वायु प्रदूषण से दुनियाभर में होने वाली मौतों में 28 फीसदी है भारत की हिस्सेदारी

केंद्र सरकार का कहना है कि ऐसा कोई डाटा या तथ्य नहीं है जो वायु प्रदूषण से बीमारी होने की पुष्टि करे। लेकिन अब एक नई रिपोर्ट साबित करती है कि दुनियाभर में प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा भारत में हुईं। इतना ही नहीं समय से पूर्व होने वाली 25 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं।
वायु प्रदूषण से दुनियाभर में होने वाली मौतों में 28 फीसदी है भारत की हिस्सेदारी
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सही निर्णय लेने और योजनाएं बनाने के लिए डाटा सबसे अहम जानकारी का काम करता है, इसके बावजूद नीति निर्माता उसे मानने से अक्सर इनकार कर देते हैं। इसका एक आला नमूना है दिल्ली की बद से बदतर होती आबोहावा। हालांकि दिल्ली सरकार ने कई अभियान चलाकर बताया कि कैसे शहर में प्रदूषण के स्तर को नियंत्रण में लिया गया, लेकिन दिवाली के बाद नवंबर में हालात इस कदर बिगड़ गए कि दिल्ली में स्वास्थ्य आपातकाल लागू कर दिया गया।

इसके बाद भी केंद्र सरकार इस बात पर अड़ी हुई है कि वायु प्रदूषण से बीमारियां होने का डाटा या तथ्य मौजूद नहीं हैं। लेकिन अब एक नई रिपोर्ट जारी हुई है जो साबित करती है कि दुनियाभर में प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में सबसे ज्यादा भारत में हुईं। इतना ही नहीं समय से पूर्व होने वाली 25 फीसदी मौतें वायु प्रदूषण के कारण हुईं। इस रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक तौर पर वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बीमारियों का कारण है और इसके चलते सबसे ज्यादा मौतों के मामले में चीन के बाद भारत का ही नंबर आता है। 

वायु प्रदूषण से होने वाली असामयिक मौतों में भारत की हिस्सेदारी 28 फीसदी

2017 तक के वैश्विक और क्षेत्रीय डाटा पर आधारित इस रिपोर्ट का कहना है कि, 2017 में दुनियाभर में प्रदूषण के चलते होने वाली असामयिक मौताें में भारत की हिस्सेदारी 28 फीसदी रही। 2017 में होने वाली 83 लाख असामयिक मौतों में से 49 लाख प्रदूषण के चलते हुईं। इन मौतों में से तकरीबन 25 फीसदी मौतें भारत में हुईं। दो साल पहले प्रदूषण और स्वास्थ्य पर लांसेट कमीशन ने 2015 तक दुनियाभर में प्रदूषण के कारण इंसानी जीवन को होने वाली क्षति के बारे में डाटा जारी किया था। अब ग्लोबल आलियांस ऑन हेल्थ एंड पॉल्यूशन की नई रिपोर्ट ने लांसेट कमीशन की रिपोर्ट के डाटा को 2017 के नए डाटा से अपडेट किया है। 

सरकार को दिखानी होगी सक्रियता

प्रकाश जावड़ेकर ने हाल ही में भारत में स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के प्रभाव को नकार दिया था। इस नई रिपोर्ट का डाटा बयान को खारिज करता है। दिल्ली स्थित ग्लोबल थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट (सीएसई) ने सरकार से मांग की है कि वायु प्रदूषण के क्षेत्र में रिसर्च करने के लिए मजबूत नीति बनाएं। सीएसई का कहना है कि स्वास्थ्य आधारित मानकों को वायु प्रदूषण नियंत्रण का आधार बनाया जाना चाहिए। संस्था का कहना है कि सिर्फ ऐसा करने से वायु प्रदूषण नियंत्रित करने की राह में आने वाली इंडस्ट्रियल और पॉलिटिकल बाधाओं को दूर किया जा सकेगा।

भले ही पर्यावरण मंत्रालय इस बात को अस्वीकार करे, लेकिन चीन में वायु प्रदूषण के कारण हुई 18.6 लाख मौतों के बाद दूसरा नंबर भारत का ही आता है। रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के कारण होने वाली कुल मौतों में से आधी चीनी और भारतीय शहरों में हुई हैं। रिपोर्ट का कहना है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया में होने वाली मौतों में वायु प्रदूषण के चलते 55 फीसदी मौतें हुईं। 

औद्योगीकरण और शहरीकरण हैं इन मौतों के जिम्मेदार

मॉर्डन पॉल्यूशन या औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण फैलने वाले प्रदूषण के चलते असामयिक मौतों की आंकड़ा तेजी से बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट का कहना है कि ऐसी स्थिति में यह जरूरी है कि वैश्विक और क्षेत्रीय विकास के एजेंडे में इस समस्या को शामिल किया जाए। लिहाजा देश में स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के असर की सच्चाई को नकारने की बजाय सरकार को इस हकीकत से निपटने के लिए त्वरित एक्शन लेना चाहिए। देश के अधिकतर शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों से कहीं अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की डायरेक्टर मारिया नेरिया ने भी यह बात रखी थी। 

स्टेट ऑफ इनवायरनमेंट इन फिगर्स, 2019 रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख किया गया कि वायु प्रदूषण देश में होने वाली कुल मौतों में से 12.5 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। इतना ही नहीं इस हवा का बच्चों पर पड़ने वाला प्रभाव भी काफी चिंताजनक है। देश में पांच साल से कम उम्र के एक लाख बच्चों की मृत्यु खराब हवा के कारण होती है। 

सामान्य जीवन जीने में बाधा डालता है वायु प्रदूषण

रिपोर्ट का कहना है कि प्रदूषण के भीषण वैश्विक प्रभाव न सिर्फ असामयिक मृत्यु के रूप में सामने आते हैं, बल्कि यह स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और एक सामान्य जिंदगी जीने और उसका आनंद लेने में भी बाधा डालते हैं। प्रदूषण के खराब प्रभावों में गैर-संक्रामक रोग भी शामिल हैं। इसके चलते होने वाले प्रभावों में दो-तिहाई हिस्सेदारी गैर-संक्रामक रोगों की है। रिपोर्ट के मुताबिक, वायु, जल, लेड और व्यावसायिक प्रदूषण कुल हृदय रोगों के कारण मौतों में 17 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं, इश्चेमिक हृदय रोगों (हृदय तक रक्त का बहाव कम होना) के कारण मृत्यु में 21 फीसदी हिस्सेदारी, स्ट्राेक से होने वाली मौतों में 16 फीसदी, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सांस लेने में गंभीर परेशानी) के कारण होने वाली मौतों में 56 फीसदी और फेफड़ों के कैंसर से होने वाली मौतों में 33 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर प्रदूषण के चलते तकरीबन 25.5 लाख डिसेबिलिटी एडजस्टेड लाइफ ईयर्स (DALYs) की क्षति होती है। खराब स्वास्थ्य, डिसेबिलिटी या असामयिक मृत्यु के कारण किसी व्यक्ति के जीवन से जितने वर्षों की क्षति होती है, उन्हें इस श्रेणी में गिना जाता है। इन 25.5 लाख वर्षों में से 53 फीसदी या तकरीबन 14.7 लाख वर्षों पर वायु प्रदूषण की हिस्सेदारी है। जल प्रदूषण 8.4 लाख DALYs के लिए और लेड प्रदूषण 2.4 लाख DALYs के लिए जिम्मेदार है। 

2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल टुडोर्स अधनॉम ग्रेब्रियेसस ने वायु प्रदूषण को 'साइलेंट पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ नाम दिया था और इसे 2019 का सबसे बड़ा पर्यावरणीय खतरा घोषित किया था। मानवाधिकार और पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र के खास प्रतिवेदक डेविड बोय्ड के मुताबिक, स्वच्छ हवा प्रदान न कर पाना जीवन, स्वास्थ्य और सेहत के अधिकारों का उल्लंघन है। इसके साथ ही यह एक स्वस्थ पर्यावरण में जीने के अधिकार का भी उल्लंघन है। इस दशक के खत्म होते-होते इस रिपोर्ट को 'जेनेवा एक्शन एजेंडा टू कॉम्बैट एयर पॉल्यूशन’ पर कार्रवाई करने के लिए चेतावनी के तौर पर देखा जा सकता है, ताकि वायु प्रदूषण के चलते बीमारियों और मौतों को रोका जा सके। साथ ही 2030 तक वायु प्रदूषण के चलते होने वाली मौतों को दो-तिहाई कम किया जा सके। 

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