दुनिया के करीब दो तिहाई लोग वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े नियमों और उनको अपनाने का समर्थन करते हैं| यह जानकारी क्लीन एयर फण्ड नामक संस्था द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है| यह रिपोर्ट ‘यूगॉव’ द्वारा किये गए पोल के विश्लेषण पर आधारित है| यह पोल भारत, ब्रिटेन, नाइजीरिया, बुल्गारिया और पोलैंड में किया गया था| जिसे कोरोनावायरस को ध्यान में रखकर तैयार किया गया था|
इस पोल के अनुसार भारत और नाइजीरिया के 90 फीसदी से ज्यादा लोग चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में वायु की गुणवत्ता में सुधार की जरुरत है| आम जनता पर किए गए इस सर्वेक्षण के अनुसार 71 फीसदी लोग वायु प्रदूषण को सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा मानते हैं जबकि 76 फीसदी लोग इसे पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा समझते हैं|
हालांकि ज्यादातर लोगों का मत है कि लॉकडाउन के बाद हवा की गुणवत्ता में सुधार आया है| नासा द्वारा जारी नक्शों से पता चला था कि उत्तर भारत में एयरोसोल का स्तर पिछले 20 सालों के सबसे न्यूनतम स्तर पर आ गया था। जिसके पीछे की सबसे बड़ी वजह कोरोनावायरस से निपटने के लिए किया लॉकडाउन था| पोल के अनुसार भी भारत के 87 फीसदी लोगों ने माना है कि लॉकडाउन के कारण देश में हवा बेहतर हुई है| 2018 के आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 12 लाख लोगों की मौतों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार था| यहां के 10 में से 9 लोग चाहते हैं कि वायु की गुणवत्ता में सुधार जरुरी है|
इससे पहले हार्वर्ड टी एच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किये एक अध्ययन में यह सम्भावना जताई गयी थी कि वायु प्रदूषण, कोरोनावायरस से मरने वालों की संख्या में इजाफा कर सकता है| इस शोध के अनुसार जिन शहरों में वर्षों पहले भी पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा था वहां कोविड-19 के कारण मृत्युदर के अधिक होने का खतरा कहीं ज्यादा है। अध्ययन के अनुसार प्रति क्यूबिक मीटर में 1 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 की वृद्धि, कोविड-19 की मृत्युदर में 15 फीसदी का इजाफा कर सकती है। ऐसे में जो लोग पहले से ही वायु प्रदूषण के खतरे को झेल रहे हैं, उनके लिए यह संक्रमण और खतरनाक हो सकता है। उदाहरण के लिए इटली के उत्तरी क्षेत्र में वायु प्रदूषण के ऊंचे स्तर के कारण, कोविड-19 से मरने वालों की संख्या कहीं ज्यादा थी। इटली के उत्तरी भाग में कोविड-19 की मृत्युदर 12 फीसदी पायी गयी थी जबकि देश के अन्य हिस्सों में यह 4.5 फीसदी दर्ज की गयी थी।
वायु प्रदूषण का खतरा कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते असमय मारे जाते हैं| जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रति व्यक्ति तीन साल छीन रहा है। शोध के अनुसार वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर असर डाल रहा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशों के लोग बन रहे हैं। साक्ष्य मौजूद हैं वायु प्रदूषण न केवल दुनिया भर में होने वाली अनेकों मौतों के लिए जिम्मेदार है बल्कि इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। आज इसके कारण दुनिया भर में कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते अर्थव्यवस्था को श्रम आय के रूप में हर साल करीब 22,500 करोड़ डॉलर (17,15,676 करोड़ रुपए ) का नुकसान उठाना पड़ रहा है|
विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले ही आगाह कर चुका है कि दुनिया के 90 फीसदी से अधिक लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। भारत पर भी इसका व्यापक असर पड़ रहा है| 2017 में दुनियाभर में प्रदूषण के चलते होने वाली असामयिक मौतों में भारत की हिस्सेदारी 28 फीसदी रही। 2017 में होने वाली 83 लाख असामयिक मौतों में से 49 लाख प्रदूषण के चलते हुईं। इन मौतों में से तकरीबन 25 फीसदी मौतें भारत में हुईं। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर और ग्रीनपीस द्वारा जारी नयी रिपोर्ट के अनुसार इसके चलते हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था को 15,000 करोड़ डॉलर (1.05 लाख करोड़ रुपए) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है।
दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जिससे कोई नहीं बच सकता और न ही कोई इससे भाग सकता है। ऐसे में इससे बचने का सिर्फ एक तरीका है, जितना हो सके इसे कम किया जाये| जोकि इस रिपोर्ट से भी स्पष्ट हो जाता है| जिसके अनुसार दुनिया की दो तिहाई और भारत की 85 फीसदी आबादी वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने का समर्थन करती है|