कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किये गए लॉकडाउन का एक और सकारात्मक पहलु सामने आया है। उत्तर भारत में जो हवा पिछले 20 सालों के दौरान किये गए प्रयासों से साफ नहीं हुई। वो देश में तालाबंदी के चलते साफ हो गयी है। गौरतलब है कि 25 मार्च 2020 से भारत सरकार ने देश में तालाबंदी कर दी है। जिसका उद्देश्य कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकना था। इस तालाबंदी के चलते देश कि हवा भी साफ हो गयी है। नासा द्वारा जारी उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि उत्तर भारत में एयरोसोल का स्तर पिछले 20 सालों के सबसे न्यूनतम स्तर पर आ गया है। जिसके पीछे लॉकडाउन एक बड़ी वजह है। क्योंकि इसी के चलते देश में फैक्ट्री, कार, बस, ट्रक, विमान और अन्य सेवाएं बंद कर दी गयी थी।
इससे पहले दिल्ली की हवा इतनी दूषित हो गयी थी कि उसकी वजह से दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाने लगा था। लेकिन तालाबंदी के बाद से दिल्ली की हवा में भी काफी सुधार आया है। गौरतलब है हर साल मानव निर्मित एयरोसोल के चलते देश के कई शहरों में हवा कि गुणवत्ता ख़राब हो जाती है। यह एयरोसोल हवा में घुले वो तरल और ठोस कण होते हैं जो हमारे शरीर में फेफड़ों और दिल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनमें से कुछ एयरोसोल तो जंगल में लगने वाली आग, धूल भरी आंधी और ज्वालामुखी की राख आदि से निकलते हैं। जबकि कुछ इंसानों द्वारा उत्सर्जित होते हैं जैसे फसलों को जलाना, फैक्ट्रियों और वाहनों से निकले धुंए और प्रदूषकों से फैलते हैं।
नासा की यूनिवर्सिटीज स्पेस रिसर्च एसोसिएशन के वैज्ञानिक पवन गुप्ता ने बताया कि, "हमें यह तो पता था कि लॉकडाउन के चलते कई जगह पर प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी" "लेकिन वर्ष के इस समय में यह उत्तर भारत में इतनी हो जाएगी, इसकी उम्मीद नहीं थी।" हाल ही में उससे जुडी कुछ तस्वीरें भी नासा ने साझा कि हैं जिसमें साफ तौर पर देखा जा सकता है कि तालाबंदी के बाद से हवा में मौजूद एयरोसोल कि मात्रा में रिकॉर्ड कमी आयी है। आमतौर पर साल के इस समय 31 मार्च से 5 अप्रैल के बीच एयरोसोल का स्तर ज्यादा रहता है। पर इस साल 2020 के दौरान इसमें कमी देखने को मिली है।
नासा द्वारा जारी इन 6 नक्शों के लिए डेटा को टेरा उपग्रह पर मॉडरेट रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोमाडोमीटर द्वारा प्राप्त किया गया है। इन 6 में से पहले 6 नक़्शे 2016 से 2020 के बीच एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ (एओडी) को दिखाते हैं। जबकि अंतिम मैप 2016 से 2020 के बीच विसंगति को दर्शाता है। गौरतलब है कि एओडी की मदद से यह मापा जा सकता है कि एयरोसोल प्रकाश को अवशोषित या प्रतिबिंबित कैसे करतें हैं। जब एयरोसोल सतह के पास होते हैं तब एओडी की माप 1 या उससे ऊपर होती है। जिसका अर्थ होता है वायु धुंधली है जो कि प्रदूषण को दिखाती है। वहीँ जब ऑप्टिकल डेप्थ वातावरण में ऊर्ध्वाधर रूप से 0.1 या उससे कम गहरी होती है। तो हवा को स्वच्छ माना जाता है। जब 2020 में एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ को देखा गया तो लॉकडाउन के दिन यानि 25 मार्च को यह उत्तर भारत में 0.3 थी। जोकि 1 अप्रैल को 0.2 और 5 अप्रैल तक 0.1 पर पहुंच गयी थी। जिसका साफ़ मतलब है कि इस दौरान हवा साफ़ हो रही थी।
गुप्ता के अनुसार “लॉकडाउन के तुरंत बाद से प्रदूषण में आ रही गिरावट को मापना कठिन था। हालांकि हमने लॉकडाउन के पहले हफ्ते में ही प्रदूषण में गिरावट दर्ज की थी पर वो लॉकडाउन और बारिश के सामिलित प्रभाव के कारण हुआ था। 27 मार्च को उत्तर भारत में भरी बारिश हुई थी जिसके चलते प्रदूषण में गिरावट आ गई थी। हालांकि मुझे यह जानकर हैरानी हुई की प्रदूषण में आ रही यह गिरावट बारिश के बाद भी जारी रही थी।“
वैज्ञानिकों के अनुसार सामान्यतः उत्तर भारत में बसंत के मौसम में शहरी क्षेत्रों में एयरोसोल की मात्रा बढ़ जाती है। जोकि थर्मल पावर प्लांट, वाहनों और उद्योगों से निकलने वाले नाइट्रेट्स और सल्फेट्स के कारण होता है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में चूल्हे और फसलों के जलने से बढ़ जाता है। पर तालाबंदी के चलते इन सब पर रोक लगा दी गई थी जिस वजह से एयरोसोल में गिरावट आ गई। गुप्ता के अनुसार यही वजह थी की अप्रैल की शुरुवात में उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों से साफ दिख रहा था कि प्रदूषण पिछले 20 सालों के न्यूनतम स्तर पर चला गया है। इसके साथ ही जमीन पर मौजूद स्टेशनों ने भी प्रदूषण के कम होने की जानकारी दी है।
हालांकि दक्षिण भारत में कहानी कुछ अलग है। डाटा के अनुसार वहां प्रदूषण का स्तर अब भी कम नहीं हुआ है। वास्तव में वो पिछले चार वर्षों की तुलना में थोड़ा अधिक है। हालांकि उसके बारे में पूरी तरह कुछ नहीं कह सकते पर शायद यह मौसम, खेतों में लगायी आग या फिर हवा और अन्य कारकों से हो सकता है।
इसके साथ ही वैज्ञानिकों को आशंका है कि आने वाले कुछ हफ़्तों में एयरोसोल का स्तर बढ़ सकता है। क्योंकि साल के इस वक्त में धूल भरी आंधी आती है जो इनको बढ़ा सकती है। पर कुछ भी हो लॉकडाउन के चलते हवा की गुणवत्ता में सुधार तो आया है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि एक बार जब तालाबंदी ख़त्म होगी तो कितनी तेजी से प्रदूषण का यह स्तर पहले जैसा हो जायेगा। या फिर इससे कुछ सीख लेकर हम आने वाले वक्त में प्रदूषण को रोकने का प्रयास करेंगे। क्योंकि भारत में यही प्रदूषण हर साल लाखों लोगों कि मौत का कारण बनता है।