दिल्ली एनसीआर सहित देश के लगभग सभी बड़े शहरों में पार्टिकुलेट मेटर यानी पीएम का बढ़ता स्तर बच्चों के लिए जानलेवा बना हुआ है। इस जानलेवा पीएम का असर जानने के लिए डाउन टू अर्थ दिल्ली सहित अन्य शहरों से रिपोर्ट कर रहा है। पढ़ें, पहली कड़ी -
दिल्ली में श्वसन संबंधी समस्याओं को लेकर अस्पताल के ओपीडी और इमरजेंसी में 5 साल से कम उम्र वाले बच्चों की कतार लगी हैं। दिल्ली के खतरनाक प्रदूषण के बीच बच्चों के अस्पतालों या वार्डों में डरावना दृश्य दिखाई दे रहा है। दिल्ली के गीता कॉलोनी स्थित एकमात्र सरकारी बाल चिकित्सालय चाचा नेहरू अस्पताल (सीएनबीसी) में इमरजेंसी बेड पर 3 साल का विशाल प्रजापति बिल्कुल सुस्त और बेहाल पड़ा है।
विशाल लोनी के संगम विहार का रहने वाला है। उसकी मां डाउन टू अर्थ से बताती हैं "हम एक हफ्ते से यहां हैं। इसे बुखार, खांसी और निमोनिया की शिकायत है। वायु प्रदूषण जब भी बढ़ता है इसे परेशानी होने लगती है। पिछले साल भी इसे हम यहीं लेकर आए थे।"
चाचा नेहरू अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में विशाल की तरह एक बेड पर तीन और बच्चे भाप ले रहे हैं। ज्यादातर बच्चे दिल्ली में खतरनाक प्रदूषण बढ़ने के बाद एक या दो दिनों के भीतर बीमार पड़े हैं। ज्यादातर बच्चों में ऊपरी फेफड़े के संक्रमण यानी खांसी, बुखार, नजला आदि की शिकायत है। जबकि कुछ बच्चे निचले फेफड़ों के संक्रमण से भी परेशान हैं।
इलाज के लिए पहुंचे ज्यादातर बच्चे न सिर्फ गरीब परिवारों से हैं बल्कि कच्ची कॉलोनियों से आए हैं जहां उड़ती हुई धूल की परेशानी बहुत ज्यादा है। ऐसे ही मयूर विहार फेस 3 के खोड़ा कॉलोनी से आया एक परिवार इमरजेंसी बेड के किनारे अपने बच्चे को भाप दिलाता मिला। बच्चे का नाम वंश कुमार और उसकी उम्र एक साल से ज्यादा है। बच्चे के चाचा शरद कुमार बताते हैं "वंश को एक दिन पहले अस्पताल में लेकर आए। लगातार भाप देने के साथ ही दवाईयां भी दी जा रही हैं।"
सीएनबीसी अस्पताल के श्वसन रोग विभाग संबंधी ओपीडी में अपनी बारी का इंतजार कर रहे दीपांशु ठाकुर अपने 10 महीने के बच्चे यूवेन ठाकुर को दिखाने लाए हैं। डाउन टू अर्थ से वह बताते हैं कि इसे 2 नवंबर, 2023 से जुखाम और खांसी की परेशानी शुरू हुई है। केपीएमजी में काम करने वाले दीपांशु ठाकुर कहते हैं कि यह पहली बार है जब बच्चे को ऐसी दिक्कत हुई है। वह ओल्ड गोविंदपुरी एक्सटेंशन में रहते हैं। वह कहते हैं कि उनका मानना है कि बच्चे को दिल्ली के इस वायु प्रदूषण के कारण परेशानी हुई है।
दीपांशु बताते हैं कि चिकित्सक ने भी उनके बच्चे में ऊपरी फेफड़े के संक्रमण की पहचान की है और इसकी वजह वायु प्रदूषण को ठहाराया है। ओपीडी में बच्चों के इंडोक्राइन मामलों की जांच करने वाली विशेषज्ञ डॉक्टर मधु मित्तल बताती हैं कि वायु प्रदूषण से बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। दिल्ली के मौजूदा वायु प्रदूषण के कारण श्वसन मामलों में तेजी से बढ़ रही है।
इसी तरह चाचा नेहरू में मंडोली के नजदीक दिल्ली 93 से आए नौशाद अली ने अपनी 10 महीने की बच्ची मरियम को चिकित्सक को दिखाया। चिकित्सक ने उन्हें बच्चे को तीन बार भाप देने और घर पर भी भाप देते रहने की सलाह दी। नौशाद को उन्होंने बताया कि बच्चों को मास्क का इस्तेमाल कराएं। मौसम और प्रदूषण उनकी बच्ची के खांसी व सांसों की परेशानी के लिए जिम्मेवार हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) यह बात खुद बताता है कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के प्रभाव में रहने से बच्चों को श्वसन संबंधी बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है
राम मनोहर लोहिया अस्पताल के ओपीडी और इमरजेंसी में भी अस्थमा और निमोनिया से संबंधित मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। डॉक्टर डाउन टू अर्थ से यह बताते हैं कि आने वाले दिनों में यह संख्या और बढ़ सकती है। इमरजेंसी वार्ड में सीनियर रेजीडेंट डॉक्टर अंबावसन ए बताते हैं कि प्रदूषण के बढ़ते ही यहां इलाज कराने वालों की संख्या में बढोत्तरी हो रही है। आरएमएल में ज्यादातर रेफरल मामले होते हैं, रात होते ही यहां संख्या बढ़ने लगती है। वह बताते हैं कि ऐसे बच्चे जिनमें दिल की बीमारी होती है उनमें निमोनिया का होना लगभग तय होता है। ऐसे में प्रदूषण का मौसम आते ही इनमें जोखिम बढ़ जाता है।
पांच गुना ज्यादा पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) का प्रदूषण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक कई तरह के प्रदूषक हवा में मौजूद होते हैं, मसलन कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ), नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (एनओटू), ओजोन (ओथ्री) आदि। इनमें सबसे खतरनाक बेहद महीन विविक्त कण (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 है जो कि हवा में तैरती हुई तरल बूंदकणों और ठोस स्वरूप का मिश्रण है। इसका व्यास (डायामीटर) 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है, जो कि बिना यंत्र आंखों से दिखाई नहीं दे सकता।
पीएम 2.5 सभी तरह के कंबस्टन, मोटर वाहन और पावर प्लांट और औद्योगिक गतिविधियों से पैदा होता है। हालांकि कुछ पटाखों से भी यह बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जित होता है।
कई शोध पत्रों के मुताबिक पीएम 2.5 प्रदूषक को सेहत के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है जो कि श्वसन तंत्र को गहराई तक प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव तात्कालिक रूप में भी दिखाई या महसूस हो सकता है मसलन, आंख, नाक, गला और फेफड़ों में असहजता, कफ, नाक बहना और सांसों का फूलना हो सकते हैं। इसके अलावा दीर्घ अवधि तक इसके जद मेंं रहने वालों लोगों को गंभीर श्वसन तंत्र की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। यह अस्थमा और दिल की बीमारियों का भी कारक बन सकता है।
दिल्ली-एनसीआर में पार्टिकुलेट मैटर 10 और पार्टिकुलेट मैटर 2.5 आपात स्तर पर पहुंच चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा सेंट्रल कंट्रोल रूम फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट दिल्ली-एनसीआर में इन पार्टिकुलेट मैटर पर नजर रखता है।
सीपीसीबी के मुताबिक पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 2.5 का सामान्य स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होता है। जबकि 3 नवंबर, 2023 को खबर लिखते वक्त तक पीएम 2.5 अपने सामान्य स्तर से पांच गुना ज्यादा 301 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 10 अपने सामान्य मानक से पांच गुना ज्यादा 500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है। अगले 24 से 48 घंटे तक लगातार पीएम की यदि यही स्थिति रहती है तो वायु प्रदूषण की आपात स्थिति को घोषित करना होगा। दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक भी बहुत खराब से गंभीर स्तर पर पहुंच गया है। दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता गंभीर स्तर पर बनी हुई है।