भारत में बढ़ते फेस मास्क के उपयोग से हर साल 15.4 लाख टन माइक्रोप्लास्टिक पैदा हो रहा है जोकि पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। यह जानकारी हाल ही में भारत के श्री रामस्वरूप मेमोरियल विश्वविद्यालय के सिविल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है जोकि जर्नल केमोस्फीयर में प्रकाशित हुआ है।
देखा जाए तो दुनिया जैसे-जैसे कोविड-19 से उबरकर सामान्य जिंदगी की तरफ जा रही है, वैसे-वैसे उसके साथ कोविड -19 चरणों के दौरान उठाए गए एहतियाती कदमों के परिणाम भी सामने आने लगे हैं। आज हम ऐसी स्थिति में जी रहे हैं, जो हमने पहले कभी नहीं देखी है। आज फेस मास्क, सैनिटाइज़र की बोतलें, दस्ताने और पीपीई किट इंसान की दिनचर्या की जरुरत बन गए हैं। लेकिन इस महामारी की जंग लड़ते-लड़ते इंसान ने एक नए खतरे को न्यौता दे दिया है। आज प्लास्टिक, विशेष रूप से माइक्रोप्लास्टिक कचरे के बढ़ते खतरे को और अधिक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत में हर साल करीब 23,888.1 करोड़ मास्क उपयोग किए जाते हैं। इनका कुल वजन करीब 24.4 लाख टन होता है। वहीं इसकी वजह से करीब 15.4 लाख टन माइक्रोप्लास्टिक और पॉलीप्रोपोलीन (पीपी) उत्पन्न हो रहा है।
माइक्रोप्लास्टिक के उचित प्रबंधन और निपटान के लिए जरुरी हैं प्रभावी नीतियां
इतना ही नहीं अपने इस अध्ययन में भारतीय शोधकर्ताओं ने दुनिया के 36 देशों में फेस मास्क के कारण पैदा हो रहे माइक्रोप्लास्टिक कचरे का विश्लेषण किया है। इसके निष्कर्ष से पता चला है कि दुनिया के इन देशों में जहां कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं वहां हर साल करीब 154.6 लाख टन फेस मास्क इस्तेमाल किए जाते हैं जिनकी कुल संख्या करीब 151,540 करोड़ है। इनके चलते करीब 97.7 लाख टन माइक्रोप्लास्टिक पैदा हो रहा है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक भले ही चीन उन देशों में शामिल नहीं है जहां कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं लेकिन इसके बावजूद चीन की आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है। इस लिहाज से वहां सबसे ज्यादा फेस मास्क उपयोग किए जाते हैं। चीन की कुल आबादी 143.9 करोड़ से ज्यादा है।
यह आबादी करीब 40.8 लाख टन फेस मास्क हर साल उपयोग कर रही है, जिससे करीब 25.8 लाख टन माइक्रोप्लास्टिक पैदा हो रहा है। वहीं अमेरिका में जहां अब तक 8.5 करोड़ से ज्यादा कोविड-19 के मामले सामने आ चुके हैं वो इन फेस मास्क का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। वहां हर साल करीब 12.5 लाख टन फेस मास्क इस्तेमाल हो रहे हैं, जिनसे करीब 7.9 लाख टन माइक्रोप्लास्टिक पैदा हो रहा है।
देखा जाए तो जहां फेस मास्क ने दुनिया भर में लाखों लोगों का जीवन बचाया है। वहीं इससे पैदा होने वाले कचरे का ठीक तरह से निपटान न करके हमने एक नए खतरे को निमंत्रण दे दिया है। इस माइक्रोप्लास्टिक के चलते बायोमैग्नीफिकेशन और बायोएक्युमुलेशन का खतरा पैदा हो गया है। मतलब वातावरण में जमा हो रहा यह कचरा पर्यावरण और जीवों के लिए बड़े खतरा पैदा कर सकता है।
इतना ही नहीं यह माइक्रोप्लास्टिक कोरोनावायरस के संभावित वाहक के रूप में भी काम कर सकते हैं, जिससे इस महामारी के फैलने का खतरा और बढ़ सकता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का सुझाव है कि फेस मास्क, सैनिटाइजर की बोतलें, दस्ताने और पीपीई किट के उचित प्रबंधन और निपटान के लिए प्रभावी नीतियों की तत्काल आवश्यकता है, जिससे इस बढ़ते खतरे को जल्द से जल्द सीमित किया जा सके।