मार्च से मई 2020 के दौरान हुए लॉकडाउन के चलते जहां एक तरफ नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, पीएम 2.5, और एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ में कमी दर्ज की गई, वहीं दूसरी ओर वातावरण में मौजूद जलवाष्प में करीब 10 से 20 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी| इन सभी का परिणाम था कि इस दौरान जहां दिन के समय तापमान में 0.16 से 1 डिग्री सेल्सियस और रात के समय तापमान में 0.63 से 2.1 डिग्री सेल्सियस की कमी दर्ज की गई थी|
इस दौरान दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक दिल्ली की वायु गुणवत्ता में भी सुधार दर्ज किया गया था| शोधकर्ताओं के अनुसार इस दौरान दिल्ली में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के स्तर में करीब 43 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी| वहीं यदि राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो यह कमी करीब 12 फीसदी की थी|
यदि देश के छह प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंगलोर और हैदराबाद की बात करें तो इस दौरान एनओ2 के स्तर में इस महामारी से पहले की तुलना में औसतन 31.5 फीसदी की कमी आई थी| यदि उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर देखें तो कोलकाता में एनओ2 के स्तर में 18 फीसदी, हैदराबाद में 29 फीसदी और चेन्नई, मुंबई और बैंगलोर में 32 से 34 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी|
वायु प्रदूषण देश को कितना नुकसान पहुंचा रहा है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हर साल खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने से लगभग 16,000 लोगों की समय से पहले ही मौत हो जाती है| यह जानकारी झारखंड केंद्रीय विश्वविद्यालय और साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय, यूके के वैज्ञानिकों द्वारा किए शोध में सामने आइ है, जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है|
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता बिकाश परिदा के अनुसार एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) में भी कमी दर्ज की गई थी, जिसे लॉकडाउन के दौरान पूरे भारत में उत्सर्जन स्रोतों में आई कमी के साथ जोड़ा जा सकता है| इस दौरान एयरोसोल के स्रोत जैसे आर्गेनिक कार्बन, ब्लैक कार्बन, मिनरल डस्ट और समुद्री नमक भी काफी कम हो गए थे| वहीं मध्य भारत में एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ में जो वृद्धि आई थी उसके लिए पश्चिमी थार रेगिस्तानी क्षेत्र से लाए गए धूल के कण (डस्ट एयरोसोल) जिम्मेवार थे|
अध्ययन में यह भी पता चला है कि इस दौरान देश के प्रमुख शहरों में भूमि की सतह के तापमान में भी गिरावट दर्ज की गई थी| पिछले पांच वर्षों (2015 से 2019) के औसत की तुलना में इस अवधि में दिन का तापमान में करीब एक डिग्री सेल्सियस और रात के तापमान में 2.1 डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट दर्ज की गई थी|
शोध के मुताबिक सतह के तापमान के साथ-साथ, भारत के प्रमुख शहरों में सतह और ऊपरी वायुमंडल के वायुमंडलीय प्रवाह में भी काफी गिरावट दर्ज की गई थी। वहीं शोधकर्ताओं ने भूमि और सतह के तापमान में आने वाली गिरावट के लिए ग्रीनहाउस गैसों की सघनता में आई कमी, जलवाष्प के बढ़ने और मौसम से जुड़ी स्थितियों में आए बदलावों को जिम्मेवार माना है|
भविष्य के लिए लिया जा सकता है इससे सबक
इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जादू डैश ने बताया कि लॉकडाउन ने शहरीकरण और स्थानीय माइक्रोक्लाइमेट के बीच के सम्बन्ध को समझने के लिए प्राकृतिक तौर पर प्रयोग करने का एक मौका दिया है| हमने स्पष्ट तौर पर देखा है कि वातावरण में मौजूद प्रदूषकों की कमी के कारण स्थानीय तौर पर दिन और रात के तापमान में कमी आई थी| जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह इंसानी गतिविधियों द्वारा किए जा रहे प्रदूषण में कमी का आना था| यह एक ऐसी खोज है जो शहरों के विकास से जुड़ी योजनाओं को बनाने में मदद कर सकती है|
सतह के तापमान, वातावरण में मौजूद प्रदूषकों और एरोसोल में आने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के दल ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सेंटिनल - 5पी और नासा के मोडिस सेंसर का उपयोग किया है| इसके साथ ही उन्होंने इसके लिए धरती पर मौजूद सेंसरों से प्राप्त आंकड़ों का भी प्रयोग किया है| इसमें उन्होंने इस महामारी से पहले के आंकड़ों और 2020 में लॉकडाउन के दौरान मार्च से मई के बीच के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण किया है|
हालांकि प्रदूषण और तापमान में जो गिरावट दर्ज की गई है वो स्थाई नहीं थी, पर इसने यह साबित कर दिया है कि यदि प्रदूषण पर रोक लगाई जाए तो पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से इसके बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं|
शोध के अनुसार इस अवधि में महामारी के चलते जो औद्योगिक गतिविधियों, परिवहन और यात्रा एवं कार्य सम्बन्धी जो प्रतिबन्ध लगाए गए थे उसके परिणामस्वरूप पर्यावरण में सुधार आया था| ऐसे में यह निष्कर्ष एक बार फिर इस बात को स्पष्ट करते हैं कि यदि नीतियों का सही तरह से कार्यान्वयन किया जाए तो पर्यावरण को बचाया जा सकता है, जिसका फायदा सम्पूर्ण मानव जाति को मिलेगा|