
पंजाब की मौजूदा बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि यह मानव निर्मित भी है। इसका एक बड़ा कारण सतही जल प्रवाह में अवरोध है। यही वजह है कि पंजाब के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बाढ़ का पानी ठहर गया है।
जनवरी 2021 में प्रकाशित नीति आयोग की “रिपोर्ट ऑफ द कमिटी कंस्टीट्यूटेड फॉर फॉर्मुलेशन ऑफ स्ट्रेटजी फॉर फ्लड मैनेजमेंट वर्क्स इन एनटायर कंट्री एंड रिवर मैनेजमेंट एक्टीविटीज एंड वर्क्स रिलेटेड टू बॉर्डर एरिया (2021-26)” के अनुसार, सतही जल निकासी में अवरोध तब उत्पन्न होता है जब प्राकृतिक या कृत्रिम निकासी नालियां वर्षा जल के निकास को उचित समय के भीतर वहन करने में सक्षम नहीं होतीं। इसके कारण जलभराव और क्षति होती है।
नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह समस्या पंजाब के साथ आंध्र प्रदेश, बिहार, हरियाणा, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल में विशेष रूप से गंभीर है। रिपोर्ट के मुताबिक, निकासी सुधार और तटबंध निर्माण से लगभग 20.54 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से संरक्षित किया जा सका है।
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को किया तलबतलब
पंजाब में प्राकृतिक जल निकासी को बाधित करने के कई उदाहरण मौजूद हैं। राष्ट्रीय और राजकीय राजमार्गों को बनाते समय इसकी घोर उपेक्षा हुई है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली संसद की कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण समिति ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के अधिकारियों को इस उपेक्षा के लिए 2 सितंबर 2025 को तलब किया था और उनसे दो महीने में उन पुलों और सड़कों की रिपोर्ट मांगी, जिनकी वजह से प्राकृतिक जल प्रवाह बाधित हुआ है।
समिति ने एनएचएआई अधिकारियों से राजमार्गों की प्लानिंग रिपोर्ट और जल निकासी की व्यवस्था का ब्यौरा मांगा है। समिति ने पाया है कि ऊंचे हाइवे ने खेतों की प्राकृतिक जल निकासी बाधित की है जिससे किसानों के खेत जलमग्न हो गए हैं और नदियों विकरालता बढ़ी है।
गुरुदासपुर के लोकसभा सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी इस मुद्दे को लगातार उठाया है। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि सिक्खों के धार्मिक स्थल करतारपुर कॉरिडोर सहित गुरदासपुर में बाढ़ की गंभीरता के बढ़ने का एक बड़ा कारण यह है कि एनएचएआई ने हाइवे पर जल निकासी के लिए कल्वर्ट (पुलिया) नहीं बनाए।
उन्होंने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग की है। रंधावा ने कुछ दिन पहले एनएचएआई अधिकारियों को करतारपुर कॉरिडोर की साइट पर बुलाया था ताकि जलजमाव के कारणों का निरीक्षण और समाधान किया जा सके लेकिन कोई अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा।
रंधावा ने बताया कि कालाबाड़ी से लेकर चाकावाड़ी गांव तक के 3 किलोमीटर के हिस्से पर हाइवे पर एक भी कल्वर्ट नहीं है। उन्होंने बताया कि करतारपुर कॉरिडोर में 3 सितंबर को गवर्नर की मौजूदगी में लोगों ने कहा कि अगर यहां एक कल्वर्ट बना होता तो हम डूबने से बच जाते। उन्होंने आगे यह भी बताया कि पूरे पंजाब में सड़कें ऊंची हो गई हैं। ऐसे में कल्वर्ट की पहचान की जरूरत है।
लोग कर चुके हैं प्रदर्शन
संसदीय समिति और रंधावा ने जिस विषय को उठाया है, उसी मुद्दे पर 2023 में आई बाढ़ के वक्त जालंधर जिले के गिद्दरपिंडी क्षेत्र में ग्रामीणों ने फ्लड रोकू कमिटी के बैनर तले लोहियां-मक्खू हाइवे जाम कर दिया था। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि था कि हाइवे पर पुल के गेट बंद होने के कारण सतलुज नदी का पानी उनके गांव में घुस गया है।
इसी वर्ष पब्लिक वर्क्स विभाग (पीडब्ल्यूडी) की एक कमिटी ने ड्रोन सर्वेक्षण के जरिए पंजाब में राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग और मंडी बोर्ड रोड में ऐसे 346 स्थानों का पता लगाया था जहां जल निकासी का प्रवाह बाधित हुआ था।
अलामी पंजाबी संगत के संस्थापक गंगवीर सिंह राठौर एक अन्य अहम मुद्दे की तरह इशारा करते हैं कि पंजाब के अधिकांश राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर हैं। ऊंचे होने के कारण ये हाइवे एक वाटर वॉल की तरह काम करते हैं, जिससे पंजाब में पानी निकलने में दिक्कत होती है।
दिसंबर 2018 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च एंड एनेलिटिकल रिव्यूज में प्रकाशित पंजाब विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर सुच्चा सिंह के अध्ययन “पंजाब फ्लड्स: सम लेसन लर्न्ट फॉर फ्यूचर फ्लड मैनेजमेंट” में लिखते हैं कि अगस्त 2013 की अत्यधिक वर्षा के दौरान मुक्तसर जिले में नहर नालों के अवरुद्ध हो जाने से 236 गांव जलमग्न हो गए और 1.74 लाख एकड़ फसल क्षेत्र नष्ट हो गया।
गंगवीर पंजाब में पानी न निकलने के लिए धान की फसल को भी जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि धान के खेतों में एक कृत्रिम परत बन जाती है, जिससे खेतों के पानी सोखने की दर कम होती है। मॉनसून सीजन में पहले ही से पानी से भरे खेतों में जब बाढ़ का पानी पहुंचा तो स्थिति बदतर हो गई।
बांधों की भूमिका
पंजाब की बाढ़ को भयावह करने में बांधों से अचानक छोड़ा गया पानी भी जिम्मेदार है। स्फेयर इंडिया के प्रोग्राम कॉर्डिनेटर विष्णु पी मानते हैं कि इस साल की आपदा प्राकृतिक और मानवीय कारणों का मिश्रण है।
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि अगस्त में पंजाब में वर्षा सामान्य से 74 प्रतिशत अधिक रही, जबकि पठानकोट और गुरदासपुर जैसे जिलों में यह 181 प्रतिशत तक ज्यादा दर्ज की गई। हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर से आई तेज धारा के कारण ब्यास, रावी और सतलुज नदियां खतरे के निशान से ऊपर बहने लगीं।
विष्णु के अनुसार, ऐसी स्थिति में भाखड़ा और पोंग बांध से आपातकालीन जल छोड़ा गया, जो संरचनाओं की सुरक्षा के लिए जरूरी था, लेकिन अचानक आए पानी ने 1988 जैसी स्थिति पैदा कर दी और रूपनगर, अमृतसर तथा फिरोजपुर में जलभराव को और बढ़ा दिया।
रंधावा ने 31 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे खत में इस विषय को उठाया है। पत्र के अनुसार, बाढ़ के चरम पर रावी नदी ने अपर बारी दोआब नहर (यूबीडीसी) में लगभग 9,000 क्यूसेक पानी छोड़ा। इसकी डिजाइन क्षमता तो इतनी ही है, लेकिन व्यवहार में यह सूखे मौसम में रिसाव और खराब रखरखाव के कारण मुश्किल से 6,000 क्यूसेक ही वहन कर पाती है। सामान्यतः मॉनसून के दौरान रावी 1–2 लाख क्यूसेक पानी बहाती है, लेकिन जब माधोपुर बैराज टूट गया तो जलप्रवाह क्षणिक रूप से 4 लाख क्यूसेक से अधिक हो गया, जिससे हमारी कमजोर सुरक्षा व्यवस्थाएं ढह गईं।
उनका कहना है कि बैराज अब भी औपनिवेशिक दौर के हाथ से संचालित फाटकों पर निर्भर है, जो रावी की बाढ़ की भीषण सीधी टक्कर झेलने में फंस गए। इस महत्वपूर्ण अवसंरचना का अब पूरी तरह से पुनर्निर्माण किया जाना आवश्यक है, जिसमें विद्युत-यांत्रिक नियंत्रण वाले फाटक और आधुनिक डिजाइन मानकों का उपयोग हो, ताकि ऊंचे बाढ़ प्रवाह के दौरान भी इसका सुरक्षित संचालन सुनिश्चित हो सके।
गंगवीर भी मानते हैं कि बांधों के कुप्रबंधन ने स्थिति बिगाड़ी है। बांधों से ऐसे वक्त पर पानी छोड़ा गया, जब पहले से गांव और शहर डूबे थे। सतलुज नदी पर बने भाखड़ा बांध से भी अचानक छोड़े गए पानी ने निचले इलाकों को जलमग्न कर दिया।
मानवीय कारण
विष्णु डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि मानवीय कारकों ने आपदा को और गहरा किया है। बाढ़भूमि पर अतिक्रमण, अनियंत्रित शहरीकरण, जलनिकासी की उपेक्षा, अवैध रेत खनन, गाद से भरे नाले और नदियां तथा आर्द्रभूमियों का विनाश इन कारणों में शामिल हैं। गंगवीर के अनुसार, अधिकांश गांव में विकास के नाम पर तालाब खत्म कर दिए गए हैं जो अतिरिक्त पानी का संजोते थे।
पंजाब को बार-बार आने वाली बाढ़ से बचाने के लिए नीतिगत सुधार जरूरी हैं। इन सुधारों में बाढ़भूमियों पर अतिक्रमण रोकने के लिए कड़े कानून, नदियों और नालों की नियमित गाद निकासी, आर्द्रभूमियों का पुनरुद्धार, भागीदारी आधारित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नदी घाटी प्रबंधन, बांधों से पानी छोड़ने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और इसे मौसम विभाग के पूर्वानुमानों से बेहतर समन्वित किया जाना चाहिए। इसके अलावा अत्याधुनिक जलविज्ञान-जलवायु मॉडल आधारित पूर्व चेतावनी प्रणाली गांव-गांव तक पहुंचनी चाहिए।
विष्णु मानते हैं कि केवल एकीकृत योजना, जलवायु अनुकूलन और राज्य, केंद्र तथा स्थानीय एजेंसियों की जवाबदेही से ही पंजाब अपनी कृषि अर्थव्यवस्था और लोगों को बार-बार की बाढ़ त्रासदी से बचा सकता है।