किफायती एयर सेंसर नेटवर्क जो प्रदूषण का सटीक पूर्वानुमान लगा सकता है

घनी आबादी वाले शहरों में सस्ती, पोर्टेबल वायु गुणवत्ता की निगरानी का नेटवर्क जो प्रदूषण का सटीक पूर्वानुमान लगा सकता है और लोगों को चेतावनी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, फ्रेडरिकनोरोन्हा
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वायु गुणवत्ता का पूर्वानुमान लगाने में सुधार किया जा सकता है। इसके लिए हाल ही में एक अध्ययन किया गया, जिसमें प्रदूषण के सटीक मानचित्रों को हासिल करने के लिए 28 कस्टम-डिजाइन तैयार किए गए। इसमें किफायती पोर्टेबल वायु गुणवत्ता सेंसर की निगरानी नेटवर्क से दो साल के आंकड़ों को हासिल करने के लिए सटीक स्पशटेम्पोरल भविष्यवाणी मॉडल का उपयोग किया गया।

अध्ययन के मुताबिक घनी आबादी वाले शहरों में सस्ती, पोर्टेबल वायु गुणवत्ता की निगरानी का एक नेटवर्क जो प्रदूषण का सटीक पूर्वानुमान लगा सकता है और लोगों को चेतावनी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

शोध इस बात पर जोर देता है कि अधिक लागत होने से अक्सर शहरों की सरकारें वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले उपकरणों को लगाने से बचते हैं। ये उपकरण सार्वजनिक वायु-गुणवत्ता सूचकांक के आंकड़े प्रदान करने के लिए अहम होते हैं। जैसे कि दिल्ली के लिए केवल 33 रेफरेंस-ग्रेड मॉनिटर उपलब्ध हैं, यहां की आबादी 1.5 करोड़ है।

येल विश्वविद्यालय, वारविक, ईपीआईसी, स्विस डेटा सेंटर, काई एयर मॉनिटरिंग प्राइवेट लिमिटेड और न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के शोधकर्ताओं ने शहरी वायु गुणवत्ता के मॉडल और भविष्यवाणी करने के लिए एक किफायती सेंसर का सुझाव दिया है।

वारविक विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर अनंत सुदर्शन ने बताया कि हमारा शोध एक मॉडल को विकसित करता है जो वायु गुणवत्ता का सटीक पूर्वानुमान और आकलन कर सकता है। इसलिए हमने उच्च और निम्न-गुणवत्ता वाले सेंसर को आपस में जोड़ने और सटीक, सूक्ष्म प्रदूषण मानचित्र बनाने के लिए मशीन-लर्निंग विधियों का उपयोग किया।

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर लक्ष्मीनारायण सुब्रमण्यन ने कहा हमारे आंकड़ों में 28 किफायती सेंसर और 32 सरकारी मॉनिटर, कुल 60 निगरानी करने वाले यंत्रों से पीएम 2.5 की मात्रा के आंकड़े जमा किए गए हैं, जो 2018 से 2020 के बीच 24 महीनों में एकत्र किए गए हैं।

नई मशीन-लर्निंग विधियों का उपयोग करते हुए, हम यह दिखाते हैं कि कैसे कम लागत पर सूक्ष्म प्रदूषण संवेदन मानचित्र विकसित किया जा सकता है। यह एक ऐसी तकनीक है जो अन्य प्रदूषित शहरों में निगरानी नेटवर्क के रूप में लगाई जा सकती है, विशेषकर जहां के मौजूदा आंकड़े सही नहीं हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली में 60 सेंसरों ने दो साल तक की निगरानी की, इस दौरान रोज के स्तर पर 641 दिनों में से 371 दिनों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के पीएम 2.5 वायु गुणवत्ता मानकों को पार कर लिया था।

येल के आर्थिक विकास केंद्र के निदेशक और सह-अध्ययनकर्ता  रोहिणी पांडे ने नीति निर्माण में कैसे योगदान दिया जा सकता है, इस बारे में कहा, कि ये सटीक सूक्ष्म प्रदूषण संवेदन मानचित्र कम लागत वाली निगरानी करने के लिए एक रास्ता दिखाते हैं। यह प्रणाली खतरनाक शहरी वायु गुणवत्ता का पता लगाते हैं।   

पांडे ने आगे कहा वायु गुणवत्ता की भविष्यवाणी में सुधार, विशेष प्रदूषण वाले हॉटस्पॉट जैसे बस स्टेशनों, बाजारों आदि में हासिल किया जा सकता है और शहर के प्रदूषण की जानकारी दे सकता है।

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि इस तरह के सटीक, सूक्ष्म प्रदूषण संवेदन मानचित्र नीति निर्माताओं द्वारा यह तय करने में प्रयोग करने योग्य है कि किस शहर तथा इसके सटे इलाकों की वायु गुणवत्ता और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करने की आवश्यकता है।

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