नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में मामूली वृद्धि भी बढ़ा सकती है हृदय और सांस सम्बन्धी मौतों का आंकड़ा

वायु में प्रति घन मीटर 10 माइक्रोग्राम एनओ2 की वृद्धि से कुल मौतों में 0.46 फीसदी का इजाफा हो सकता है
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में मामूली वृद्धि भी बढ़ा सकती है हृदय और सांस सम्बन्धी मौतों का आंकड़ा
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नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के स्तर में हुई मामूली सी वृद्धि भी हृदय और सांस सम्बन्धी मौतों के जोखिम में इजाफा कर सकती है। एक नए शोध से पता चला है कि यदि पिछले दिन की तुलना में प्रति घन मीटर 10 माइक्रोग्राम एनओ2 की वृद्धि होती है तो उससे मरने वाले की कुल संख्या में 0.46 फीसदी का इजाफा हो सकता है, जबकि इससे हृदय सम्बन्धी मौतों में करीब 0.37 फीसदी और सांस सम्बन्धी मौतों में 0.47 फीसदी का इजाफा हो सकता है। यह शोध 24 मार्च 2020 को ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड बहुत आम वायु प्रदूषक है जो आमतौर पर बिजली, परिवहन और उद्योगों आदि के लिए ईंधन जलाने से बनता है। हवा में इसकी मात्रा को माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर में मापा जाता है। माइक्रोग्राम, एक ग्राम का दसवां हिस्सा होता है। इस बाबत विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी वायु गुणवत्ता सम्बन्धी दिशानिर्देशों को देखें तो हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का वार्षिक औसत स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

इससे पहले भी कई शोधों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में जानकारी दी है, लेकिन वो अध्ययन बहुत ही छोटे अंतराल पर किए गए थे, साथ ही उन्हें किसी क्षेत्र विशेष में किया गया था जिस वजह से वो इसकी व्यापक तस्वीर प्रस्तुत नहीं हो पाई थी और परिणामों में अनिश्चितता बनी हुई थी। इस अनिश्चितता को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम ने दुनिया भर के कई देशों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा और उसके हृदय और सांस सम्बन्धी मौतों के बीच के सम्बन्ध को समझने का प्रयास किया है।   

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

यह शोध 22 देशों के 398 शहरों पर किया गया था। यह शहर यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया के थे। जहां 45 वर्षों (1973 से 2018) की अवधि में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की दैनिक मात्रा को मापा गया था। इन शहरों में औसत तापमान और आर्द्रता सहित मौसम के दैनिक आंकड़ों को भी दर्ज किया गया था। इसके साथ ही इन देशों के अधिकारियों से मृत्यु सम्बन्धी रिकॉर्ड भी प्राप्त किए गए थे। जहां 45 वर्षों की अवधि में कुल 6.28 करोड़ मौते दर्ज की गई थी। जिनमें से 1.97 करोड़ या 31.5 फीसदी हृदय संबंधी और 55 लाख करीब 8.7 फीसदी सांस सम्बन्धी बीमारियों से जुड़ी थी। शोध से पता चला है कि यदि पिछले दिन की तुलना में प्रति घन मीटर 10 माइक्रोग्राम एनओ2 की वृद्धि होती है तो उससे मरने वाले की कुल संख्या में 0.46 फीसदी का इजाफा हो सकता है जबकि इससे हृदय सम्बन्धी मौतों में करीब 0.37 फीसदी और सांस सम्बन्धी मौतों में 0.47 फीसदी का इजाफा हो सकता है। यही नहीं अन्य वायु प्रदूषकों जैसे सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन और अन्य बारीक कणों की मात्रा में आए अंतर के बावजूद भी यह निष्कर्ष समान ही थे।

ऐसे में शोधकर्ताओं का मानना है कि वायु गुणवत्ता सम्बन्धी दिशानिर्देशों को संशोधित करने और उन्हें ज्यादा कठोर करने की जरुरत है। जिससे भविष्य में इनसे होने वाली मौतों और हृदय और सांस सम्बन्धी बीमारियों के जोखिम को सीमित किया जा सके।

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