पंजाब बाढ़: बारिश, कमजोर तटबंध, अतिक्रमण व जल निकासी में बाधा का नतीजा
प्राकृतिक कारण: हिमाचल में भारी बारिश के अलावा पंजाब में 28 अगस्त से 3 सितंबर तक भारत ने सामान्य से 48 प्रतिशत अधिक हुई
मानव कारकों में सबसे प्रमुख रहा सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के किनारे धुस्सी बांधों का टूटना।
मुख्य नदियों के बाढ़ के मैदानों (फ्लडप्लेन) पर अवैध अतिक्रमण, खेती और बस्तियां बसाना भी नुकसान बढ़ाने का बड़ा कारण बना।
पंजाब की नदियों और बांधों की जलधारण क्षमता गाद जमने (सिल्टेशन) से घट गई है और समय पर गाद निकासी (डीसिल्टिंग) न करने से स्थिति और बिगड़ गई।
शहरी फ्लैश फ्लड की स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन शहरों की पुरानी सीवरेज और ड्रेनेज प्रणालियों को तत्काल दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
उत्तर-पश्चिम भारत का राज्य पंजाब नियमित रूप से मॉनसूनी बाढ़ का सामना करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि सतलुज, ब्यास और रावी नदियां अक्सर अपने किनारों से ऊपर बहने लगती हैं, जिससे भाखड़ा, पोंग और रणजीत सागर बांधों से अत्यधिक पानी छोड़ना पड़ता है। राज्य की सपाट मैदानी भूमि इसे बाढ़ से डूबने के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाती है। यद्यपि बाढ़ प्रबंधन योजनाएं और अन्य बाढ़ नियंत्रण उपाय पहले से मौजूद हैं, फिर भी इन बाढ़ों से हजारों एकड़ कृषि भूमि का नुकसान होता है, मनुष्यों और पशुधन की मृत्यु होती है, संपत्ति, संसाधनों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है, विशेषकर राज्य के बेत (नदी के किनारे की बाढ़-प्रवण भूमि) क्षेत्रों में।
अगस्त के अंतिम सप्ताह और सितंबर 2025 के शुरुआती दिनों में उत्तर-पश्चिम भारत में जलवायु परिवर्तन से प्रेरित तीव्र और लम्बे समय तक जारी वर्षा के कारण हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में अचानक विनाशकारी आई बाढ़ (फ्लैश फ्लड) आई। यद्यपि पंजाब ने सितंबर 1988, जुलाई 1993 और अगस्त 2013 में सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर बाढ़ देखी थी, लेकिन अगस्त 2025 की बाढ़ को पिछले तीन दशकों की सबसे भीषण बाढ़ माना जा रहा है क्योंकि इसने अत्यधिक नुकसान पहुंचाया।
बाढ़ के कारण पंजाब के 2,000 से अधिक गांवों में करीब 4 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए। सबसे अधिक प्रभावित जिला गुरदासपुर रहा, इसके बाद अमृतसर, फिरोजपुर और फाजिल्का का स्थान है। 8 सितंबर तक 48 लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
इस जलप्रलय ने 1.76 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि, विशेषकर धान की फसल को नुकसान पहुंचाया और बाढ़ का पानी गुरदासपुर, अमृतसर, पठानकोट, होशियारपुर, कपूरथला, तरनतारन, फिरोजपुर, फाजिल्का, जालंधर और रूपनगर (रोपड़) जिलों के 1,400 से अधिक गांवों में फैल गया है। पटियाला जिले ने भी हरियाणा की सीमा से लगते घग्गर नदी के किनारे बसे गांवों में जलभराव की सूचना दी।
दिलचस्प बात यह रही कि पंजाब के प्रमुख शहर जैसे मोहाली, लुधियाना, जालंधर, अमृतसर और राज्य की राजधानी चंडीगढ़ में भी शहरी फ्लैश फ्लड (शहरों में अचानक आई बाढ़) के दृश्य देखे गए।
1 से 3 सितंबर 2025 के बीच भारी और लगातार बारिश के कारण सड़कों, आवासीय और वाणिज्यिक परिसरों में जलभराव हो गया। “अल्प अवधि में अत्यधिक वर्षा” हाल के वर्षों में पंजाब और उत्तर-पश्चिम भारत के अन्य पड़ोसी राज्यों में आम होती जा रही है। साथ ही, शहरी फ्लैश फ्लड की स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इन शहरों की पुरानी सीवरेज और ड्रेनेज प्रणालियों को तत्काल दुरुस्त करने की आवश्यकता है।
समाचार रिपोर्टों और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर साझा वीडियो का विश्लेषण दर्शाता है कि सरकारी और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय ग्रामीणों ने भी राहत और बचाव कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ग्रामीणों ने नदियों के कमजोर धुस्सी बांधों (अस्थायी तटबंधों) को मजबूत करने, प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को धर्मशालाओं, गुरुद्वारों, सामुदायिक केंद्रों और स्कूलों में बनाए गए आश्रयों तक पहुंचाने, पीड़ितों के लिए लंगर (सामुदायिक रसोई) का आयोजन कर भोजन उपलब्ध कराने और गांव के गुरुद्वारों के लाउडस्पीकरों व सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से बाढ़ की स्थिति की चेतावनी देने जैसे अनेक कार्य किए।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय और स्थानीय गैर-सरकारी संगठन, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, प्रसिद्ध पंजाबी गायक और अभिनेता भी इन राहत कार्यों में सक्रिय रहे और आर्थिक सहयोग किया।
कारण और प्रबंधन की कमियां
2025 की व्यापक बाढ़ के प्रमुख कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों थे। पंजाब में 30 अगस्त तक 24 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई, जहां सामान्य तौर पर 357.1 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, वहां 443 मिमी बारिश हुई।
इसके अलावा, 28 अगस्त से 3 सितंबर तक भारत ने सामान्य से 48 प्रतिशत अधिक वर्षा प्राप्त की, जिसका औसत 75.2 मिमी था। इस वर्ष अब तक की कुल मॉनसूनी वर्षा सामान्य से 8 प्रतिशत अधिक रही है। इस प्रकार, उत्तर-पश्चिम भारत ने इस साल भारी मॉनसूनी वर्षा का अनुभव किया, जिससे पंजाब सहित कई राज्यों में बाढ़ आई। हिमाचल प्रदेश से क्लाउडबर्स्ट (मेघ फटना) के कारण आई सतही बाढ़ ने पंजाब से बहने वाली तीन नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ा दिया।
मॉनसून ट्रफ का सक्रिय होना, पश्चिमी विक्षोभ और चक्रवाती तंत्र इस क्षेत्र में अधिक वर्षा के मुख्य कारण बताए जा रहे हैं। मानव कारकों में सबसे प्रमुख रहा सतलुज, ब्यास और रावी नदियों के किनारे धुस्सी बांधों का टूटना। इन कमजोर बांधों को मॉनसून से पहले पर्याप्त रूप से मजबूत, ऊंचा और रखरखाव नहीं किया गया था।
मुख्य नदियों के बाढ़ के मैदानों (फ्लडप्लेन) पर अवैध अतिक्रमण, खेती और बस्तियां बसाना भी नुकसान बढ़ाने का बड़ा कारण बना। केवल रूपनगर जिले की सतलुज नदी के ‘बेला बेल्ट’ पर 50,000 लोग रहते हैं और गुरदासपुर जिले में ब्यास और रावी नदियों के किनारे 450 गांव बसे हुए हैं। यह सरकार की इस समस्या पर उदासीनता को दर्शाता है।
पंजाब की नदियों और बांधों की जलधारण क्षमता गाद जमने (सिल्टेशन) से घट गई है और समय पर गाद निकासी (डीसिल्टिंग) न करने से स्थिति और बिगड़ गई। दक्षिण-पश्चिमी जिलों में नहरों और ड्रेनों के जाम होने से बाढ़ और बढ़ी, क्योंकि इन जिलों में नहरों का घना नेटवर्क मौजूद है।
मानव-निर्मित रुकावटें जैसे सड़कों का निर्माण, खराब योजना वाले पुल और प्राकृतिक जलनिकासी प्रणालियों जैसे मौसमी नालों पर कंक्रीट की दीवारें और अतिक्रमण अतिरिक्त पानी के प्राकृतिक प्रवाह को रोक देते हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि शहरी फ्लैश फ्लड की नई समस्या उत्पन्न हो गई। अंततः, जिलों के पास बाढ़ प्रबंधन योजनाएं तो थीं लेकिन उनका क्रियान्वयन अक्सर विलंबित और सीमित रहा।
भविष्य का बाढ़ प्रबंधन
पंजाब में जोखिम और बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते है
1. बाढ़-मैदान जोनिंग नियमों को सख्ती से लागू करना – बाढ़ की सीमा और बाढ़-मैदानों में खेती या बस्तियां बसाने से रोकना चाहिए, जिससे फसल, संपत्ति और जान-माल का नुकसान कम किया जा सके।
2. विभागीय समन्वय – बेहतर योजना, निगरानी, संवेदनशील क्षेत्रों का मानचित्रण और पूर्व चेतावनी तंत्र के लिए मौसम विभाग (आईएमडी), सिंचाई विभाग और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के बीच सहयोग आवश्यक है।
3. भौतिक उपाय – संवेदनशील स्थानों पर अस्थायी तटबंधों का निर्माण और उनका नियमित रखरखाव, बांधों व नदियों की गाद निकासी (डीसिल्टेशन) मॉनसून से पहले करना जरूरी है।
4. शहरी ढांचे का सुधार – पुराने सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम का उन्नयन तथा शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल निकासी नालों का पुनर्जीवन।
5. पर्याप्त वित्तीय आवंटन – जाम नहरों और सीवेज ड्रेनों की सफाई के लिए उचित धन आवंटित किया जाए, क्योंकि ये शहरी बाढ़ का मुख्य कारण हैं।
6. वित्तीय क्षतिपूर्ति – बाढ़ आने पर नुकसान की भरपाई के लिए समय पर आर्थिक मुआवज़ा देना आवश्यक है, ताकि प्रभावित समुदाय बीमारी और जलजनित रोगों के प्रकोप से भी उबर सकें।
7. समुदाय की भागीदारी – स्थानीय लोगों और गैर-सरकारी संगठनों को तैयारी और राहत कार्यों में शामिल करना चाहिए।
8. प्रशासनिक मजबूती – जिला आपदा प्रतिक्रिया केंद्रों को पर्याप्त वित्तीय और राजनीतिक सहयोग सुनिश्चित कर उनकी क्षमता बढ़ाई जाए, ताकि वे बाढ़ की घटनाओं में प्रभावी समन्वय और प्रतिक्रिया दे सकें।
(लेखक पंजाब विश्वविद्यालय के दूरस्थ और ऑनलाइन शिक्षा केंद्र में भूगोल के सहायक प्राध्यापक हैं)