स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते भारत में 2019 में 116,000 से भी ज्यादा नवजातों की मौत हुई, जबकि इसके चलते 16.7 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वैसे भी देश में शायद ही ऐसा कोई शहर है जो इस प्रदूषण के असर से बचा है। जबकि यदि वैश्विक आंकड़ों की बात करें तो इसके चलते 2019 में 476,000 नवजातों की मौत उनके जन्म के पहले महीने के भीतर ही हो गई थी। दुर्भाग्य पूर्ण यह है कि इनमें से करीब दो तिहाई (64 फीसदी) शिशुओं की मौत के लिए इंडोर एयर पॉलूशन यानी घर के भीतर का प्रदूषण जिम्मेवार है, जिसमें जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, लकड़ी और खाना पकाने के लिए गोबर का उपयोग और उससे हो रहे प्रदूषण की एक बड़ी भूमिका थी।
इस विषय पर हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया भर में करीब 400 करोड़ लोग आज भी खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला, केरोसिन और गोबर जैसे ईंधन पर निर्भर हैं। यह ईंधन बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं, जिसका असर ने केवल पर्यावरण बल्कि साथ ही खाना पकाने वाले के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण न केवल शिशुओं की मौत का कारण बन रहा है बल्कि इसके साथ ही अजन्मों के स्वास्थ्य पर भी असर डाल रहा है। गौरतलब है कि गर्भ में पल रहे शिशुओं को भी वायु प्रदूषण काफी नुकसान पहुंचा सकता है। यह बच्चों में कम वजन और समय से पहले जन्म का होना जैसी समस्यों को पैदा कर सकता है। जिसके चलते उनकी मौत तक हो सकती है। इसके साथ ही यह बच्चों के दिमागी विकास पर भी असर डाल सकता है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो रिपोर्ट के अनुसार 2019 में वायु प्रदूषण के चलते करीब 67 लाख लोगों की जान गई थी। वायु प्रदूषण के चलते स्ट्रोक, दिल के दौरे, मधुमेह, फेफड़ों के कैंसर और सांस से जुडी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
दिल्ली सहित देश के कई अन्य बड़े शहरों में अंतराष्ट्रीय मानकों से कहीं ज्यादा है प्रदूषण का स्तर
भारत के लिए वायु प्रदूषण वैसे भी कोई नई समस्या नहीं है। बस केवल उसका समाधान अब तक नहीं निकल पाया है। दिल्ली, कानपुर, फरीदाबाद, गया, वाराणसी, पटना, लखनऊ आदि शहरों को पहले ही दुनिया के सबसे प्रदूषित की लिस्ट में शुमार कर लिया गया है। इस रिपोर्ट के भी अनुसार देश में पीएम 2.5 का स्तर 2010 के बाद से लगातार बढ़ रहा है। जिसका खुलासा डाउन टू अर्थ की स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2020 रिपोर्ट में भी किया गया था। जिसके अनुसार देश के कई बड़े शहरों में प्रदूषकों का स्तर अंतराष्ट्रीय मानकों से कहीं ज्यादा है।
यह रिपोर्ट 2019 के आंकड़ों पर आधारित है इसलिए इसमें कोरोनावायरस और उससे जुड़े लॉकडाउन और नीतियों के असर को शामिल नहीं किया गया है। लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि बढ़ता वायु प्रदूषण कोरोनावायरस के असर को और बढ़ा सकता है जिससे उससे होने वाली मौतों में भी इजाफा हो सकता है। शोध के अनुसार जिस शहर में वर्षों पहले भी पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा था वहां कोविड-19 के कारण मृत्युदर के अधिक होने का खतरा कहीं ज्यादा है।
वायु प्रदूषण का खतरा कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते असमय मारे जाते हैं। जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रति व्यक्ति तीन साल छीन रहा है। शोध के अनुसार वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर असर डाल रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशों के लोग बन रहे हैं।
साक्ष्य मौजूद हैं वायु प्रदूषण न केवल दुनिया भर में होने वाली अनेकों मौतों के लिए जिम्मेदार है बल्कि इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। आज इसके कारण दुनिया भर में कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जिससे कोई नहीं बच सकता और न ही कोई इससे भाग सकता है। ऐसे में इससे बचने का सिर्फ एक तरीका है, जितना हो सके इसे कम किया जाए।