हार्वी के सबक

टेक्सास और हॉस्टन में कहर ढाने वाले इस तूफान ने अमेरिका की आर्थिक व्यवस्था और राजनीति पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
टेक्सास में हार्वी 26 अगस्त को रॉकपोर्ट से टकराया।  हार्वी तूफान से हुआ नुकसान करीब 9,72,150 से 11,66,580 लाख करोड़ रुपये का है (रॉयटर्स)
टेक्सास में हार्वी 26 अगस्त को रॉकपोर्ट से टकराया। हार्वी तूफान से हुआ नुकसान करीब 9,72,150 से 11,66,580 लाख करोड़ रुपये का है (रॉयटर्स)
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हार्वी तूफान अपने पीछे बर्बाद जिंदगियां और जानमाल की विशाल क्षति छोड़ गया है। तूफान से हुआ नुकसान करीब 150 से 180 बिलियन डॉलर (9,72,150 से 11,66,580 लाख करोड़ रुपये) का है। टेक्सास के तट पर एक हफ्ते तक तबाही मचाने वाले तूफान ने अमेरिका की आर्थिक व्यवस्था व राजनीति पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं।

यह विडंबना ही है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी यह घटना एक ऐसे राज्य में घटी है जो जलवायु परिवर्तन को नकारने वाले बहुत से लोगों का घर है। साथ ही यहां की अर्थव्यवस्था वैश्विक तापमान के लिए जिम्मेदार जीवाश्म ईंधनों पर बड़े पैमाने पर आश्रित है। निश्चित रूप से जलवायु की किसी घटना को वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। लेकिन वैज्ञानिकों ने बहुत पहले अनुमान लगा लिया था कि यह बढ़ोतरी न केवल औसत तापमान बढ़ाएगा बल्कि मौसम में अस्थिरता भी पैदा करेगा, खासकर हार्वी तूफान जैसी अतिशय (एक्सट्रीम) घटनाओं में।

इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने कुछ साल पहले निष्कर्ष निकाला था “इस बात के प्रमाण हैं कि मानवजनित प्रभाव के कारण एक्सट्रीम घटनाओं में बदलाव आया है। ग्रीनहाउस गैसों में बढ़ोतरी भी इनमें से एक है।” खगोल भौतिकविद एडम फ्रेंक ने व्याख्या की थी “ज्यादा तापमान का अर्थ है हवा में ज्यादा नमी और इसका मतलब है तेजी से वर्षण।”

यह तय है कि हॉस्टन और टेक्सास ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, यद्यपि ये जलवायु परिवर्तन की नीतियां बनाने में सक्रिय भूमिका जरूर निभा सकते हैं। लेकिन स्थानीय और राज्य प्राधिकरण ऐसी घटनाओं के बचाव के काफी बेहतर इंतजाम कर सकते थे जिनकी आवृत्ति से इलाका जूझा है।

तूफान के बाद सभी लोग मदद के लिए सरकार की ओर देखते हैं। ठीक ऐसे ही जैसे 2008 में आर्थिक संकट के वक्त देखा गया था। यह भी विडंबना है कि यह एक ऐसे देश के हिस्से में हो रहा है जहां सरकारी और सामूहिक गतिविधियों को दरकिनार किया गया है। यह भी हैरानी भरा है कि अमेरिका में बैंकिंग के दिग्गज नवउदारवाद के उपदेश देते हुए सरकारी हस्तक्षेप कम करने की मांग उठा रहे हैं और उन नियमों को हटाने की बात कह रहे हैं जो उन्हें खतरनाक और समाज विरोधी गतिविधियों से रोकते हैं। जरूरत पड़ने पर यही लोग सरकार की शरण में चले जाते हैं।

इस तरह के प्रसंगों से स्पष्ट रूप से सबक लेने की जरूरत है। बाजार में समाज को वह सुरक्षा देने की क्षमता है जिसकी जरूरत है। जब बाजार धाराशायी होते हैं, जो अक्सर हुआ भी है तो सामूहिक प्रयास अनिवार्य हो जाते हैं।

आर्थिक संकट की तरह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिए भी सामूहिक प्रयास की जरूरत है। इसका अर्थ है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि इमारतें और आधारभूत संरचनाएं इस तरह बनें कि वे अतिशय घटनाओं का सामना कर सकें। साथ ही ये ऐसी जगह में न हों जो नुकसान की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील हों। इसका मतलब यह भी है कि पर्यावरण की रक्षा की जाए, खासकर वेटलैंड को बचाया जाए। वेटलैंड तूफानों का प्रभाव कम करने में बेहद उपयोगी हो सकती है। इसका यह भी मतलब है कि प्राकृतिक आपदा के खतरे को कम किया जाए क्योंकि इन आपदाओं के फलस्वरूप खतरनाक रसायन पैदा हो सकता है। हॉस्टन में ऐसा हुआ भी था। इसका यह भी मतलब है कि बचाव जैसे राहत कार्य को पर्याप्त जगह मिले।

प्रभावकारी सरकारी निवेश और सख्त नियम इन परिणामों को हासिल करने में उपयोगी साबित हो सकते हैं। बिना पर्याप्त नियमों के, व्यक्ति और फर्मों को पर्याप्त सावधानियां बरतने के लिए लाभ हासिल नहीं होगा क्योंकि उन्हें पता है कि अतिशय घटनाओं की कीमत तो दूसरों को चुकानी होगी। सार्वजनिक योजनाओं और नियमों के अभाव में वातावरण के साथ बाढ़ भी बदतर होगी। बिना आपदा प्रबंधन और पर्याप्त फंडिंग के कोई भी शहर हॉस्टन की तरह मुश्किलों में घिर सकता है। अगर बचाव के आदेश नहीं होंगे तो बहुत से लोग मारे जाएंगे। लेकिन अगर बचाव के आदेश होंगे तो लोग इसके बाद होने वाली असमंजस की स्थिति में जाएंगे। साथ ही उलझन में फंसकर लोग बाहर नहीं निकल पाएंगे।

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उनकी रिपब्लिकन पार्टी ने सरकार विरोधी चरम विचारधारा को अपना रखा है। अमेरिका और दुनिया इसकी भारी कीमत चुका रही है। दुनिया कीमत इसलिए चुका रही है क्योंकि अमेरिका का ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में किसी भी देश से ज्यादा योगदान है। आज भी अमेरिका प्रति व्यक्ति ग्रीन हाउस उत्सर्जन के मामले में विश्व में अग्रणी है। अमेरिका भी इसकी भारी कीमत चुका रहा है। गरीब विकासशील देशों जैसे हैती और इक्वाडोर ने कुछ आपदाओं का सामना करने के बाद प्राकृतिक आपदाओं से निपटना सीख लिया है। भले ही इसके लिए इन देशों ने भारी भरकम राशि खर्च भी की हो।  

2005 में न्यू ऑरलियंस में कैटरीना तूफान ने भारी तबाही मचाई थी। 2012 में सैंडी तूफान ने न्यू यॉर्क शहर के अधिकांश हिस्से को नुकसान पहुंचाया। अब टेक्सास में हार्वी के रूप में विनाश आया है। इन आपदाओं से निपटने के लिए अमेरिका बेहतर काम कर सकता है। इसके पास वे तमाम संसाधन और कुशलता है जो ऐसी घटनाओं की जटिलताओं और उसके परिणामों का विश्लेषण कर सकते हैं। साथ ही ऐसे नियम और निवेश कार्यक्रम भी बनाए जा सकते हैं जो जानमाल पर पड़ने वाले नुकसानदेय प्रभाव को सीमित कर सकते हैं।

अमेरिका के पास जिस चीज का अभाव है वह है सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण। यह उन लोगों की वजह से है जो खास हितों के साथ काम करते हैं और वे एक्सट्रीम नीतियों से लाभ लेते हैं। जरूरत पड़ने पर वे दोनों तरफ की भाषा बोलते हैं। आपदा से पहले वे नियमों, सरकारी निवेश और योजनाओं का विरोध करते हैं और बाद में पुनर्वास व नुकसान की भरपाई के नाम पर बिलियंस डॉलर की मांग करते हैं और इसे हासिल भी कर लेते हैं। यह सब आसानी से रोका जा सकता है। इन हालातों में यही आशा की जा सकती है कि अमेरिका और दूसरे देशों ने हार्वी तूफान से सबक लिया होगा। उन्हें अब और समझाने बुझाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

(लेखक नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री हैं। यह लेख मूलरूप से प्रोजेक्ट सिंडीकेट द्वारा प्रकाशित किया गया था। डाउन टू अर्थ ने इसका अनुवाद किया है।)

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