दिल्ली-एनसीआर समेत समूचे उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता की स्थिति खराब हो चली है। कई प्रयासों और अदालतों के आदेश के बावजूद हरियाणा-पंजाब में पराली का जलाना रफ्तार पकड़ रहा है। पराली प्रबंधन के लिए सरकारी प्रयासों की कलई खुलती नजर आ रही है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारत में सिस्टम ऑफ एयर क्ववालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) के मुताबिक पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाओं में दिनों-दिन बढ़ोत्तरी हो रही है। इसके कारण सिर्फ दिल्ली-एनसीआर ही नहीं बल्कि पराली वाले स्थानों पर भी स्थानीय प्रदूषण में बढोत्तरी हो रही है।
सफर एजेंसी के मुताबिक 13 अक्तूबर को पंजाब-हरियाणा में पराली जलाए जाने की 357 घटनाएं दर्ज की गईं। वहीं, प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 15 अक्तूबर,2020 से दिल्ली-एनसीआर में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी यानी ग्रैप) भी लागू होगा।
एजेंसियों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में मौसम की गतिविधियां और हवाओं का रुख इस प्रदूषण को बढ़ाने वाला साबित होगा। ऐसे में स्थिति और बदतर हो सकती है। दिल्ली और आस-पास शहरों की वायु गुणवत्ता में हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम- महीन प्रदूषण कण) हवा में लगातार बढ़ रहे हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के 24 घंटे निगरानी वाले सीसीआर के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर की हवा में सेहत के लिए ज्यादा हानिकारक और आंखों से न दिखाई देने वाले पीएम कणों में सितंबर के बाद से ही बढ़ोत्तरी जारी है।
सीपीसीबी के दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक 24 सितंबर, 2020 के को शाम छह बजे पीएम 2.5 की स्थिति 70 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी, जो कि 14 अक्तूबर, 2020 को शाम सात बजे तक 118 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज की गई। यह सामान्य मानकों 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 2 गुना अधिक स्तर है। वहीं, पीएम 10 यानी अपेक्षाकृत मोटे प्रदूषित कण की स्थिति भी 27 सितंबर, 2020 को 110 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से 14 अक्तूबर, 2020 को बढ़कर 247 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया है। बीते 10 दिनों से पीएम की स्थिति हवा में लगभग दोगुनी बनी हुई है। पीएम 10 का स्तर 500 और पीएम 2.5 का स्तर 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक होने पर आपात स्तर कहलाता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के जरिए दिल्ली-एनसीआर में पार्टिकुलेट मैटर स्तर की 24घंटे निगरानी रखी जाती है। ऐसा कई वर्षों से जांचा-परखा गया है कि 20 सितंबर के बाद नवंबर महीने तक दिल्ली-एनसीआर की हवा में आंखों से न दिखाई देने वाले खतरनाक महीन प्रदूषित कणों (पीएम 2.5 और पीएम 10) का स्तर काफी बढ़ जाता है। क्योंकि पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश में इसी समान अवधि (20 सितंबर- 15 नवंबर) तक किसानों को जल्द से जल्द खेतों में रबी सीजन के फसल अवशेषों को नष्ट करके आलू और गेहूं की खेती करनी होती है।
वहीं, सफर एजेंसी के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 में पराली जलाए जाने के कारण बढोत्तरी का असर अभी काफी कम है। यानी पीएम 2.5 बढ़ने में स्थानीय कारक ज्यादा जिम्मेदार हैं। जबकि 16 और 17 अक्तूबर तक वायु गुणवत्ता की स्थिति बहुत बेहतर होने की उम्मीद नहीं है।
विभिन्न शहरों की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई)
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मुताबिक 14 अक्तूबर को दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के अन्य शहरों की 24 घंटे वाली औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) खराब और बहुत खराब स्तर पर ही रिकॉर्ड की गई। दिल्ली में 276, फरीदाबाद में 265, फतेहाबाद में 314, गाजियाबाद में 291, ग्रेटर नोएडा में 296, गुरुग्राम में 279, धौरहरा में 276, आगरा में 207, बागपत में 317, बहादुरगढ़ में 276, भिवाड़ी में 284, बुलंदशहर में 238, चरखी दादरी में 347, अंबाला में 275, हिसार में 312, जींद में 312 एक्यूआई दर्ज किया गया।
0-50 बेहतर गुणवत्ता, 51 से 100 संतोषजनक, 101 से 200 मॉडरेट, 201 से 300 खराब, 301 से 400 बहुत खराब, 401 से 500 गंभीर, 501 से अधिक आपात स्तर का एक्यूआई स्तर प्रदर्शित करता है।