भाजपा ने सोमवार को जारी संकल्प पत्र 2019 में सबको पक्का घर देने का वादा किया है। ऐसा ही वादा 2014 में भी किया गया था। उस समय कहा गया था कि शहरों में 2 करोड़ घर बनाए जाएंगे। इस दिशा में भाजपा सरकार ने काम किया भी, लेकिन सरकार ने जरूरतमंद झुग्गीवासियों की बजाय मध्यवर्ग को लुभाने की दिशा में ज्यादा काम किया। यही वजह है कि पिछले पांच साल में झुग्गी वासियों के लिए एक घर भी नहीं बने। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) की सेंट्रल सेंक्शनिंग एंड मॉनिटरिंग कमेटी की आखिरी बैठक में 20 राज्यों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और बताया गया कि केवल गुजरात को छोड़कर किसी भी राज्य में झुग्गी वासियों के लिए घर नहीं बने हैं। गुजरात में भी 2014 से पहले से यह घर बन रहे हैं।
साल 2022 तक 2 करोड़ घर बनाने के लक्ष्य के साथ जून 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) लॉन्च हुई। आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के ताजे आंकड़ों के मुताबिक, 25 मार्च तक 7978066 घरों को मंजूरी दी चुकी है, जिसमें 19.05 लाख घर बन चुके हैं। हालांकि, यह ब्यौरा देते वक्त मंत्रालय ने यह नहीं बताया है कि किस श्रेणी के तहत यह घर बनाए गए हैं।
दरअसल, प्रधानमंत्री आवास योजना के चार कंपोनेंट हैं। इसमें सबसे अहम है, झुग्गी वासियों को पक्के मकान देने के लिए शुरू की गई इन-स्टि्यू स्लम रिडेवलपमेंट स्कीम (आईआईएसआर)। जिसमें झुग्गी वासियों को उसी जगह पक्के मकान बनाए जाते हैं, जहां वे रहते हैं। इसके लिए प्राइवेट बिल्डर को वह जमीन दी जाती है, जहां झुग्गी बस्ती है। बस्ती में बसे लोगों को अस्थायी आवास का इंतजाम किया जाता है और फिर बिल्डर उस जमीन पर बहुमंजिला आवास बनाता है। बदले में सरकार 1 लाख रुपए प्रति घर और झुग्गी बस्ती की जमीन का एक हिस्सा बिल्डर को दे दिया जाता है, जिसका वह कॉमर्शियल इस्तेमाल कर सकता है।
इस योजना के तहत बनी हाई लेवल सेंट्रल सेंक्शनिंग एंड मॉनिटरिंग कमेटी की आखिरी बैठक 25 फरवरी 2019 को हुई। इस बैठक की मिनट्स बताती हैं कि अधिकतर राज्यों में झुग्गियों के बदले घर नहीं बने हैं। इस बैठक में 20 राज्यों ने हिस्सा लिया। इनमें से केवल गुजरात ने बताया कि उसने आईआईएसआर स्कीम के तहत 24636 घर बनाए हैं। हालांकि गुजरात इस स्कीम पर 2014 से पहले काम कर रहा है। इसके अलावा 19 राज्यों में आईआईएसआर स्कीम के तहत एक भी घर नहीं बना है।
मिनट्स के मुताबिक, झुग्गी बस्तियों के लिए चर्चा में रहने वाले महाराष्ट्र में अब तक केवल 3 परियोजनाओं का प्रस्ताव तैयार हुआ है, जिसमें 934 घर बनाने का प्रस्ताव है, लेकिन यह परियोजनाएं अब तक धरातल पर नहीं उतर पाई हैं। इसी तरह मध्यप्रदेश में पिछले चार साल के दौरान केवल 4 परियोजनाओं का मंजूरी मिल चुकी है,जिसमें 2172 घर बनाने का प्रस्ताव है, लेकिन अब तक केवल 960 घर बनाने का टेंडर ही तैयार हो पाया है। छत्तीसगढ़ में 5946 घरों की 8 परियोजनाओं को मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन ये परियोजनाएं धरातल पर शुरू नहीं हो पाई हैं। हरियाणा में 367 घर वाली दो परियोजनाओं का केवल प्रस्ताव ही तैयार हो पाया है। राजस्थान में एक भी प्रस्ताव तैयार नहीं होने पर बैठक में केंद्र को सलाह दी गई कि वह अपने राज्य में आईआईएसआर परियोजनाओं पर काम करे। ओडिशा में 7300 घर बनाने की प्रस्ताव है, लेकिन केवल 2500 घरों का निर्माण शुरू हो पाया है। तमिलनाडु ने कहा है कि उनके राज्य में आईआईएसआर के तहत लगभग 47309 घरों की डिमांड है, लेकिन राज्य ने अब तक कोई प्रस्ताव तैयार नहीं किया है।
दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्रप्रदेश में भी आईआईएसआर स्कीम के तहत कोई घर नहीं बन रहा है, बल्कि बैठक में इन राज्यों ने कहा कि उन्होंने अपने राज्य के कुछ शहरों में सर्वे कराया तो पाया कि उनके यहां आईआईएसआर परियोजना की जरूरत ही नहीं है। जैसे कि उत्तर प्रदेश ने कहा कि राज्य के 635 में से 197 शहरों का सर्वे करने में पाया कि इन शहरों में आईआईएसआर परियोजनाओं की जरूरत नहीं है। इसी तरह बिहार ने 140 में से 41 शहरों के सर्वे किया और आंध्रप्रदेश ने 111 में से 52 शहरों का सर्वे किया और कहा कि इन शहरों में झुग्गी के बदले घर बनाने की जरूरत नहीं है। हालांकि राज्य सरकारों ने इन शहरों का नाम नहीं बताया है, जहां झुग्गी बस्तियां नहीं हैं।
देश में कितनी झुग्गी बस्तियां हैं?
शहरी स्लम के बारे में 2012 में हुए नेशनल सेंपल सर्वे में पाया गया कि देश में लगभग 33510 स्लम बस्तियां हैं, जिनमें से 13761 अधिसूचित हैं और 19749 गैर अधिसूचित। इनमें लगभग 88 लाख झुग्गियां हैं। सर्वे के मुताबिक, अधिसूचित स्लम बस्तियों में 56 लाख और गैर अधिसूचित झुग्गी बस्तियों में 32 लाख झुग्गियां हैं। यूपीए सरकार के कार्यकाल में गठित तकनीकी समूह ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में 1.87 करोड़ घरों की जरूरत है, इसमें से 96 फीसदी कम अमादनी वाली (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के परिवारों के पास घर नहीं हैं। कमेटी ने तब सुझाव दिया था कि 70 फीसदी झुग्गी बस्तियों को उसी जगह बसाया जाए, जहां वे पहले से रह रहे हैं।