बता दें कि अलग-अलग देशों ने पीने के पानी में फ्लोराइड के लिए अलग-अलग मानक निर्धारित किए हैं। उदाहरण के लिए जहां भारतीय मानक ब्यूरो ने प्रति लीटर पानी में 1.5 मिलीग्राम फ्लोराइड के स्तर को सुरक्षित माना है। जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानक के बराबर ही है।
इसी तरह अमेरिका में चार मिलीग्राम प्रति लीटर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया, आयरलैंड, मलेशिया, स्विट्जरलैंड, कनाडा और यूके ने भी 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर की सिफारिश की है। हालांकि जापान में 0.8 मिलीग्राम प्रति लीटर और सिंगापुर में 0.7 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम फ्लोराइड को सुरक्षित माना है। ऐसे में यदि इसका उपयोग किया जाता है तो वो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में यदि पीने के पाने में तय मानकों से ज्यादा फ्लोराइड हो तो वो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।
यह अध्ययन डीएवी कॉलेज, बठिंडा के भौतिकी विभाग से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर विकास दुग्गल के नेतृत्व में किया गया है, जिसमें शोधकर्ता तनीषा गोयल, रमनदीप कौर, जशनदीप कौर और गरिमा बजाज ने भी योगदान दिया है। अध्ययन के नतीजे जर्नल फिजिक्स एंड केमिस्ट्री ऑफ द अर्थ में प्रकाशित हुए हैं। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बठिंडा में अलग-अलग जगहों और जलस्रोतों से लिए पानी के 296 नमूनों का विश्लेषण किया है।
इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक बठिंडा में केवल भूजल ही नहीं, साथ ही 14.3 फीसदी सार्वजनिक जल आपूर्ति, 25 फीसदी निजी आरओ (रिवर्स ऑस्मोसिस) का पानी, और सुरक्षित समझा जाने वाला 37.5 फीसदी बोतल बंद पानी भी सेवन के लिए शत-प्रतिशत सुरक्षित नहीं पाया गया। रिसर्च के अनुसार मानसून से पहले 72.1 फीसदी और मानसून के बाद 27.9 फीसदी नगरपालिका के आरओ के पानी में भी तय मानकों से कहीं ज्यादा फ्लोराइड मौजूद था।
दांत और हड्डियों में फ्लोरोसिस के साथ-साथ कैंसर की भी बन सकता है वजह
रिपोर्ट के मुताबिक बठिंडा के भूजल में फ्लोराइड का औसत स्तर 3.77 मिलीग्राम प्रति लीटर था। इसी तरह सतही जल में इसकी मात्रा 0.76 मिलीग्राम प्रति लीटर और सार्वजनिक जल आपूर्ति में एक मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई। वहीं यदि बोतल बंद पानी को देखें तो इसमें फ्लोराइड का औसत स्तर 1.4 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज किया गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय सीमा के आसपास ही है।
इसी तरह निजी आरओ के पानी में फ्लोराइड का औसत स्तर 0.94 मिलीग्राम प्रति लीटर रहा। वहीं यदि सरकारी आरओ के पानी में मानसून से पहले इसका स्तर 1.62 मिलीग्राम प्रति लीटर, जबकि मानसून के बाद 1.29 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज किया गया। यदि बारिश के पानी को देखें तो उसमें फ्लोराइड की मात्रा औसतन 0.63 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज की गई। मतलब की बारिश के पानी और सतही जल में इसकी मात्रा तय सीमा के भीतर ही थी।
इससे जुड़े स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों की बात की जाए तो बच्चों को इससे सबसे ज्यादा खतरा है। इसके बाद किशोरों, वयस्कों, वरिष्ठ नागरिकों और शिशुओं को इससे खतरा है। फ्लोराइड के बारे में बता दें कि यह प्राकृतिक रूप से मिट्टी, चट्टानों और पानी में पाया जाता है। यह पानी के न केवल प्राकृतिक बल्कि मानव निर्मित स्रोतों में भी हो सकता है।
इतना ही नहीं पानी में इसकी मात्रा तापमान और क्षेत्र के खनिजों जैसे कारकों से प्रभावित हो सकती है। वहीं इंसानी गतिविधियां जैसे उद्योगों से निकलने वाला कचरा, और उर्वरक भी पानी में इसके स्तर को बढ़ा सकता है जिससे स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेको समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
हालांकि फ्लोराइड स्वस्थ दांतों और हड्डियों के लिए आवश्यक होता है, लेकिन इसका जरूरत से ज्यादा सेवन दांतों और हड्डियों में फ्लोरोसिस नामक समस्या की वजह बन सकता है, जिससे दांतों और हड्डियों की गंभीर समस्या पैदा हो सकती है। इतना ही नहीं रिसर्च से पता चला है कि यह थायरॉयड ग्रंथि, मस्तिष्क और गुर्दे जैसे अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। वहीं कुछ अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि जरूरत से ज्यादा फ्लोराइड कुछ कैंसरों के खतरे को बढ़ा सकता है।
दुनिया के कई देश विशेषतौर पर एशिया और अफ्रीका के देश पीने के पानी में फ्लोराइड के बढ़ते स्तर से जूझ रहे हैं। भारत, चीन और अफ्रीका इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से चट्टानों में मौजूद है।
आंकड़ों की मानें तो अकेले भारत में करीब 6.2 करोड़ लोगों को ऐसे पानी के सेवन का खतरा हैं जिसमें फ्लोराइड की मात्रा तय मानकों से कहीं ज्यादा है। ऐसे में यह जरूरी है कि इस खतरे की गंभीरता को समझा जाए और स्वास्थ्य को मद्देनजर रखते हुए सभी के लिए सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।