जानमाल को नुकसान पहुंचानी वाली प्राकृतिक आपदाओं के वक्त राज्यों की ओर से अक्सर मांग उठती है कि इसे “राष्ट्रीय आपदा” घोषित किया जाए। बाढ़ के दौरान ऐसी मांग सबसे अधिक जोर पकड़ती है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।
इस बात की पुष्टि जल संसाधन पर बनी पुष्टि स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट से भी होती है। कमिटी ने जब जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा पुनरोद्धार विभाग से पूछा कि कब और किन परिस्थितियों में क्षेत्र में आई बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाता है, तब विभाग का जवाब था, “गृह मंत्रालय के मौजूदा राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ)/राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) योजना में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे बाढ़ समेत किसी आपदा को “राष्ट्रीय आपदा” घोषित किया जाए।” विभाग ने यह जरूर बताया कि जब भी “गंभीर प्रकृति” की आपदा आती है तो वित्तीय सहायता दी जाती है।
कमिटी को दिए लिखित जवाब में विभाग ने बताया, “सभी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराना व्यवहारिक और आर्थिक रूप से संभव नहीं है, इसलिए बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए तर्कसंगत आर्थिक सुरक्षा दी जाती है।”
कमिटी ने पाया कि मौजूदा सांवैधानिक और प्रशासनिक वर्गीकरण को देखते हुए ऐसा लगता है कि बाढ़ प्रबंधन की जिम्मेदारी सब पर है और इसीलिए कोई इस पर ध्यान नहीं देता। कमिटी का मानना है कि इस प्रशासनिक सोच को बदलने की जरूरत है और जल शक्ति मंत्रालय को बाढ़ नियंत्रण की इस अति महत्वपूर्ण जिम्मेदारी को निभाना चाहिए।
कमिटी की सिफारिश है कि हर साल बाढ़ से होने वाली जानमाल की क्षति को देखते हुए केंद्र सरकार को बाढ़ नियंत्रण और समन्वय की जिम्मेदारी लेनी होगी। कमिटी ने इसके लिए जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में स्थायी नेशनल इंटीग्रेटेड फ्लड मैनेजमेंट ग्रुप (एनआईएफएमजी) गठित करने का सुझाव दिया है। राज्य सरकारों के संबंधित मंत्री इस समूह का हिस्सा हो सकते हैं और समूह के सदस्य साल में एक बार बैठक कर सकते हैं।
कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में माना कि वैश्विक तापमान से होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की प्रवृत्ति में बदलावा आया है। बारिश के दिन कम हुए हैं लेकिन अत्यधिक बारिश दर्ज की जा रही है।