दक्षिण पूर्व एशिया में जंगल की आग से हर साल समय से पहले हो रही हैं 59 हजार मौतें

अध्ययन में पाया गया कि लाओस, कंबोडिया और म्यांमार में गरीब, ग्रामीण आबादी सूक्ष्म कण (पीएम2.5) प्रदूषण के उच्च स्तर के साए में थे।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स
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वन और वनस्पति की आग वायु प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है और इसके कारण एशिया के कई हिस्सों में गंभीर रूप से वायु की गुणवत्ता खराब हो जाती है। जंगल और वनस्पति की आग को खुले में बायोमास जलने के रूप में भी जाना जाता है, जो सूक्ष्म कण पदार्थ (पार्टिकुलेट मेटर) प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि दक्षिण पूर्व एशिया में खेती या चराई हेतु जंगल और कृषि भूमि को तैयार करने के लिए इन जगहों पर आग लगा दी जाती है। इस क्षेत्र में आग लगने से हर वर्ष समय से पहले लगभग 59,000 लोगों की मौत हो जाती है।

विश्लेषण से पता चलता है कि बायोमास जलने से सबसे बड़ा खतरा स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलने के दौरान हवा में छोटे कण फैल जाते है जो लोगों के फेफड़ों तक पहुंच सकते हैं। इस प्रकार की घटनाएं सबसे अधिक उत्तरी लाओस और पश्चिमी म्यांमार के कुछ सबसे गरीब समुदायों में पाई गईं हैं।  

यह शोध जर्मनी के लीड्स और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑग्सबर्ग की अगुवाई में किया गया है। शोधकर्ताओं ने कृषि और वनों को जलाने पर अंकुश लगाने के उपायों को लागू करने का आह्वान किया। शोधकर्ता कहते हैं कि कृषि और जंगल की आग को रोकना सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के तौर पर देखा जाना चाहिए।

लीड्स में पृथ्वी और पर्यावरण के स्कूल में रिसर्च फेलो और मुख्य अध्ययनकर्ता डॉ कार्ली रेडिंगटन ने कहा कि खराब वायु गुणवत्ता का अनदेखा स्रोत जिसे अक्सर तवज्जो नहीं दी जाती है, जबकि इनकी प्रदूषण फैलाने में अहम भूमिका होती है, हमने इसकी माप की है। इससे पता चलता है कि आग को कम करने के लिए कार्रवाई की जा सकती है जिससे वायु गुणवत्ता में तेजी से सुधार हो सकता है।  

रेडिंगटन ने कहा कि हमने पाया कि पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में, आग से उत्पन्न वायु प्रदूषण की मात्रा उद्योग, परिवहन और बिजली उत्पादन से इसकी तुलना की जा सकती है।

बायोमास जलाने से हानिकारक प्रदूषक निकलते हैं

दक्षिण पूर्व एशिया में- म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम और दक्षिण पूर्व चीन सहित इन देशों में किसान खेती के लिए या जानवरों को चराने के लिए जमीन को साफ करने के तरीके के रूप में जंगलों को जलाते हैं। इस तरह के कामों को अक्सर मानसून की अवधि से पहले, आमतौर पर फरवरी से अप्रैल के बीच अंजाम दिया जाता है।

इस अवधि के दौरान, क्षेत्र के एक बड़े हिस्से में मौसम के मिजाज के परिणामस्वरूप तापमान उलटा हो सकता है, एक मौसम संबंधी घटना जो धुएं और उत्सर्जन को फैलने से रोकती है, विशेष रूप से रात में या सुबह के समय के दौरान। आग हानिकारक प्रदूषकों को उत्पन्न करती है, जिसमें पीएम2.5 के रूप में जाना जाने वाला सूक्ष्म कण भी शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक इन कणों से हृदय रोग, श्वसन रोग और कैंसर की बीमारी तक हो सकती है। 

शोधकर्ताओं ने वायु गुणवत्ता पर आग के प्रभाव और बीमारी की व्यापकता को मापने के लिए कंप्यूटर मॉडल के साथ वायु प्रदूषण के माप का उपयोग किया।

जलने का मॉडलिंग प्रभाव

विश्लेषण किए गए सभी आंकड़ों में, शोधकर्ताओं ने पाया कि जलने से सबसे बड़ा प्रदूषण उत्सर्जन लाओस, कंबोडिया, थाईलैंड, पूर्वी और पश्चिमी म्यांमार और दक्षिणी बांग्लादेश के उत्तरी क्षेत्र से आ रहा था। मध्य म्यांमार, थाईलैंड, उत्तर वियतनाम और दक्षिण पूर्वी चीन में उत्सर्जन का निम्न स्तर था। शोधकर्ताओं ने मॉडल के द्वारा यह भी पता लगाया कि अगर जलना बंद कर दिया गया तो वायु गुणवत्ता में क्या सुधार होगा।  

सबसे अधिक उत्सर्जन का अनुभव करने वाले इलाकों में पीएम2.5 सूक्ष्म कणों की सांद्रता 40 फीसदी से 70 फीसदी तक कम हो जाएगी। डब्ल्यूएचओ ने पीएम2.5 के अधिकतम स्तर के लिए अंतरिम वार्षिक लक्ष्य रखा है जो 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है।

जलने से 'हवा की गुणवत्ता खराब'

यदि जलने की प्रथा को रोका जा सकता है, तो शोधकर्ताओं का तर्क है कि डब्ल्यूएचओ के अंतरिम लक्ष्य से अधिक स्तर के संपर्क में आने वाले लोगों की संख्या थाईलैंड में 64 फीसदी, म्यांमार में 100 फीसदी, लाओस में 92 फीसदी और कंबोडिया में 44 फीसदी तक कम हो जाएगी।

महामारी विज्ञान मॉडलिंग का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने गणना की कि पीएम2.5 में कमी वायु प्रदूषण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों को कम कर सकती है। दक्षिण पूर्व एशिया में, मौतों में 12 फीसदी की गिरावट आएगी, वियतनाम में 5 फीसदी से लाओस में 28 फीसदी और दक्षिणपूर्वी चीन में 3 फीसदी कुल मिलाकर अनुमानित 59,000 समय से पहले होने वाली मौतों को हर साल रोका जा सकता है।

उन्होंने पीएम2.5 सांद्रता के खिलाफ गरीबी के आंकड़ों का भी मानचित्रण किया और पाया कि लाओस, कंबोडिया और म्यांमार में गरीब, ग्रामीण आबादी सूक्ष्म कण प्रदूषण के उच्च स्तर के संपर्क में थी। डॉ रेडिंगटन ने कहा यह अध्ययन दक्षिण पूर्व एशिया में वायु गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य पर जंगल और वनस्पति की आग के प्रभावों का पहला विस्तृत आकलन है।

अध्ययन से पता चलता है कि वनस्पति और जंगल की आग से वायु प्रदूषण दक्षिण पूर्व एशिया में वायु गुणवत्ता को गंभीर रूप से खराब कर देता है। इन आग की घटनाओं को रोकने से हानिकारक वायु प्रदूषकों के संपर्क में काफी कमी आ सकती है और कई समय से पहले होने वाली मौतों से बचा जा सकता है। इसके अलावा, यह दर्शाता है कि दक्षिण पूर्व एशिया की गरीब आबादी इन आग की घटनाओं के चलते होने वाले वायु प्रदूषण के सबसे अधिक चपेट में आ रही है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि क्षेत्र में जंगल की आग को कम करने के लिए अब नए प्रयासों की जरूरत है। डॉ रेडिंगटन ने कहा, आग के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध कई स्थानीय किसानों के लिए व्यावहारिक नहीं हो सकता है जिनके पास कोई विकल्प नहीं है। प्रदूषण उत्सर्जन जंगलों को जलाने से होता है, इसलिए संबंधित आग को कम करने के साथ वनों की कटाई पर भी रोक लगाने के प्रयासों को बढ़ाने की जरूरत है। यह अध्ययन जियोहेल्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

वनों की कटाई को कम करने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम होता है और यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन को धीमा करने के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हमारा काम दर्शाता है कि वनों की कटाई और संबंधित आग को कम करने से स्वच्छ हवा और बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य भी होगा।

स्थानीय और क्षेत्रीय फायदे वनों की कटाई को कम करने के लिए एक शक्तिशाली प्रोत्साहन हो सकता हैं। समुदाय के द्वारा संरक्षित वनों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों की सहायता से इसे बढ़ाया जा सकता है। इस तरह के उपाय आग को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

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