कचरे का उचित प्रबंधन न करने पर एनजीटी ने मनाली नगर परिषद पर लगाया करोड़ों का जुर्माना

रंगरी गांव में कचरे का उचित प्रबंधन न करने पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मनाली नगर परिषद को 4.6 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा भरने को कहा है
प्रतीकात्मक तस्वीर: सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट
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इसके अलावा, ब्यास नदी के पास पुराने कचरे के इर्द-गिर्द बनी रिटेनिंग दीवार गौ-सदन के पास क्षतिग्रस्त पाई गई। इसकी वजह से ताजा कचरे का अत्यधिक ढेर होने से कचरा ब्यास नदी के किनारे बहता पाया गया। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि बाढ़ के दौरान लीचेट ब्यास नदी में बहता देखा गया।नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कचरे का उचित प्रबंधन न करने पर मनाली नगर परिषद को 4.6 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय मुआवजा भरने को कहा है। 29 मई, 2024 को दिया यह आदेश मनाली के रंगरी गांव में मौजूद अपशिष्ट सुविधा में ठोस कचरे का उचित प्रबंधन न करने से जुड़ा है। ट्रिब्यूनल ने इस मुआवजे को तीन महीनों में भरने का निर्देश दिया है। मनाली नगर परिषद को जुर्माने की यह राशि हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीएसपीसीबी) के पास जमा करनी होगी।

एनजीटी ने कहा कि इस मुआवजे का उपयोग पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के साथ उसके कायाकल्प और बहाली के लिए किया जाएगा। 24 जनवरी, 2024 को नोटिस मिलने के बाद या मनाली नगर परिषद द्वारा इस मामले में किए किसी भी पिछले या प्रत्याशित भुगतान का भी उपयोग पर्यावरण की बहाली के लिए किया जाएगा।

इस उद्देश्य के लिए अदालत ने कुल्लू के जिला मजिस्ट्रेट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सदस्य सचिव और एचपीएसपीसीबी के सदस्य सचिव की एक संयुक्त समिति के गठन का भी निर्देश दिया है।

एनजीटी ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि उक्त समिति अगले दो महीने के भीतर पर्यावरण कायाकल्प योजना तैयार करेगी। साथ ही समिति को अगले छह महीनों के भीतर इस योजना को लागू करने का निर्देश दिया गया है।

अदालत ने यह भी चेताया है कि यदि नगर परिषद ठोस कचरे का गलत प्रबंधन, प्रसंस्करण या दुरुपयोग जारी रखती है, तो ऐसे में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को मासिक आधार पर पर्यावरणीय मुआवजा निर्धारित करना चाहिए। साथ ही जब तक नगर परिषद 2016 के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का पूरी तरह से पालन नहीं करती तब तक उससे यह मुआवजा वसूला जाना चाहिए।

गौरतलब है कि मनाली में ग्राम पंचायत शालेन के प्रधान पलदान फुंचोग ने 25 मई, 2022 को अपनी एक पत्र याचिका क्षेत्र में ठोस कचरे की हो रही अवैध डंपिंग के बारे में शिकायत की थी। उनका कहना था कि स्थानीय निवासी दो किलोमीटर क्षेत्र में बिखरे कचरे और उससे उठती दुर्गंध से पीड़ित हैं। इसकी वजह से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो रही हैं और लोगों का जीवन नरक बन गया है। वहीं जवाब में, हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 24 जनवरी, 2024 को बताया कि उन्होंने तीन जनवरी, 2024 को रंगरी गांव में मौजूद नगरपालिका ठोस अपशिष्ट सुविधा का निरीक्षण किया था।

इस जांच के दौरान बहुत सारे उल्लंघन पाए गए। साइट पर ताजा मिश्रित कचरे के साथ लम्बे समय से मौजूद कचरे के ढेर पड़े थे। इनका वैज्ञानिक तरीके से प्रसंस्करण करने की आवश्यकता थी। इतना ही नहीं खाद के गड्ढे मिश्रित कचरे से भरे थे, और प्रदूषण बोर्ड के बार-बार दिए निर्देशों के बावजूद सुविधा में बायो-मीथेनेशन सुविधा और बायो-कंपोस्टर की कमी थी।

इसके अलावा, ब्यास नदी के पास पुराने कचरे के इर्द-गिर्द बनी रिटेनिंग दीवार गौ-सदन के पास क्षतिग्रस्त पाई गई। इसकी वजह से ताजा कचरे का अत्यधिक ढेर होने से कचरा ब्यास नदी के किनारे बहता पाया गया। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि बाढ़ के दौरान लीचेट ब्यास नदी में बहता देखा गया।

जेपी इंफ्राटेक की नोएडा में चल रही आवासीय परियोजना में सीवेज का गलत तरीके से किया जा रहा था निपटान

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) से मेसर्स जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड पर लगाए मुआवजे पर एक नया हलफनामा दायर करने को कहा है। जेपी इंफ्राटेक पर यह जुर्माना नोएडा में अपनी एक परियोजना के दौरान पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन न करने के लिए लगाया गया था।

गौरतलब है कि 18 मार्च, 2024 को अपने पिछले आदेश में न्यायाधिकरण ने कहा था कि यूपीपीसीबी को उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार लगाए पर्यावरणीय मुआवजे पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है। वहीं यूपीपीसीबी के वकील का कहना है कि मुआवजे पर फिर से विचार करने की प्रक्रिया जारी है और इस बारे में जल्द ही अंतिम आदेश जारी किया जाएगा। इस मामले में अगली सुनवाई एक अगस्त, 2024 को होनी है।

यह मामला जेपी इंफ्राटेक लिमिटेड से जुड़ा है, जो गौतमबुद्ध नगर के सेक्टर 133 में स्थित केंसिंग्टन पार्क-1, फेज-1 परियोजना में पर्यावरण नियमों का उल्लंघन कर रहा है। कहा गया है कि सीवेज मैनहोल से ओवरफ्लो होकर बरसाती नालियों में जा रहा है। इसके अलावा, परियोजना में ठीक तरीके से काम करने वाला सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) नहीं है। यह भी कहा गया है कि इस परियोजना की वजह से वायु प्रदूषण भी हो रहा है।

ऐसे में ट्रिब्यूनल ने 18 मार्च, 2024 को दिए आदेश में परियोजना प्रस्तावक से एसटीपी के संचालन की स्थिति और क्षमता के बारे में खुलासा करते हुए हलफनामा दाखिल करने को कहा गया था। साथ ही उनसे यह भी पूछा गया था कि अतिरिक्त सीवेज का निपटान कैसे किया जा रहा है।

हालांकि इस बारे में अब तक कोई हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है, वहीं परियोजना प्रस्तावक की ओर से पेश वकील सभी प्रासंगिक जानकारी के साथ हलफनामा दाखिल करने के लिए कोर्ट से और समय मांगा है।

वहीं आवेदक के वकील का कहना है कि एसटीपी नंबर 2 काम नहीं कर रहा, और सीवेज को नोएडा नाले और सेक्टर 133 में मौजूद एक लेबर कैंप में बहाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील का कहना है कि क्षेत्र के एसीपी ने 27 मई, 2024 को साइट का दौरा किया था, इस दौरान उन्हें कई अनियमितताएं मिली थीं। इनमें एसटीपी का काम न करना और हरित क्षेत्र का न बनाया जाना जैसे मुद्दे शामिल थे।

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