आगामी पांच नवम्बर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव होना है और इसके पहले इस चुनाव में लड़ रहे उम्मीदवार हर हालात में यह दावा करते नहीं थक रहे हैं कि हम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करके रहेंगे। लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। क्योंकि एक नए शोध से पता चला है कि अमेरिका में मीथेन उत्सर्जन में लगातार वृद्धि जारी है। यह जलवायु पर खतरे का सबसे बड़े खतरे का संकेत कहा जा सकता है।
न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका वायुमंडल में इस शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस को अधिक से अधिक मात्रा में छोड़ रहा है, जबकि दूसरी ओर उसने उत्सर्जन में कटौती करने का लगातार वादा किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका के नेतृत्व में अन्य देशों को वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन में कटौती करने के लिए प्रोत्साहित करने के प्रयासों के बावजूद, अमेरिका का तेजी से बढ़ता जीवाश्म ईंधन उद्योग वायुमंडल में अधिक से अधिक पृथ्वी ग्रह को गर्म करने वाली मीथेन उत्सर्जित करना जारी रखा है।
मीथेन सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसों में से एक है और इस अध्ययन में यह बात निकलकर आई है कि सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में से एक अमेरिका है।
ध्यान रहे कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दुनिया के अधिकांश प्रयास कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्सर्जन को कम करने पर केंद्रित हैं, जो मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होते हैं और जिनके गर्मी को बढ़ाने वाले कण सैकड़ों वर्षों तक वायुमंडल में रह सकते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड के विपरीत, मीथेन उत्सर्जन खपत से नहीं बल्कि गैस के उत्पादन व परिवहन से होता है। यह आमतौर पर प्राकृतिक गैस के रूप में जानी जाने वाली गैस का मुख्य घटक है। मीथेन भंडारण सुविधाओं, पाइपलाइनों और टैंकरों से लीक हो सकती है और अक्सर जानबूझकर छोड़ा भी जाता है। मीथेन पशुधन और लैंडफिल से भी निकलता है। साथ ही आर्द्रभूमि में स्वाभाविक रूप से होता है।
न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कैरोस ने अपने अध्ययन में जीवाश्म ईंधन पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां बड़ी मात्रा में मीथेन को जानबूझकर छोड़ने और “फ्लेयरिंग” यानी इसे जानबूझकर जलाए जाने की प्रथाएं आम हैं। वायुमंडल में मीथेन की सांद्रता अब पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ढाई गुना अधिक है और दुनिया के आधे से अधिक मीथेन उत्सर्जन मानव निर्मित है। वायुमंडल में इसकी मौजूदगी लगभग 12 वर्षों में समाप्त हो जाती है, जो कि अपेक्षाकृत कम समय है, लेकिन कई अध्ययनों से पता चलता है कि इसका ऊष्मा-अवरोधन प्रभाव कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 80 गुना अधिक मजबूत है। इसका मतलब है कि जलवायु के लिए इसके और भी तात्कालिक परिणाम हो सकते हैं।
2021 में अमेरिका “वैश्विक मीथेन शपथ” के पहले हस्ताक्षरकर्ताओं और प्रवर्तकों में से एक था, जिसने एक दशक के भीतर वैश्विक स्तर पर मानव निर्मित मीथेन उत्सर्जन को 2020 के स्तर से 30 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य रखा था। इस शपथ पर 158 देशों ने हस्ताक्षर किया था। हाफ ने कहा कि 2030 तेजी से नजदीक आ रहा है और उत्सर्जन अभी भी भारी मात्रा में जारी हो रहा है। ऐसा बड़े हिस्से में इसलिए लगता है क्योंकि अमेरिका और अन्य जगहों पर तेल और गैस का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है।
राष्ट्रपति बाइडेन के हस्ताक्षर जलवायु कानून, मुद्रास्फीति न्यूनीकरण अधिनियम में मीथेन उत्सर्जन-कमी रणनीतियों के लिए अरबों डॉलर का वित्तपोषण शामिल है। पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के अनुसार इस नियम के परिणामस्वरूप 28 मिलियन गैसोलीन कारों से होने वाले वार्षिक उत्सर्जन से अधिक का उन्मूलन हो सकता है और नियम के बिना अपेक्षित भविष्य के मीथेन उत्सर्जन में लगभग 80 प्रतिशत की कमी संभव है।
अमेरिकी जीवाश्म ईंधन क्षेत्र आज पिछले वर्षों की तुलना में प्रति यूनिट ऊर्जा में कम मीथेन उत्सर्जित करता है। हालांकि, उत्पादन में इतनी वृद्धि हुई है कि कुल मिलाकर मीथेन उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। अमेरिका अब तक दुनिया का अग्रणी गैस उत्पादक और निर्यातक रहा है। चीन कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन दोनों का दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है और उसने शपथ पत्र पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं। अमेरिकी जलवायु दूत जॉन पोडेस्टा हाल ही में चीन के शीर्ष जलवायु वार्ताकारों से मिलने के लिए बीजिंग गए थे और दोनों देशों ने नवंबर में अजरबैजान में इस साल के मुख्य जलवायु शिखर सम्मेलन के साथ-साथ मीथेन पर एक शिखर सम्मेलन की सह-मेजबानी करने पर सहमति जताई है, जिससे उम्मीद जगी कि चीन इस साल इस शपथ पर हस्ताक्षर कर सकता है।
जर्मन ग्रीन पार्टी से यूरोपीय संघ की संसद के सदस्य जुट्टा पॉलस ने कहा कि यह दर्शाता है कि शपथ का प्रभाव है। उन्होंने यह भी कहा कि कई समाधान पहुंच के भीतर हैं। यूरोपीय संघ ने इस गर्मी में एक प्रस्ताव पेश किया है जो अपने सभी सदस्य देशों को अपने मीथेन उत्सर्जन का अध्ययन करने और उन्हें कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने के लिए कहा है। यूरोपीय संघ 2029 से अपने आयातों पर उत्सर्जन पर समान रूप से कठोर सीमाएं लागू करेगा, जिसमें अल्जीरिया जैसे उन देशों की गैस भी शामिल है जिन्होंने शपथ पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। ध्यान रहे कि 2030 से यूरोपीय संघ एक निश्चित उत्सर्जन सीमा से ऊपर के आयातों पर जुर्माना लगाना शुरू कर देगा।
अध्ययन में ऑस्ट्रेलिया और तुर्कमेनिस्तान ही दो ऐसे देश थे, जिन्होंने मीथेन उत्सर्जन में बड़ी कमी देखी। हाफ ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया की सफलता संभवतः कोयला उत्पादन के दौरान गैस के जानबूझकर उत्सर्जन को सीमित करने के उद्देश्य से अपनाई गई नीतियों के कारण है। वहीं तुर्कमेनिस्तान (जो कई मामलों में दशकों पुराने सोवियत गैस बुनियादी ढांचे का संचालन करता है) ने अपनी सुविधाओं को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।