दुनिया में लगातार बढ़ रहे एविएशन उद्योग से जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदुषण बढ़ रहा है। विमानों में इस्तेमाल होने वाले ईंधन के जलने से उत्सर्जन के रूप में वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) और कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) फैलती है। इससे जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ वायु प्रदूषण फैल रहा है। हालांकि इसकी मात्रा बेहद कम है, लेकिन इससे हर साल लगभग 16 हजार लोगों की मौत हो जाती है।
यह दावा अमेरिका स्थित मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) द्वारा किए गए एक शोध में किया गया है।
एमआईटी टीम ने पाया कि एविएशन के विकास में वृद्धि होने से जलवायु के साथ-साथ वायु की गुणवत्ता को दोगुना नुकसान होता है। शोध में विमानों के उत्सर्जन से जलवायु और हवा की गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभावों से होने वाले नुकसान को कैसे कम किया जाए, तथा व्यापार पर इसका क्या असर पडे़गा, इसका तुलनात्मक आकलन किया गया है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
लेबोरेटरी फॉर एविएशन एंड द एनवायरनमेंट इन एमआईटी डिपार्टमेंट ऑफ़ एरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स तथा इस अध्ययन के प्रमुख अध्ययन कर्ता डॉ. सेबेस्टियन ईस्टम ने कहा कि इंसानों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन में विमानों का उत्सर्जन भी अहम है। एविएशन सेक्टर दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन के लिए पांच फीसदी जिम्मेदार हैं।
जब आप पूरी उड़ान की बात करते हैं, उसमें टेकऑफ़, क्रूज़ और लैंडिंग से होने वाल उत्सर्जन भी शामिल होता है, विमान के उत्सर्जन से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण हर वर्ष समय से पहले लगभग 16 हजार मौतें हो जाती है। हांलाकि यह अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम है, वैश्विक वायु गुणवत्ता में गिरावट के कारण सालाना होने वाली कुल मौतों का लगभग 0.4 फीसदी है, लेकिन अक्सर इसे अनदेखा किया जाता है।
इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया हे कि एविएशन से जलवायु और हवा की गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभावों को कम करने के लिए नीति निर्माण, तकनीक और विमानों के संचालन में सुधार किया जा सकता है, जिसमें ईंधन दक्षता में सुधार, अधिक कठोर उत्सर्जन मानक, सीओ 2 उत्सर्जन को कम करने के लिए बाजार आधारित उपाय आदि शामिल हैं।
लेकिन यहां यह ध्यान में रखना होगा कि एक प्रकार के उत्सर्जन को कम करने से दूसरे प्रकार का उत्सर्जन बढ़ सकता है या उसको कम करने की लागत बढ़ सकती है।
डॉ. ईस्टम ने कहा कि हम कम दहन (लोअर कमबूस्टर) तापमान वाले इंजनों को डिजाइन करके नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। हालांकि इससे थर्मोडायनामिक कार्यक्षमता में कमी आएगी, जिसके परिणामस्वरूप अधिक ईंधन जलाने की आवश्यकता होगी, जिसका अर्थ है अधिक सीओ2 का उत्सर्जन होगा। इस तरह की चीजों का हल निकालना आवश्यक है, और यह अध्ययन इस पर निर्णय लेने वालों के लिए ऐसा करने का एक तेज़ तरीका बतलाता है।
डॉ. ईस्टम ने कहा कि हमने उत्सर्जित प्रदूषक की प्रति यूनिट सामाजिक लागत का अनुमान लगाकर उड़ानों के सभी चरणों में विमानों के उत्सर्जन का जलवायु और हवा की गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभावों की तुलना करने के लिए मैट्रिक्स तैयार किया है। मैट्रिक्स में उड़ानों के अलग-अलग चरणों जैसे क्रूज, लैंडिंग और टेक-ऑफ और उत्सर्जन किस जगह हो रहा है, दोनों को प्रति किलो उत्सर्जन और प्रति किलो ईंधन जलने में लगने वाली लागत आदि को शामिल किया गया है।
शोधकर्ताओं ने एविएशन से दुनिया पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए मैट्रिक्स को लागू किया, एविएशन की वर्तमान वार्षिक वृद्धि, इससे पड़ने वाले प्रभावों को रखा है। फिर उन्होंने इसे तीन परिदृश्यों के लिए एक बेंचमार्क के रूप में उपयोग किया।
डॉ. ईस्टम ने कहा कि हमारे परिणाम दिखाते हैं कि तीन चीजें 97 फीसदी जलवायु और वायु गुणवत्ता के नुकसान के लिए जिम्मेदार हैं, जिसमें प्रति यूनिट एविएशन ईंधन का जलना : 58 फीसदी एनओएक्स का हवा की गुणवत्ता पर प्रभाव, 25 प्रतिशत सीओ2 का जलवायु पर प्रभाव और 14 फीसदी की दर से जलवायु पर पड़ने वाला प्रभाव। एविएशन के जलवायु प्रभावों को कम करने के लिए, सीओ 2 उत्सर्जन को कम करना जरुरी है। इसके विपरीत, हमने पाया कि एनओएक्स की बहुत अधिक मात्रा के कारण वायु गुणवत्ता का स्तर खराब हो रहा है।
अंत में, हमने पाया कि एविएशन से होने वाले उत्सर्जन से हवा की गुणवत्ता प्रभाव जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों से काफी अधिक है, हवा की गुणवत्ता पर प्रभाव ईंधन के प्रति यूनिट जलवायु प्रभाव की तुलना में 1.7 से 4.4 गुना अधिक है।