जहरीली हवा में सांस ले रही है दुनिया की 99 फीसदी आबादी: विश्व स्वास्थ्य संगठन

दुनिया भर में 782 करोड़ से ज्यादा लोग जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जो उन्हें हर पल मौत की ओर ले जा रही है
जहरीली हवा में सांस ले रही है दुनिया की 99 फीसदी आबादी: विश्व स्वास्थ्य संगठन
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विश्व की 99 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस ले रही है। इसका मतलब है कि दुनिया भर में करीब 782 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर हैं, जिसमें वायु प्रदूषण का स्तर डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों से ज्यादा है। देखा जाए तो हवा में घुला यह जहर उनके स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है।

यह जानकारी वायु प्रदूषण को लेकर आज विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों में सामने आई है। इस डाटाबेस को विश्व स्वास्थ्य दिवस के सन्दर्भ में जारी किया गया है। यह पहला मौका है जब इस डेटाबेस में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को भी शामिल किया गया है। 

दुनिया में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि हवा में घुला यह जहर हर साल 70 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रहा है। हालांकि डब्लूएचओ ने यह भी जानकारी दी है कि पहले की तुलना में अब कहीं ज्यादा शहर वायु गुणवत्ता की निगरानी कर रहे हैं। गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले शहरों की संख्या में पहले की तुलना में 2,000 शहरों का इजाफा हुआ है। 

देखा जाए तो 2011 में इस डेटाबेस लॉन्च होने के बाद से वायु गुणवत्ता के आंकड़ों को साझा करने वाले शहरों की संख्या में छह गुना की वृद्धि हुई है। आंकड़ों के मुताबिक 117 देशों के 6,000 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है।

लेकिन इसके बावजूद वहां वायु गुणवत्ता में कोई खास सुधार नहीं आया है। इन शहरों में रहने वाले लोग अभी भी पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक स्तर में सांस ले रहे हैं। देखा जाए तो यह जोखिम निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कहीं ज्यादा है।    

गौरतलब है कि जहां उच्च आय वाले देशों में निगरानी किए गए 17 फीसदी शहरों में पीएम10 और पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा तय सीमा के भीतर था जबकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह आंकड़ा एक फीसदी से भी कम दर्ज किया गया है। 

आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के करीब 74 देशों में 4000 शहरों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सम्बन्धी आंकड़े एकत्र किए जा रहे हैं, जिनसे पता चला है कि इन स्थानों की लगभग 23 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जो डब्लूएचओ के वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों को पूरा नहीं करते हैं। 

स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है प्रदूषण का यह स्तर

शोध के अनुसार पार्टिकुलेट मैटर, विशेष रूप से पीएम 2.5 फेफड़ों और यहां तक की रक्त प्रवाह में भी प्रवेश कर सकता है जिससे हृदय आघात, स्ट्रोक और सांस सम्बन्धी विकार पैदा हो सकते हैं। इस बात के भी प्रमाण सामने आए हैं कि पार्टिकुलेट मैटर शरीर के कई अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। साथ ही कई बीमारियों के जोखिम को और बढ़ा सकता है।

वहीं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के चलते अस्थमा और सांस की अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जिसके कारण अस्पताल जाने तक की नौबत आ सकती है। इतना ही नहीं कई मामलों में यह रोगी की जान भी ले सकता है। इसी तरह भारत में किए गए एक शोध से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के इन सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से जन्म के समय नवजातों का वजन सामान्य से कम हो सकता है, जिसकी वजह से जन्म के तुरंत बाद ही उनकी मृत्यु हो सकती है।

वहीं जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के चलते दुनिया भर में हर साल करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले हो जाता है, जबकि इसके चलते करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। 

भारत के कई शहरों में गंभीर रूप ले चुका है प्रदूषण का स्तर 

यदि भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति को देखें तो हाल ही में संगठन आईक्यू एयर द्वारा जारी रिपोर्ट “2021 वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट” के हवाले से पता चला है कि भारत के 48 फीसदी शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों से करीब 10 गुना ज्यादा था। वहीं 2021 के दौरान दिल्ली में पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 96.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, जोकि डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित मानक से करीब 20 गुना ज्यादा था।

दिल्ली स्थित शिकागो विश्वविद्यालय के इनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि देश में वायु प्रदूषण का जो स्तर है वो एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन करीब 5.9 वर्ष छीन रहा है। वहीं एक आम दिल्लीवासी जितनी प्रदूषित हवा में सांस ले रहा है उससे उसके जीवन के करीब 9.7 वर्ष कम हो जाएंगे।

वहीं उत्तरप्रदेश के लिए यह आंकड़ा 9.5 वर्ष है। ऐसे में वायु गुणवत्ता में सुधार न केवल देश दुनिया में लाखों लोगों की जिंदगियां बचा सकता है, बल्कि साथ ही इससे होने वाले भारी आर्थिक नुकसान को भी टाला जा सकता है।     

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