प्लास्टिक किस कदर हमारे जीवों पर असर डाल रहा है, एक अध्ययन में एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जानवरों द्वारा निगले गए प्लास्टिक की मात्रा का लोगों पर किए गए अध्ययनों में पाई गई मात्रा के साथ तुलना की जा सकती है। यह चिंताजनक खुलासा ससेक्स विश्वविद्यालय, मैमल सोसाइटी और एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है।
ससेक्स विश्वविद्यालय में पर्यावरण और जीव विज्ञान के प्रोफेसर फियोना मैथ्यूज कहते हैं कि जलीय पारिस्थितिक तंत्र पर प्लास्टिक के प्रभाव के बारे में बहुत अधिक जानकारी है। लेकिन प्लास्टिक को लेकर स्थलीय प्रणालियों के बारे में जानकारी का अभाव है।
उन्होंने कहा हमारे कुछ सबसे छोटे स्तनधारियों के मल का विश्लेषण करके, हम वन्यजीवों पर प्लास्टिक के पड़ने वाले प्रभावों की एक झलक प्रदान करने में सफल रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने छोटे स्तनधारियों के मल के नमूने लिए। जिसमें यूरोपीय हेजहोग, वुड माउस, फील्ड वोल और ब्राउन रैट सभी प्लास्टिक पॉजिटिव पाए गए, अर्थात इन सब में प्लास्टिक पाया गया।
शहरी स्थानों से नमूनों में प्लास्टिक की बहुत अधिक मात्रा पाई गई जबकि शाकाहारी प्रजातियों में प्लास्टिक की मात्रा कम दिखाई देने की उम्मीद की गई। शोधकर्ताओं ने पाया कि इसके निगले जाने तथा विभिन्न स्थानों के साथ-साथ विभिन्न आहार की आदतों में प्लास्टिक की अलग-अलग मात्रा पाई गई।
ससेक्स विश्वविद्यालय से एमएससीआई स्नातक एमिली थ्रिफ्ट कहते हैं कि यह बहुत चिंताजनक है कि प्लास्टिक के कण व्यापक रूप से अलग-अलग जगहों और विभिन्न आहार संबंधी आदतों की प्रजातियों में पाए गए थे। इससे पता चलता है कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के सभी क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से फैल रहा है।
टीम ने 261 मल के नमूनों का विश्लेषण किया, जिसमें 16.5 फीसदी प्लास्टिक था। पहचाने गए सबसे आम प्लास्टिक में पॉलिएस्टर, पॉलीइथाइलीन, जिसे एक बार पैकेजिंग में उपयोग होने वाला प्लास्टिक पाया गया। पॉलीनॉरबोर्निन यह मुख्य रूप से रबर उद्योग में उपयोग किया जाता है। पॉलिएस्टर की पहचान की गई जो 27 फीसदी के लिए जिम्मेदार है और वुड माउस को छोड़कर सभी प्रजातियां प्लास्टिक पॉजिटिव पाए गए थे।
यह कपड़ा और फैशन उद्योग में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, अध्ययन बताता है कि माइक्रोफाइबर घरेलू धुलाई के माध्यम से अपशिष्ट जल प्रणाली में प्रवेश कर सकते हैं और बाद में उर्वरक के रूप में सीवेज के माध्यम से भूमि में मिल जाते हैं।
अध्ययन में पाए गए एक चौथाई से अधिक प्लास्टिक 'बायोडिग्रेडेबल' या बायोप्लास्टिक भी थे। अध्ययनकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस प्रकार के प्लास्टिक पॉलिमर की तुलना में तेजी से नष्ट हो सकते हैं, फिर भी उन्हें छोटे स्तनधारियों द्वारा निगला जा सकता है और उनके वास्तविक जैविक प्रभावों की जांच के लिए और शोध की आवश्यकता है।
अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि अध्ययन में पाए गए माइक्रोप्लास्टिक के दूषित शिकार के सेवन या सीधे निगले जाने के परिणामस्वरूप प्रजातियों में इसके पहुंचने के आसार हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि प्रजातियां भोजन के रूप में गलती से प्लास्टिक को निगल सकती हैं या माइक्रोप्लास्टिक को चबाने वाली सामग्री के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं।
खाद्य श्रृंखला के माध्यम से प्लास्टिक का प्रभाव एक और मुद्दा है जिसके बारे में अध्ययनकर्ता चिंतित हैं और आगे के अध्ययन का सुझाव देते हैं।
प्रो. फियोना मैथ्यूज कहते हैं कि हमें वास्तव में भूमि के स्तनधारियों पर प्लास्टिक के निगले जाने की गहरी समझ की आवश्यकता है।
अध्ययन में यूरोपीय हेजहोग के मल में प्लास्टिक पॉलिमर की मात्रा सबसे अधिक पाई गई। एक प्रजाति के रूप में, वे यूके में पहले से ही उन कारणों से इनकी संख्या कम हो रही है जो काफी हद तक अज्ञात हैं। उन्हें आईयूसीएन के क्षेत्रीय लाल सूची में विलुप्त होने के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
यूरोपीय हेडगेहॉग केंचुओं का शिकार करते हैं और पिछले अध्ययनों में इनमें माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। इसलिए हमें वास्तव में और अधिक शोध करने की आवश्यकता है ताकि खतरे के पैमाने और मार्ग को अधिक सटीक रूप से स्थापित किया जा सके।
अध्ययनकर्ता ने कहा छोटे स्तनधारियों का उपभोग करने वाली शिकारी प्रजातियों में प्रसार का आकलन किया जा सके, ताकि हम अपने घटते वन्यजीवों को प्लास्टिक से बचाने के लिए पर्याप्त कदम उठा सकें।
मैमल सोसाइटी के सीईओ एंडी बूल कहते हैं कि यह शोध स्थलीय स्तनधारियों पर प्लास्टिक के प्रभाव के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण कदम है। कई छोटी स्तनपायी प्रजातियों की संख्या में चिंताजनक गिरावट आने के साथ ये इनमें प्लास्टिक पाए जाने की चुनौतियों सामना करते हैं। हम सभी उनके द्वारा उपयोग किए जाने वाले एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक की मात्रा को कम करके करके उन्हें इस खतरे से बचाने में मदद कर सकते हैं।
एक्सेटर विश्वविद्यालय में एनईआरसी पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च फेलो डॉ एडम पोर्टर कहते हैं कि हमें प्लास्टिक के साथ अपने संबंधों को बदलना होगा। हमें डिस्पोजेबल वस्तुओं से दूर जाना होगा, प्लास्टिक की जगह बेहतर विकल्पों का उपयोग करना होगा। यह अध्ययन साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।