खतरनाक केमिकल्स के संपर्क में आने से हर रोज मारे जाते हैं 5,480 लोग

खतरनाक केमिकल्स के संपर्क में आने से हर रोज मारे जाते हैं 5,480 लोग

जहां 2016 में खतरनाक केमिकल्स के कारण 15.6 लाख लोगों की जान गई थी. वहीं 2019 में इससे मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 20 लाख पर पहुंच गया था
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दुनिया भर में खतरनाक केमिकल्स जैसे लीड, आर्सेनिक, आर्सेनिक, एस्बेस्टस, बेंजीन के संपर्क में आने से हर साल करीब 20 लाख लोग मारे जाते हैं। यदि दैनिक आधार पर देखें तो यह आंकड़ा करीब 5,480 मौतें प्रतिदिन बैठता है। समस्या सिर्फ इतनी ही नहीं है यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों को देखें तो 2016 से 2019 के बीच इन हानिकारक केमिकल्स से होने वाली मौतों में 28.2 फीसदी की वृद्धि हुई है।

जहां 2016 में इसकी वजह से 15.6 लाख लोगों की जान गई थी वहीं 2019 में इससे मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 20 लाख पर पहुंच गया था। वहीं यदि अकेले लेड के बात करें तो इससे होने वाली मौतों में करीब 67 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। जिसका सबसे ज्यादा शिकार बच्चे और वयस्क बनते हैं।

यदि स्वास्थ्य से जुड़े सतत विकास के लक्ष्यों को देखें तो उनका मकसद दुनिया को इन खतरनाक रसायनों से बचाना है। साथ ही इनकी वजह से होने वाले वायु, जल और मृदा प्रदूषण को कम करना और उससे होने वाली बीमारियों को रोकना है। ऐसे में यह नए अनुमान एक बार फिर इन केमिकल्स के नियमन और प्रभावी प्रबंधन की आवश्यकता को दोहराते हैं।

भारत को भी इस पर ध्यान देना चाहिए क्यों देश की नेशनल केमिकल पालिसी 2012 से लंबित है। सीपीसीबी के पूर्व वैज्ञानिक डीडी बासु ने भी केमिकल्स के उपयोग, उत्पादन और सुरक्षा को विनियमित करने के लिए देश में व्यापक कानून की आवश्यकता की बात कही है।

रिपोर्ट के मुताबिक यह हानिकारक केमिकल्स हवा, मिट्टी, पानी, कार्यस्थल और उपभोक्ता उत्पादों में भी मौजूद रहते हैं जो कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं।  जिनसे मानसिक और व्यवहारिक विकार, मोतियाबिंद, अस्थमा, कैंसर और तंत्रिका सम्बन्धी विकार हो सकते हैं।  हालांकि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि इनसे होने वाली अधिकांश मौतों को टाला जा सकता है। इसके लिए इन रसायनों के उपयोग को बंद कर देना या फिर इनके जोखिम को कम करने से जुड़े उपायों को अपनाया जा सकता है। 

करीब 45 फीसदी मौतों के लिए अकेले लेड है जिम्मेवार

दुनिया भर में हानिकारक केमिकल्स से होने वाली कुल मौतों में से करीब 45 फीसदी मौतों के लिए अकेले लेड जिम्मेवार है। वहीं 2016 से 2019 के बीच इसके कारण होने वाली मौतों में करीब 67 फीसदी का इजाफा हुआ है। लेड या सीसे के सम्पर्क में आने से कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां (सीवीडी), क्रोनिक किडनी रोग (सीकेडी) और आईआई डी जैसे मानसिक रोग हो सकते हैं।

2019 में इसके संपर्क में आने से करीब 9 लाख लोगों की जान गई थी। जिसमें से हर 10 में से नौ लोगों की मौत कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के कारण हुई थी। यदि देखा जाए तो रंग की मात्रा को बढ़ाने, जंग को कम करने और जल्द सुखाने के लिए पेंट में लेड मिलाया जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक होता है। 

गौरतलब है कि 2020 में यूनिसेफ ने भी बच्चों के स्वास्थ्य पर लेड प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई थी। इस पर यूनिसेफ ने जारी अपनी रिपोर्ट 'द टॉक्सिक ट्रुथ' में कहा था कि दुनिया के हर तीसरे बच्चे के रक्त में लेड की मात्रा तय सीमा से कहीं ज्यादा है। अनुमान है कि दुनिया के करीब 80 करोड़ बच्चों में लेड की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा है। 

हालांकि इसके बावजूद दुनिया में अभी भी बिना रोकटोक के लेड का उपयोग जारी है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत सहित केवल 41 फीसदी देशों ने लेड युक्त पेंट के उत्पादन, आयात, बिक्री और उपयोग से जुड़े नियम बनाए हैं| वहीं अभी भी अफ्रीका के 17 देशों में इससे जुड़े कोई नियम क़ानूनी रूप से लागु नहीं किए गए हैं। वहां आज भी इनका उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है। 

इसके साथ ही इन केमिकल्स से होने वाली मौतों के लिए क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से लेकर पार्टिकुलेट और कैंसर जैसी बीमारियां जिम्मेवार हैं जो कार्यस्थल पर इन हानिकारक केमिकल्स के संपर्क में आने से होती हैं। अनुमान है कि कार्यस्थल पर धूल, धुएं और गैस के संपर्क में आने से सीओपीडी के कारण हर साल करीब 5 लाख लोगों की जान जाती है| वहीं आर्सेनिक, एस्बेस्टस, बेंजीन जैसे केमिकल्स के कारण होने वाले कैंसर से हर साल 35 लाख से अधिक लोगों की असमय मौत हो जाती है। 

केमिकल्स के कारण हुई विकलांगता के कारण 5.3 करोड़ वर्षों का हुआ था नुकसान

यही नहीं इन हानिकारक रसायनों के संपर्क में आने से 2019 में जो विकलांगता हुई हैं उनके कारण कुल 5.3 करोड़ वर्षों का नुकसान हुआ है।  2016 में यह आंकड़ा करीब 4.5 करोड़ वर्ष था, जिसका मतलब है कि इन वर्षों के दौरान इसमें करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। 

वहीं यदि लेड की बात करें तो इसके संपर्क में आने से 2016 की तुलना में विकलांगता-समायोजित जीवन-वर्षों में लगभग 56 फीसदी की वृद्धि हुई है| डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार 2019 में इसके कारण हुई विकलांगता के कारण 2.16 करोड़ स्वस्थ जीवन वर्षों का नुकसान है था। ये चिंताजनक आंकड़ें डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक द्वारा 7 जुलाई 2021 को 'बर्लिन फोरम ऑन केमिकल्स एंड सस्टेनेबिलिटी: एम्बिशन एंड एक्शन टु 2030' में आयोजित मंत्रिस्तरीय वार्ता के दौरान जारी किए गए थे।

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