संसद में आज: चार राज्यों में ग्लेशियर से बनी झीलों की हो रही है सैटेलाइट से निगरानी

मंत्री ने संसद में कहा कि ई20 ईंधन का ऑक्टेन नंबर 95 होता है, जो वाहनों के इंजन के लिए बेहतर प्रदर्शन देता है, इसके वाहन के पुर्जों पर भी कोई नुकसान नहीं होता।
संसद में आज: चार राज्यों में ग्लेशियर से बनी झीलों की हो रही है सैटेलाइट से निगरानी
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सारांश
  • ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ावा: 18 कंपनियों को 8.62 लाख एमटीपीए ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए प्रोत्साहन, तथा वीओसी पोर्ट (तमिलनाडु) में ग्रीन मिथेनॉल रिफ्यूलिंग सुविधा की शुरुआत।

  • रूफटॉप सोलर का व्यापक विस्तार: देश में 22.42 गीगा वॉट रूफटॉप सोलर क्षमता स्थापित, 13,525 सरकारी भवनों पर 619.78 मेगा वॉट सोलर सिस्टम लगाए गए।

  • बायोई3 नीति का शुभारंभ: छह प्रमुख जैव-क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता वाली बायो-मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए बायोफाउंड्री, बायो-एआई हब और बायो-मैन्युफैक्चरिंग हब की स्थापना।

  • ई20 ईंधन सुरक्षित और प्रभावी: आईओसीएल, एसआईएएम और एआरएआई के अध्ययनों में पाया गया कि ई20 ईंधन का वाहनों पर कोई बुरा असर नहीं होता तथा इंजन प्रदर्शन बेहतर रहता है।

  • आपदा प्रबंधन में मजबूती: चक्रवात ‘मोंथा’ से प्रभावित आंध्र प्रदेश और ओडिशा को एसडीआरएफ के तहत बड़ी वित्तीय सहायता, साथ ही 150 करोड़ रुपये की राष्ट्रीय जीएलओएफ परियोजना के माध्यम से हिमालयी राज्यों में ग्लेशियर झीलों की निगरानी।

आज, 10 दिसंबर, 2025 को लोकसभा और राज्यसभा में पूछे गए सवालों का सरकार के विभिन्न मंत्रियों के द्वारा जवाब दिया गया। जिसमें कहा गया है कि सरकार हर क्षेत्र, जैसे - नवीकरणीय ऊर्जा, जैव-उद्योग, वाहन ईंधन सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाओं का प्रबंधन और ग्लेशियर से बनी झीलों के खतरे पर गहन कार्य कर रही है।

इन पहलों का लक्ष्य देश को आत्मनिर्भर बनाना, पर्यावरण की रक्षा करना और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन : भविष्य की ऊर्जा का केन्द्र

ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को लेकर आज सदन में पूछे गए एक सवाल के जवाब में आज, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा एवं विद्युत राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने लोकसभा में कहा कि भारत ने दुनिया भर में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का केन्द्र बनने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

यही कारण है कि नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (एनजीएचएम) के तहत सरकार ने 18 कंपनियों को 8,62,000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन के लिए प्रोत्साहन दिया है। आने वाले वर्षों में ये परियोजनाएं भारत के विभिन्न राज्यों मंल स्थापित की जाएंगी।

नाइक ने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन वह ऊर्जा स्रोत है जिसे नवीकरणीय ऊर्जा से तैयार किया जाता है और जिससे प्रदूषण बेहद कम होता है। यह न केवल भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मदद करेगा बल्कि निर्यात के अवसर भी बढ़ाएगा।

मंत्रालय ने समुद्री यातायात वाले क्षेत्र में भी ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग के लिए पायलट परियोजनाओं के दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसी के तहत तमिलनाडु के वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह में ग्रीन मिथेनॉल के बंकरिंग और रिफ्यूलिंग सुविधा विकसित करने का कार्य शुरू किया गया है। यह कदम भारत को हाइड्रोजन आधारित समुद्री ईंधन के क्षेत्र में अग्रणी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

रूफटॉप सोलर : घर-घर पहुंचती सौर ऊर्जा

सदन में उठाए गए एक अन्य प्रश्न के उत्तर में आज, राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने लोकसभा में बताया कि भारत में सौर ऊर्जा की पहुंच लगातार बढ़ रही है। 31 अक्टूबर 2025 तक देश में 22.42 गीगावॉट रूफटॉप सोलर क्षमता स्थापित की जा चुकी है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि नागरिक और उद्योग दोनों ही स्वच्छ ऊर्जा अपनाने के प्रति तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।

इसके अलावा चार नवंबर, 2025 तक केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की 13,525 इमारतों पर 619.78 मेगावॉट क्षमता के रूफटॉप सोलर संयंत्र लगाए जा चुके हैं। इससे सरकारी कार्यालयों के बिजली खर्च में बड़ी बचत होगी और पर्यावरण को भी फायदा पहुंचेगा।

बायोई3 नीति: जैव-उद्योग में नई क्रांति

सदन में उठे एक सवाल के जवाब में आज, विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (स्वतंत्र प्रभार) में मंत्री जितेंद्र सिंह ने लोकसभा में जानकारी देते हुए कहा कि भारत सरकार ने जैव-उद्योग (जैव विनिर्माण) को बढ़ावा देने के लिए बायोई3 नीति लागू की है।

यह नीति नवाचार, उन्नत तकनीक और बेहतर गुणवत्ता वाले जैव-आधारित उत्पादों के विकास पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत को विश्व स्तरीय बायो-मैन्युफैक्चरिंग केन्द्र बनाना है।

यह नीति छह प्रमुख क्षेत्रों पर आधारित है -

  • जैव आधारित रसायन और एंजाइम

  • फंक्शनल फूड और स्मार्ट प्रोटीन

  • प्रिसीजन बायोथेरैप्यूटिक्स

  • जलवायु-सहिष्णु कृषि

  • कार्बन कैप्चर और उपयोग

  • समुद्री और अंतरिक्ष जैव अनुसंधान

जितेंद्र सिंह ने कहा इन शोध गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए बायोफाउंड्री, बायो- मैन्युफैक्चरिंग हब और बायो-एआई हब जैसी संस्थाओं की स्थापना की जाएगी। इससे रोजगार बढ़ेगा, नई तकनीक विकसित होगी और भारत वैश्विक जैव-आर्थिक बाजार में अपनी मजबूत जगह बना सकेगा।

ई20 ईंधन : पर्यावरण और वाहन सुरक्षा की दिशा में बड़ी पहल

ई20 ईंधन को लेकर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन जयराम गडकरी ने राज्यसभा में बताया कि भारत में ई20 ईंधन - यानी 20 फीसदी एथेनॉल और 80 फिदी पेट्रोल का उपयोग बढ़ाया जा रहा है। एथेनॉल पर्यावरण के लिए सुरक्षित और कम प्रदूषणकारी माना जाता है।

गडकरी ने कहा कि ई20 ईंधन का ऑक्टेन नंबर 95 होता है, जो वाहनों के इंजन के लिए बेहतर प्रदर्शन देता है और "नॉकिंग" जैसी समस्याओं को कम करता है।आईओसीएल, एसआईएएम और एआरएआई द्वारा किए गए अध्ययन बताते हैं कि ई20 के उपयोग से वाहन के प्रदर्शन में कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है और इसके पुर्जों पर भी कोई नुकसान नहीं होता। यह भारत को स्वच्छ ईंधन की दिशा में आत्मनिर्भर बनाता है।

चक्रवात "मोंथा" : राज्यों को वित्तीय सहायता

सदन में उठे एक सवाल के जवाब में आज, गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि आंध्र प्रदेश और ओडिशा में आए चक्रवात मोंथा से प्रभावित लोगों की मदद के लिए केंद्र सरकार ने बड़ी वित्तीय सहायता प्रदान की है। आंध्र प्रदेश को 1449.60 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया जिसमें केंद्र सरकार का हिस्सा 1088 करोड़ रुपये था तथा राज्य का हिस्सा 361.60 करोड़ रुपये का रहा। पहली किस्त के रूप में 544 करोड़ रुपये जारी किए गए। राज्य के एसडीआरएफ खाते में एक अप्रैल, 2025 को 3159.52 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि थी।

वहीं ओडिशा का कुल आवंटन 2080 करोड़ रुपये था, जिसमें केंद्र का हिस्सा 1560 करोड़ रुपये और राज्य का हिस्सा 520 करोड़ रुपये था। पहली किस्त 780 करोड़ रुपये की जारी की गई। शुरुआती एसडीआरएफ खाते में बकाया 6534.87 करोड़ रुपये था। चक्रवात के आकलन के लिए आईएमसीटी ने 10 व 11 नवंबर, 2025 को प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया। रिपोर्ट मिलने के बाद एनडीआरएफ से आगे की सहायता देने की बात कही गई।

ग्लेशियर से बनी झील फटने (जीएलओएफ) से सुरक्षा : चार राज्यों में बड़े प्रोजेक्ट

ग्लेशियर से बनी झीलों के फटने से लेकर सदन में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में आज, गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा में जानकारी देते हुए कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर पिघलने से बनने वाली झीलों के फटने का खतरा लगातार बढ़ रहा है। इस जोखिम को कम करने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय जीएलओएफ जोखिम न्यूनीकरण परियोजना (एनजीआरएमपी) को मंजूरी दी है, जिसकी लागत 150 करोड़ रुपये है।

यह परियोजना अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और उत्तराखंड में लागू की जा रही है। बड़े ग्लेशियर से बनी झीलों की निगरानी के लिए सैटेलाइट इमेजरी, ड्रोन (यूएवीएस) और ग्राउंड सेंसरों का उपयोग किया जा रहा है। इस कार्य में सीडब्ल्यूसी, आईआईआरएस, जीएसआई और एनआरएससी जैसी प्रमुख संस्थाएं भी शामिल हैं।

कुल मिलाकर देश में ऊर्जा सुरक्षा, जैव-प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ईंधन, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण को लेकर सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने की बात कही है। ग्रीन हाइड्रोजन, सौर ऊर्जा, एथेनॉल मिश्रित ईंधन और जैव-उद्योग जैसे क्षेत्रों में तेजी से प्रगति भारत को आत्मनिर्भर, पर्यावरण अनुकूल और तकनीकी रूप से उन्नत राष्ट्र बनाने की दिशा में निर्णायक कदम हो सकते हैं।

इसी तरह, चक्रवात और ग्लेशियर से बनी झील फटने के जोखिमों को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयास देश की आपदा-प्रबंधन क्षमता को मजबूत बनाते हैं। ये पहल न केवल वर्तमान चुनौतियों को संबोधित करती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वच्छ भविष्य का निर्माण भी करती हैं।

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