बिहार के किशनगंज जिले में सामान्यतः अन्य जिलों के मुकाबले मॉनसून की बारिश अधिक होती है, लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं। जिले में जुलाई महीने में सामान्य से 77 प्रतिशत कम बारिश हुई है। कम बारिश होने के कारण धान की रोपनी पर गहरा असर पड़ा है।
किशनगंज के जिला कृषि अधिकारी प्रवीण झा ने डाउन टू अर्थ को बताया, “इस साल जिले में 81,557 हेक्टेयर में धान की बुआई का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अभी तक 36,577 हेक्टेयर में ही धान की बुआई हो पाई है, जो तय लक्ष्य का लगभग 45 प्रतिशत है।”
अन्य जिलों की स्थिति भी कमोबेश किशनगंज जैसी ही है। कटिहार में तो अब तक लक्ष्य के मुकाबले महज 32 प्रतिशत खेत में ही धान रोपा गया है और उसमें भी सिर्फ 10 प्रतिशत खेतों में ही बारिश के पानी से कदवा (खेत में पर्याप्त पानी डालकर मिट्टी को तोड़ कीचड़ बनाने की प्रक्रिया) कर रोपनी की गई है।
इसी तरह गया जिले में इस साल 1 लाख 81 हजार 832 हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य था, लेकिन अब तक महज 9 हजार 260 हेक्टेयर में ही धान की रोपनी हुई है, जो लक्ष्य का 5.06 प्रतिशत ही।
गया में अमूमन कम बारिश होती है, लेकिन इस बार उससे भी कम बारिश हुई है। गया जिले में अब तक सामान्य से लगभग 75 प्रतिशत कम बारिश हुई है। जिले के एक किसान धनेश्वर सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया, “बारिश कम होने के कारण यहां भूजल स्तर पर भी काफी नीचे चला गया है, जिस कारण बोरिंग से भी पानी डालकर कदवा करना मुश्किल हो रहा है।”
गया जिले के सिंचाई विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “गया में वैसे ही भूजल स्तर काफी नीचे रहता है, लेकिन इस बार बारिश नहीं हुई है, जिसके चलते वर्तमान में भूजल स्तर 30 से 35 फीट और नीचे चला गया है। इससे किसानों को काफी परेशानी हो रही है।”
जिले के कृषि अधिकारी अशोक कुमार सिन्हा ने बताया, “गया में जो भी नदियां और उनसे जुड़ी हुई नहरें हैं, वे बरसाती हैं। चूंकि बारिश ही नहीं हो रही है तो ये नदियां पूरी तरह सूखी हुई हैं। हमलोग एक हफ्ते तक देखेंगे कि बारिश होती है या नहीं। अगर पर्याप्त बारिश नहीं हुई, तो किसानों को अरहर, तोरी और कुर्थी लगाने की सलाह देंगे। इन फसलों में पानी की कम जरूरत पड़ती है और जल्दी कटनी हो जाती है। इससे किसानों को अगली फसल समय पर लगाने का वक्त मिल जाएगा।”
गया जिले से सटे नवादा के किसान धीरेंद्र चौरसिया ने इस बार 10 बीघा में धान रोपने का फैसला लिया था, लेकिन अब तक एक कट्ठा में भी धान नहीं रोप पाये हैं। “धान का बिचरा तैयार हो चुका है, लेकिन खेत में धूल उड़ रही है। जमीन के भीतर भी पानी नहीं है कि बोरिंग से खेत में पानी पटा लें। जो स्थिति है, उससे नहीं लगता है कि इस बार एक कट्ठा में धान रोप सकेंगे।”
चार जिलों में 75%, 10 जिलों में 60% कम बारिश
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बिहार के 38 में से 36 जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। इनमें से चार जिलों शेखपुरा, अरवल, औरंगाबाद और गया में 1 जून से 22 जुलाई तक बारिश सामान्य से 70-75 प्रतिशत तक कम हुई है। वहीं, कटिहार, बांका, भागलपुर, जहानाबाद समेत 10 जिलों में इस अवधि में सामान्य से 60 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है। अन्य जिलों में सामान्य से 40 से 50 प्रतिशत तक कम बारिश हुई है।
बिहार में मॉनसून की कुल बारिश का 50 प्रतिशत हिस्सा जून और जुलाई में बरसता है। एक जून से 22 जुलाई तक 414 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन 228 मिलीमीटर ही बारिश हुई है, जो सामान्य से लगभग 45 प्रतिशत कम है। कम बारिश होने से धान की रोपनी जिस तरह प्रभावित हुई है, उससे अनुमान है कि इस बार धान का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व विज्ञानी अब्दुस सत्तार ने डाउन टू अर्थ से कहा, “धान की रोपनी का सबसे अनुकूल वक्त 15 जुलाई तक ही होता है। इस अवधि तक रोपनी से बढ़िया उत्पादन होता है। लेकिन 15 जुलाई बीत जाने के बाद भी बहुत सारे जिलों में बेहद कम रोपनी हुई है। इससे धान की पैदावार पर गहरा असर पड़ेगा।”
उन्होंने कहा, “अगर अगस्त में भारी बारिश हो जाए और बारिश सामान्य स्तर पर भी पहुंच जाए, तो किसानों को बहुत फायदा नहीं होगा, बल्कि इससे नुकसान ही होगा, क्योंकि भारी बारिश हो जाने से बाढ़ की स्थिति बनेगी और धान की फसल बर्बाद हो सकती है।”
गया के कृषि पदाधिकारी ने डाउन टू अर्थ से कहा कि अव्वल तो रोपनी ही कम हुई है और उस पर जहां रोपनी हुई है, वहां कड़ी धूप से पौधे बर्बाद हो रहे हैं।
शेखपुरा के जिला कृषि पदाधिकारी शिवदत्त कुमार सिन्हा ने भी कहा कि उनके जिले में लक्ष्य के मुकाबले महज 7 प्रतिशत रोपनी हो पाई है, लेकिन धूप के कारण धान के पौधे झुलस रहे हैं। सिन्हा बतात हैं, “जून में तो सामान्य से 70 प्रतिशत कम और जुलाई में सामान्य से 75 प्रतिशत कम बारिश हुई है।”
इस बार सूखे के आसार
किसी क्षेत्र को सूखा घोषित करने के लिए तीन-चार शर्तें होती हैं – खेत में दरारें, धान के बिचरा का सूख जाना और सामान्य से काफी कम बारिश।
राज्य के कृषि विभाग के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “जो हालात दिख रहे हैं, उससे सूखे की आशंका लग रही है, लेकिन इस तरह की घोषणा कृषि विभाग के अधिकारी खेतों का दौरा करने के बाद ही करते हैं। अगर अगले 10-15 दिनों में पर्याप्त बारिश नहीं हुई, तो अगस्त के पहले हफ्ते में सुखाड़ की घोषणा हो सकती है।”
दक्षिण बिहार सेंट्रल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ अर्थ, बायोलॉजिकल एंड एनवायरमेंटल साइंसेज के डीन प्रो. प्रधान पार्थ सारथी ने डाउन टू अर्थ से कहा, “मॉनसून की ट्रफ लाइन बंगाल की खाड़ी में आती है, तो वह दो हिस्सों में बंट जाती है। एक पूर्वोत्तर में चली जाती है और दूसरी छोटानागपुर से होती हुई बिहार में प्रवेश करती है। इस बार छोटानागपुर से आने वाली हवा कमजोर हो गई है, जो बंगाल की खाड़ी से पर्याप्त नमी ला नहीं पा रही है और बारिश नहीं हो रही है।”
पार्थ सारथी ने कहा, “दूसरा कारण यह है कि हर साल इस सीजन में बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव का क्षेत्र बनता था, उससे भी अच्छी बारिश हो जाया करती थी, लेकिन इस बार वो भी नहीं बन रहा है। इसलिए मुझे ऐसा लग रहा है कि इस बार बिहार में सुखाड़ की स्थिति रहेगी।”