वायनाड भूस्खलन: अनियंत्रित विकास और जलवायु परिवर्तन हैं इस त्रासदी के खलनायक

विशेषज्ञों का कहना है कि 2018 की तबाही के बाद भी केरल सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया
वायनाड जिले के चूरलमाला और मुंडक्कई गांवों में हुए भूस्खलन में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई
वायनाड जिले के चूरलमाला और मुंडक्कई गांवों में हुए भूस्खलन में 100 से अधिक लोगों की मौत हो गई Photo: @SpokespersonMoD
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30 जुलाई की तड़के केरल के वायनाड जिले में हुए भयावह भूस्खलन के लिए इंसानी गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। विशेषज्ञों ने कहा है कि केरल में इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन इंसानी गतिविधियां कम होने की बजाय बढ़ रही हैं।  

वायनाड जिले के चूरलमाला और मुंडक्कई गांवों में हुए भूस्खलन में 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों के फंसे होने की आशंका है। मरने वालों की संख्या में और इजाफा होने की आशंका है। 

विशेषज्ञों ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि केरल को भूस्खलन और बाढ़ की आशंका वाले पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए एक सरकारी नीति बनानी चाहिए। साथ ही, ऐसे क्षेत्रों से लोगों को स्थानांतरित करने और पुनर्वास करने की जरूरत है। 

उन्होंने कहा कि राज्य भर में भूस्खलन के खतरे का सूक्ष्म स्तर पर मानचित्रण तत्काल किया जाना चाहिए। केरल सरकार ने 2018 में राज्य में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद इन दोनों गतिविधियों को शुरू करने का वादा भी किया था। भारी बाढ़ के कारण वायनाड और इडुक्की जिलों में कई भूस्खलन हुए। दोनों जिले केरल के पश्चिमी घाट के हिस्से में हैं और पहाड़ी और जंगल से घिरे हैं।

हालात यह हैं कि केरल में मौसम की चरम घटनाएं हर साल घट रही हैं, लेकिन इन घटनाओं से निपटने की दिशा में अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। 

पिछले छह वर्षों में ही केरल में हुए भूस्खलन में करीब 300 लोगों की मौत हो गई। ताजा त्रासदी से संकेत मिलता है कि भारी बारिश और बड़े भूस्खलन भविष्य में भी राज्य को परेशान करते रहेंगे। 

विशेषज्ञों के अनुसार, वायनाड जिले में जंगल और मिट्टी का आवरण कम होता जा रहा है। खदानों की खुदाई, निर्माण के लिए पहाड़ियों का समतलीकरण, व्यापक सड़क निर्माण और एकल-फसल खेती के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की वजह से बहुत भारी बारिश से भूस्खलन बढ़ा है। 

चार साल पहले, केरल में पुथुमाला भूस्खलन के कारण 'मिट्टी की पाइपिंग' का उदय हुआ। इस हाइड्रोलिक प्रक्रिया से भूमिगत सतह में हवा से भरी  खाली जगह बन जाती है, जिससे अक्सर भूस्खलन व धंसाव होता है। 

मुंदक्कई और चूरलमाला में भूस्खलन से संकेत मिलता है कि मिट्टी की पाइपिंग इसका कारण हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि पुथुमाला उस स्थान से केवल दो किलोमीटर दूर है, जहां 30 जुलाई को भूस्खलन हुआ था। 

एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च के वैज्ञानिक एम जी मनोज के अनुसार, हाल ही में हुए भूस्खलन में मिट्टी के पाइपिंग की सभी विशेषताएं दिखाई देती हैं। उन्होंने मिट्टी की कम समय में बड़ी मात्रा में पानी को अवशोषित करने की अक्षमता और पुथुमाला त्रासदी के कारण बने महत्वपूर्ण सतही रिक्त स्थान की ओर भी इशारा किया, जिसने आपदा का पैमाना बढ़ाने में योगदान दिया। 

वायनाड में मृदा संरक्षण अधिकारी पी यू दास ने बताया कि मानसून के चरम पर बारिश का पानी मिट्टी के नीचे चला जाता है, जिससे मिट्टी और चट्टानों के बीच का संबंध ढीला हो जाता है। इससे भूस्खलन होता है क्योंकि पानी से भरी धरती और बड़ी चट्टानें नीचे गिरती हैं। 

केरल वन अनुसंधान संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक टी वी सजीव ने कहा कि भारी बारिश के कारण विभिन्न मानवजनित गतिविधियों के कारण भूस्खलन होता है। उदाहरण के लिए, चूरलमाला और मुंडक्कई में मोनो-क्रॉप चाय बागान हैं, और इस क्षेत्र में मीनमुट्टी जलप्रपात के निकट होने के कारण पर्यटकों के लिए यहां इंफ्रास्ट्रक्चर भी खड़ा किया गया है। 

नियमों के बावजूद अधिकारियों की मिलीभगत से इस अत्यधिक नाजुक क्षेत्रों में कई पर्यटक रिसॉर्ट बनाए गए हैं। 

केरल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के भूस्खलन खतरा प्रोफाइल मानचित्र के अनुसार, वायनाड जिले का चालीस प्रतिशत से अधिक हिस्सा भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है, जिसमें चूरलमाला, मुंडाकाई और पुथुमाला सहित मेप्पाडी क्षेत्र विशेष रूप से गंभीर है। 

चार साल पहले बड़े पैमाने पर भूस्खलन वाले मलप्पुरम जिले का क्वलप्पारा मेप्पाडी पहाड़ियों के विपरीत दिशा में है।

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