उत्तराखंड एक बार फिर सूखे की चपेट में आ सकता है। हालांकि पर्वतीय क्षेत्रों में 40 प्रतिशत से ज्यादा खेती अब पलायन के कारण लगभग बंजर हो चुकी है, लेकिन जिस 60 प्रतिशत हिस्से पर खेती की जा रही है, वह अभी सूखे की चपेट में है। आमतौर पर राज्य के पर्वतीय और मैदानी भागों में जून की शुरुआत में पूर्व मानसून की बरसात के साथ ही धान की बुआई शुरू हो जाती है और जून के आखिरी दिनों में मानसून सक्रिय हो जाने के बाद धान की फसल तेजी से बढ़ने लगती है। लेकिन, इस बार स्थितियां बदली हुई हैं।
जून के महीने में ज्यादातर क्षेत्रों में बहुत कम बारिश हुई है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर है, केवल 5 प्रतिशत क्षेत्र ऐसा है, जहां खेतों में गदेरों के पानी से सिंचाई होती है, लेकिन गदेरों में भी पानी की मात्रा बारिश के बाद ही बढ़ती है। इस बार जून का महीना बीत जाने के बाद भी बारिश बहुत कम होने से फसलें सूख रही हैं।
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में जून का महीना पिछले 10 सालों में सबसे कम बारिश वाला रहा है। इससे पहले 2012 में भी राज्य में लगभग यही स्थिति पैदा हो गई थी। उस समय राज्य में कुल 81 मिमी बारिश दर्ज की गई थी, लेकिन इस बार जून में मात्र 78.4 मिमी बारिश ही दर्ज की गई, जबकि सामान्य तौर पर इस दौरान 139.6 मिमी बारिश होती है। इस तरह से जून के महीने में राज्य में सामान्य से 44 प्रतिशत कम बारिश हुई है। राज्य का एक मात्र ऊधमसिंह नगर जिला ऐसा है, जिसमें जून के महीने में सामान्य से 17 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई। अन्य सभी जिलों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई।
मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार जून के महीने में सबसे बुरी स्थिति पौड़ी जिले की रही। यहां इस दौरान सामान्य तौर पर 323.6 मिमी बारिश होनी चाहिए, लेकिन इस बार मात्र 23.1 मिमी बारिश ही दर्ज की गई। सूखे के लिहाज से हरिद्वार जिले के स्थान दूसरा है, यहां जून के महीने में 96.3 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन मात्र 21.1 मिमी पानी ही यहां बरसा है। अल्मोड़ा जिले में जून में सामान्य से 40 प्रतिशत कम बारिश हुई। इसी तरह बागेश्वर में 35 प्रतिशत, चमोली में 37 प्रतिशत, चम्पावत में 47 प्रतिशत, देहरादून में 36 प्रतिशत, टिहरी में 40 प्रतिशत, नैनीताल में 29 प्रतिशत, पिथौरागढ़ में 42 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में 47 प्रतिशत और उत्तकाशी में सामान्य से 55 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई।
जून के अंतिम सप्ताह में आमतौर पर उत्तराखंड में मानसून सक्रिय हो जाता है और अच्छी बारिश होती है। इस बार 24 जून को मौसम विभाग ने राज्य के कुछ हिस्सों में मानसून सक्रिय होने की घोषणा के साथ ही अगले 48 घंटों में पूरे राज्य में मानसून सक्रिय हो जाने का पूर्वानुमान व्यक्त किया था। 24 जून को ऊधमसिंह नगर जिले में अच्छी बारिश दर्ज हुई, लेकिन बाकी राज्य लगभग सूखा ही रहा। इसके बाद मानसून अचानक ठिठक गया। जून के आखिरी सप्ताह में राज्य का ऊधमसिंह नगर जिला बारिश में खूब सराबोर रहा। इस दौरान यहां 104.8 मिमी बारिश हुई, जो कि सामान्य से 144 प्रतिशत अधिक है। लेकिन, हरिद्वार जिले में मात्र छिटपुट बूंदाबांदी ही हुई। यहां इस सप्ताह के दौरान सामान्य रूप से 41.0 मिमी बारिश होती है, लेकिन मात्र 0.3 मिमी यानी 99 प्रतिशत कम बारिश हुई। इसी सप्ताह के दौरान पौड़ी जिले में सामान्य औसत से 89 प्रतिशत और रुद्रप्रयाग में 81 प्रतिशत कम बारिश हुई। बागेश्वर और टिहरी जिलों में स्थितियां कुछ ठीक रही। बागेश्वर में सामान्य से 22 प्रतिशत और टिहरी में 7 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई।
जून के महीने में होने वाली बारिश के पिछले 10 वर्षों के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो 2012 का वर्ष बारिश की दृष्टि से सबसे बुरा रहा। इस वर्ष राज्य में जून के महीने में मात्र 81 मिमी बारिश हुई। हालांकि 2013 का जून बारिश अतिवृष्टि का महीना रहा है। केदारनाथ आपदा वाले इस वर्ष जून के महीने में 1084.8 मिमी बारिश हुई, जो कि ऑल टाइम रिकॉड है।
कम बारिश के बीच उत्तराखंड में जून के महीने में मौसम संबंधी कुछ अप्रत्याशित गतिविधियां भी दर्ज की गई है। 30 जून को जबकि सामान्य रूप से राज्य में मानसूनी बारिश होनी चाहिए थी, अचानक कई हिस्सों में तेज अंधड़ के साथ बारिश हुई। आंधी इतनी तेज थी कि जगह-जगह पेड़ और बिजली के पोल गिर गये। इससे पहले 17 जून को भी इसी तरह का अंधड़ और बारिश का सामना करना पड़ा था। मौसम में यह परिवर्तन कितना अप्रत्याशित था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 30 जून को दोपहर 12 बजे देहरादून स्थित मौसम विज्ञान केन्द्र से जारी किये गये अनुमान में अगले तीन घंटे तक मौसम में किसी तरह का कोई बदलाव न होने का पूर्वानुमान जताया गया था, लेकिन आधे घंटे बाद में अचानक बादल छाने लगे और दोपहर 1 बजे देहरादून सहित राज्य के कई हिस्सों में तेज आंधी और बौछारें शुरू हो गई। आधे घंटे बाद फिर से मौसम साफ हो गया।
मौसम विज्ञान केन्द्र के निदेशक बिक्रम सिंह ने मौसम में हुए इस अप्रत्याशित बदलाव को लोकल डेवलपमेंट के कारण हुई आइसोलेटेड एक्टिविटी कहा। उन्होंने यह भी कहा कि इससे मानसून की सामान्य गतिविधियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा और 2 जुलाई के बाद राज्य में मानसून की एक्टिविटी बढ़ जाएगी।
वहीं, गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के उद्यान विभाग में वैज्ञानिक रह चुके डॉ विजय प्रसाद डिमरी कहते हैं कि मौसम का यह मिजाज खेती के लिए खतरनाक है। जून केआखिरी दिनों में तेज आंधी के साथ हुई बारिश से खेती को नुकसान पहुंचा है। ऐसे में, जुलाई में भी बारिश कम रही तो उत्तराखंड की जलवायु तो प्रभावित होगी ही, साथ ही खेती को भी नुकसान होने की पूरी आशंका है।