ऑल वेदर रोड: ऋषिकेश से हेलंग तक दोगुने हो गये भूस्खलन क्षेत्र

ऑल वेदर रोड को लेकर पर्यावरणविदों और भूवैज्ञानिकों की आशंका को पहली ही बरसात में सच साबित हो रही है। कई पुराने और लगभग निष्क्रिय हो चुके भूस्खलन क्षेत्र भी फिर से सक्रिय हो गये हैं
श्रीनगर के कुछ दूर डुंगरीपंत के पास फरासू में उभरा नया भूस्खलन जोन। फोटो: मनमोहन सिंधवाल
श्रीनगर के कुछ दूर डुंगरीपंत के पास फरासू में उभरा नया भूस्खलन जोन। फोटो: मनमोहन सिंधवाल
Published on

ऑल वेदर रोड को लेकर पर्यावरणविदों और भूवैज्ञानिकों की आशंका को पहली ही बरसात में सच साबित हो रही है। उत्तराखंड में अब तक मानसून सामान्य से लगभग आधा ही बरसा है, लेकिन ऑल वेदर रोड वाले मार्गों पर बड़ी संख्या में नये भूस्खलन क्षेत्र बन गये हैं। कई पुराने और लगभग निष्क्रिय हो चुके भूस्खलन क्षेत्र भी फिर से सक्रिय हो गये हैं। भूवैज्ञानिकों को आशंका है कि आने वाले समय में ऐसे क्षेत्रों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी होगी।


ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक हाईवे संख्या-58 और रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ तक हाईवे संख्या-109 की बात करें तो इस मार्ग पर ऑल वेदर रोड का कार्य शुरू होने से पहले ऋषिकेश से हेलंग तक 8 बड़े भूस्खलन जोन सक्रिय थे। इनमें पातालगंगा, नन्दप्रयाग, पाखी, पुरसाड़ी, मैठाणा, कमेड़ा, सिरोबगड़ और बगवान के पास वाले क्षेत्र शामिल हैं। बारिश का मौसम शुरू होते ही इनमें से ज्यादातर जोन में भूस्खलन शुरू हो जाता था, जो पूरे बरसात स्थानीय लोगों और तीर्थयात्रियों को परेशान करता था। इनमें सिरोबगड़ सबसे बड़ा भूस्खलन क्षेत्र हैं, जहां कई बार तो बिना बारिश के भी भूस्खलन होता है। यहां विष्णुप्रयाग से बद्रीनाथ तक के मार्ग को शामिल नहीं किया जा रहा है, क्योंकि यह पूरा क्षेत्र भूस्खलन जोन है। लामबगड़ और पांडुकेश्वर वाले इस क्षेत्र में लगातार भूस्खलन होता है। 

ऑल वेदर रोड का कार्य शुरू हो जाने के बाद का जायजा लें तो अब तब इस मार्ग पर कम से कम चार नये बड़े स्लाइडिंग जोन उभर चुके हैं, जबकि कुछ पुराने, किन्तु कुछ सालों से निष्क्रिय हो चुके भूस्खलन जोन भी फिर से सक्रिय हो चुके हैं। इनमें साकनीधार के आसपास उभरे दो नये भूस्खलन जोन और डुंगरीपंत के पास फरासू में उभरा भूस्खलन जोन शामिल हैं। इनमें फरासू के पास वाले नये स्लाइडिंग जोन को सबसे बड़ा माना जा रहा है। 

पर्यावरणविद् रमेश पहाड़ी कहते हैं कि हम लगातार ऑल वेदर रोड के खतरों के प्रति सरकार और संबंधित एजेंसियों को आगाह करते रहे हैं, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। अब तक ऐसी बारिश नहीं हुई है, जिसके लिए उत्तराखंड जाना जाता है। आने वाले दिनों में बारिश ज्यादा हुई तो स्थितियां और खराब होंगी। इस मार्ग पर कई और बड़े और स्थाई भूस्खलन जोन उभरने की पूरी आशंका है, जो साल दर साल परेशानी का सबब बनते रहेंगे।

हाल ही इस पूरे क्षेत्र का जायजा लेकर लौटे उत्तराखंड वानिकी एवं औद्यानिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसपी सती कहते हैं कि आने वाले दिनों में सबसे खराब स्थिति पाखी में होने वाली है। यह एक पुराना भूस्खलन जोन है, जो पिछले कुछ वर्षों से निष्क्रिय था। ऑल वेदर रोड के लिए हुई खुदाई के बाद न सिर्फ पुराना भूस्खलन क्षेत्र सक्रिय हो रहा है, बल्कि पहाड़ी का एक बड़ा हिस्सा खिसक रहा है।

नंदप्रयाग और पातालगंगा के पुराने भूस्खलन जोन भी फिर से सक्रिय हो गये हैं। वे कहते हैं कि न सिर्फ बारिश, बल्कि संभावित भूकम्प की दृष्टि से भी यह बेहद खतरनाक है। वैज्ञानिक लगातार घोषणा कर रहे हैं कि आने वाले समय में हिमालयी क्षेत्र में रिक्टर स्केल पर 8 से अधिक तीव्रता वाला भूकम्प आ सकता है और इसका केन्द्र उत्तराखंड हो सकता है, हालांकि ज्ञात इतिहास से इस क्षेत्र में इतना बड़ा भूकम्प नहीं आया है।

सती के अनुसार इस क्षेत्र की चट्टानें भंगुर प्रवृत्ति की हैं। ये चट्टानें बाहर से बेशक ठोस नजर आती हों, लेकिन अंदर से खोखली हैं। ऑल वेदर रोड के लिए जिस पैमाने पर इन्हें काटा जा रहा है, वह बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

बद्रीनाथ मार्ग के साथ ही केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मार्गों पर भी कमोबेश यही स्थिति बनी हुई है। बार-बार पहाड़ों का मलबा सड़क पर आ जाने से यातायात बाधित हो रहा है। यह स्थिति तब है, जबकि इन क्षेत्रों में अब तक मानसून सामान्य से करीब आधा ही बरसा है।

मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार बुधवार, 10 जुलाई 2019 तक राज्य में सामान्य से 44 प्रतिशत कम बारिश हुई है। इसके बाद के 4 दिनों में भी कहीं बहुत अच्छी बारिश दर्ज नहीं की गई है। बद्रीनाथ हाईवे का एक बड़ा हिस्सा चमोली जिले से गुजरता है। इसी जिले में अब तक सबसे ज्यादा भूस्खलन जोन उभरे हैं, जबकि इस जिले में अब तक सामान्य से 57 प्रतिशत कम बारिश हुई है। देहरादून स्थित मौसम केन्द्र के आंकड़ों के अनुसार चमोली जिले में 10 जुलाई तक सामान्य रूप से 165.5 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार मात्र 71.1 मिमी ही दर्ज की गई है। ऑल वेदर रोड वाले टिहरी जिले में अब तक सामान्य से 32 प्रतिशत बारिश कम हुई है, जबकि रुद्रप्रयाग में सामान्य से 49 प्रतिशत, उत्तरकाशी में 55 प्रतिशत और पौड़ी में 65 प्रतिशत कम बारिश दर्ज की गई है।

रमेश पहाड़ी कहते हैं कि आने वाले दिनों में यदि बारिश का स्तर सामान्य तक पहुंचता है या फिर सामान्य से कुछ ज्यादा बारिश पहाड़ों में होती है तो ऑल वेदर रोड का शायद ही कोई हिस्सा भूस्खलन से बच पाये। वे कहते हैं कि यह स्थिति सिर्फ इस साल नहीं, बल्कि आने वाले कई सालों तक बनी रहेगी, क्योंकि पहाड़ी ढाल जब तक अपनी सामान्य स्थिति में नहीं आ जाते, तब तक इनमें लगातार भूस्खलन होता रहता है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in