माइक्रोप्लास्टिक के कारण बैक्टीरिया में 30 गुना तक बढ़ सकता है एंटीबायोटिक प्रतिरोध

माइक्रोप्लास्टिक हमारी रोजमर्रा की चीजों जैसे टूथपेस्ट, क्रीम आदि से लेकर हमारे भोजन, हवा और पीने के पानी तक में मौजूद हो सकते हैं
माइक्रोप्लास्टिक के कारण बैक्टीरिया में 30 गुना तक बढ़ सकता है एंटीबायोटिक प्रतिरोध
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माइक्रोप्लास्टिक्स, बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स को 30 गुना तक बढ़ा सकते है। यह माइक्रोप्लास्टिक हमारी रोजमर्रा की चीजों जैसे टूथपेस्ट, क्रीम आदि से लेकर हमारे भोजन, हवा और पीने के पानी तक में मौजूद हो सकते हैं। हालांकि प्लास्टिक के यह अति सूक्ष्म कण सीधे तौर पर स्वास्थ्य के लिए कितने नुकसानदेह हैं इस बारे में अभी भी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन हाल ही में किए एक नए शोध से पता चला है कि यह माइक्रोप्लास्टिक न केवल बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया को पनपने में मदद कर सकते हैं। साथ ही एक बार जब यह कण घरेलु नालियों से होकर वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट तक पहुंच जाते हैं तो बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध को 30 गुना तक बढ़ा सकते हैं।

अनुमान है कि 4 लाख लोगों के वेस्ट वाटर को साफ़ करने की क्षमता वाला एक वेस्टवाटर प्लांट हर दिन माइक्रोप्लास्टिक के करीब 20 लाख कण पर्यावरण में मुक्त कर सकता है जोकि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बढ़ा खतरा बन सकते हैं। यह जानकारी न्यूजर्सी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा किए शोध में सामने आई है जोकि जर्नल ऑफ हैजर्डस मैटेरियल्स लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

शोध के अनुसार एक बार जब यह माइक्रोप्लास्टिक नालियों से होते हुए वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पहुंच जाते हैं तब इनपर बायोफिल्म या एक तरह की एक पतली परत बन जाती है, जिसकी वजह से रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीव और एंटीबायोटिक कचरा उसपर आसानी से जमा होने लगता है। इस तरह यह न केवल रोग फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों का घर बन जाते हैं, साथ ही यह उनके विकास और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास में भी मदद करते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार इस वजह से कुछ तरह के बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध में 30 गुना तक की वृद्धि देखी गई थी। 

कैसे बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स बनने में मदद करता है माइक्रोप्लास्टिक

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मेंगयान ली ने बताया कि हाल ही में किए गए कई अध्ययनों में साफ पानी और समुद्रों में हर वर्ष मिलने वाले लाखों टन माइक्रोप्लास्टिक के पड़ रहे असर को समझने का प्रयास किया गया है। लेकिन अब तक शहरों में वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट में मिलकर यह माइक्रोप्लास्टिक किस तरह से पर्यावरण और हमारे स्वास्थ्य पर असर डाल रहे हैं इस पर कोई जानकारी नहीं है।

इस शोध से पता चलता है कि यह माइक्रोप्लास्टिक कई तरह के बैक्टीरिया और रोगजनकों को एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स बनने में मददगार हो सकते हैं। साथ ही यह उनके जरिए अन्य स्थानों तक भी पहुंच सकते हैं, इस तरह से यह जलीय जीवों और इंसानी स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। उनके अनुसार आमतौर पर इन वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स को माइक्रोप्लास्टिक को हटाने के लिए डिज़ाइन नहीं किया जाता, इस वजह से वो आसानी से वातावरण में पहुंच जाते हैं।

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डूंग नोक फाम ने जानकारी दी कि पहले हमें लगता था कि माइक्रोप्लास्टिक से जुड़े जीवाणुओं में एंटीबायोटिक-प्रतिरोध जीन को बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं की उपस्थिति जरुरी है। पर पता लगा है कि माइक्रोप्लास्टिक स्वाभाविक रूप से इन प्रतिरोधी जीनों को अपने दम पर बढ़ाने की अनुमति दे सकते हैं।

ली ने बताया कि हमें लगता है कि यह माइक्रोप्लास्टिक बहुत छोटे होते हैं पर सच यह है कि वो रोगाणुओं के लिए एक विशाल सतह प्रदान करते हैं। एक बार जब यह माइक्रोप्लास्टिक वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट में प्रवेश करते हैं और कीचड़ से मिल जाते हैं, तो नोवोसिंघोबियम जैसे बैक्टीरिया इन की सतह पर आसानी से जमा हो जाते हैं और गोंद जैसे पदार्थ छोड़ने लगते हैं। जब अन्य बैक्टीरिया सतह से जुड़ते और बढ़ते हैं तो वो एक दूसरे से अपने डीएनए साझा करने लगते हैं। इस तरह से उनमें एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन विकसित होने लगती है।

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक

प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर जब छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  सामान्यतः प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। जिस तरह से दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ रहा है, उसका पर्यावरण पर क्या असर होगा, इसे अब तक बहुत कम करके आंका गया है, जबकि माइक्रोप्लास्टिक्स के बारे में तो बहुत ही सीमित जानकारी उपलब्ध है।

हाल के दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा है, एक अन्य शोध से पता चला है कि हम 1950 से लेकर अब तक 830 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर चुके हैं। जिसके 2025 तक दोगुना हो जाने का अनुमान है । दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख पीने के पानी की बोतलें खरीदी जाती हैं जो कि प्लास्टिक से बनी होती है। जिसका सीधा अर्थ यह हुआ कि अब प्लास्टिक के छोटे अंश और रेशे बड़ी मात्रा में कणों के रूप में टूट रहे हैं और पानी की स्रोतों और पाइपों के जरिये अधिक मात्रा में हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं। ऐसे में जब हम यह जानते हैं कि यह माइक्रोप्लास्टिक कई तरह से हमारे लिए खतरा बनते जा रहे हैं इन पर ध्यान दिया जाना अत्यंत जरुरी है।

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