श्मशान घाटों में शव जलाने से होने वाले प्रदूषण की जांच के लिए समिति गठित

कोलकाता व हावड़ा के श्मशान घाटों में लकड़ियों में शव जलाने से होने वाले प्रदूषण की शिकायत एनजीटी से की गई है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पश्चिम बंगाल के हावड़ा और कोलकाता में लकड़ी की चिता पर किए जाने वाले पारंपरिक दाह संस्कार विधियों से होने वाले वायु प्रदूषण के मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन करने को भी कहा है।

2 जनवरी, 2025 को हुई सुनवाई में एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि जांच समिति शवदाह घाटों का दौरा करेगी और अपील में लगाए गए आरोपों के संबंध में चार सप्ताह के भीतर हलफनामे पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। अदालत ने कहा कि यदि पर्यावरण उल्लंघन पाए जाते हैं, तो समिति को उपचारात्मक उपाय और प्रस्तावित कार्रवाई का सुझाव भी देना चाहिए।

एनजीटी में दायर एक अपील में कहा गया है कि लकड़ियों हावड़ा और कोलकाता की नगर निकाय को निर्देश देने की मांग की थी, ताकि वे लकड़ियों की चिता पर दाह संस्कार की पारंपरिक विधियों से उत्पन्न प्रदूषण को नियंत्रित करें।

अपील में यह भी कहा गया है कि हावड़ा और कोलकाता के विभिन्न श्मशान घाटों में बिजली से चलने वाले भट्टियां भी हवा में गाढ़ा काला धुआं छोड़ती हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण होता है। आवेदक ने हावड़ा नगर निगम और कोलकाता नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में आने वाले श्मशान घाटों की सूची दी है।

अपील के मुताबिक शहरों के बेतहाशा विकास के कारण इनमें से कई श्मशान घाट रिहायशी इलाकों में स्थित हैं। यह भी कहा गया कि एक शव को जलाने के लिए लगभग 300-500 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग होता है। कई बार इलेक्ट्रिक शवदाह गृह भी काम नहीं करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मृतक के रिश्तेदारों को लकड़ी के दाह संस्कार की विधि का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

आवेदक ने कहा कि प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की वेबसाइट से उन्हें पता चला है कि राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने पायर फ्यूम कलेक्शन सिस्टम (पीएफसीएस) विकसित किया है और ऐसी प्रणाली नई दिल्ली के निगम बोध घाट पर पहले ही स्थापित की जा चुकी है।

यह कहा गया कि एक अन्य समाचार से आवेदक को पता चला है कि कोलकाता नगर निगम ने 2012 में श्री श्री रामकृष्ण महाशासन बर्निंग घाट (जिसे कोसीपुर बर्निंग घाट भी कहा जाता है) में लकड़ी की चिताओं पर वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण (एपीसीडी) स्थापित किया है। हालांकि 30 अक्टूबर, 2024 को आवेदक के दौरे पर, रखरखाव की कमी के कारण बर्निंग घाट बहुत खराब स्थिति में पाया गया।

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