करने का काम भी दिल्ली की एक एजेंसी को सौंपा गया है। इसके लिए दस करोड़ रुपए की राशि विभाग ने स्वीकृत की है।

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