नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध के कारण मध्य प्रदेश के 192 गांव डूब गए और इन डूबे गए गांवों के 40 हजार परिवारों को अब तक छत नसीब नहीं हो पाई है। आखिर होती भी कैसे इन विस्थापितों का मुद्दा अब भी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों के हाशिए पर ही रहा है। आगामी लोकभा चुनावों में भी इस बार मालवा और निमाण के दो प्रमुख जिलों में रहने वाले विस्थापितों का मुद्दा अब तक राजनीतिक दलों की जुबां पर से नदारद है। विस्थापितों के हक के लिए पिछले तीन दशक से संघर्षरत नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर डाउन टू अर्थ से कहती हैं कि यह कितना दुखद और संवेदनहीनता की स्थिति है कि राजनीतिक दल हजारों विस्थापितों के मुद्दे को हलके में लेते हैं कि वे इसे समस्या मानने को तैयार नहीं है। वह सवाल उठाती हैं कि जब तक विस्थापित वोट की राजनीति के लिए मजबूत नहीं होंगे तब तक वे राजनीतिक दलों के हाशिए पर रहेंगे। इस क्षेत्र के दो जिले धार और बड़वानी में दो लोकसभा सीटें हैं। हालांकि दोनों जिलों की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र कुमार कहते हैं कि इन दोनों जिलों में नर्मदा विस्थापितों की संख्या अच्छी खासी है ऐसे में इस बार हम यह कह सकते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव (आखिरी चरण में 19 मई, 2019) में इन विस्थापितों का मुद्दा अपने लाभ के लिए राजनीतिक दल उठा सकते हैं।
आम आदमी पार्टी के मध्य प्रदेश के समन्वयक आलोक अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ से कहा कि हम इस लोकसभा चुनाव में अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा कर रहे हैं। हमारा पूरा ध्यान दिल्ली पर है और देशभर के कार्यकर्ता दिल्ली ही पहुंच रहे हैं। उनसे जब पूछा गया कि क्या मालवा और निमाण के सबसे अधिक डूब प्रभावित जिलों में विस्थापितों के पुनर्वास का मुद्दा चुनाव में उठेगा? इस पर अग्रवाल ने कहा, देखिए हमने कहा कहा है जो भी भारतीय जनता पार्टी को हराएगा हमारा उनको सहयोग रहेगा। कहने का आशय ये है कि जो भी भाजपा को हराने के लिए ताकतवर उम्मीदवार होगा हमारा सहयोग उसे ही रहेगा। हालांकि बड़वानी जिले के लालमन कहते हैं कि इस बार जरूर से चुनाव में हमार मुद्दा प्रमुख रहेगा, आखिर कब तक ये राजनीतिक दल हमें ऐसे ही मूर्ख बनाते रहेंगे। इस बार हम उन्हें अपनी उपस्थिति जता कर ही रहेंगे।
ध्यान रहे कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र में नर्मदा पट्टी की 29 विधानसभाओं क्षेत्रों में 480 गांव हैं। नर्मदा पट्टी में इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, महेश्वर बांध बने हैं तो गुजरात के सरदार सरोवर बांध हैं। वर्तमान स्थिति में किसी भी बांध परियोजना के प्रभावितों का न तो संपूर्ण पुनर्वास हुआ है और न सरकार के वादों के अनुसार सुविधाएं दी गई हैं। खंडवा जिले के हरसूद के बाशिंदे रोजगार को तरस रहे हैं तो धार जिले के निसरपुर के लोग आज भी पुनर्वास स्थल पर सुविधाओं की बांट जोह रहे हैं। ओंकारेश्वर बांध के तो कई गांवों को अभी तक खाली ही नहीं करवाया जा सका है। इसकी वजह यह है कि अपने अधिकारों के लिए प्रभावित डटे हुए हैं। महेश्वर बांध परियोजना में लगभग एक साल पहले मुआवजा तो दिया गया लेकिन अभी पुनर्वास स्थल ही तय नहीं किए जा सके हैं।