
इस सदी के पहले दो दशकों के दौरान तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में बाढ़, तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है। इसका प्रभाव खासकर गरीब देशों में ज्यादा देखा जा रहा है।
साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक शोध ने यह संकेत दिया गया है कि उष्णकटिबंधीय तूफान, जो अक्सर हरिकेन या टायफून की ताकत से कम होते हैं, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।
इस शोध में पाया गया है कि ऐसे तूफानों के बाद पहले साल के बच्चों की मृत्यु दर में तेजी से वृद्धि हो रही है।
शोध के प्रमुख लेखक एवं यूएससी डॉर्नसाइफ कॉलेज ऑफ लेटर्स, आर्ट्स एंड साइंसेज के अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर (शोध) और कॉलेज के सेंटर फॉर इकनॉमिक एंड सोशल रिसर्च में वरिष्ठ अर्थशास्त्री जेचरी वैगनर का कहना है कि जो बच्चे इन तूफानों से पहले या उनके पहले साल के जीवन में प्रभावित होते हैं, उनमें मृत्यु दर सामान्य दर से 11 प्रतिशत अधिक पाई गई। यह 1,000 जीवित जन्मों में 4.4 अधिक मौतों के बराबर था। सबसे चिंताजनक यह था कि यह वृद्धि सिर्फ उच्च-तीव्रता वाले तूफानों तक सीमित नहीं थी, बल्कि कम तीव्रता वाले तूफान भी बच्चों के लिए उतने ही खतरनाक थे, जो और भी ज्यादा आम होते हैं।
अध्ययन टीम में आरएएनडी कॉर्पोरेशन, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और बेल्जियम की यूसीलुवेन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता शामिल थे।
हालांकि, यह भी देखा गया कि मृत्युदर में वृद्धि का कारण केवल गर्भवती महिलाओं को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं या उनकी पोषण स्थिति में गिरावट नहीं था, जैसा कि आमतौर पर प्राकृतिक आपदाओं के बाद माना जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस वृद्धि के पीछे कुछ अन्य कारण हो सकते हैं, जिनकी अभी पूरी तरह से पहचान नहीं हो पाई है।
यह शोध सात विकासशील देशों भारत, बांग्लादेश, कंबोडिया, फिलीपींस, डोमिनिकन गणराज्य हैती और मेडागास्कर में 1.7 मिलियन बच्चों के रिकॉर्ड का विश्लेषण करके किया गया था।
इस शोध में जहां कुछ देशों में तूफान के बाद मृत्यु दर में बहुत बड़ा इजाफा देखा गया, वहीं अन्य देशों में इसका प्रभाव नगण्य रहा। बांग्लादेश, हैती और डोमिनिकन गणराज्य में तूफान के बाद 1,000 जन्मों में 10 से ज्यादा मौतें देखी गईं, जबकि भारत, कंबोडिया, फिलीपींस और मेडागास्कर में ऐसा कुछ खास असर नहीं दिखा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अंतर इस बात की तस्दीक करता है कि विभिन्न देशों के आपदा प्रबंधन उपाय, भौगोलिक स्थिति और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में काफी अंतर है। कुछ देशों में बेहतर आपदा बचाव प्रणाली और मजबूत आवास संरचनाएं थीं, जबकि अन्य देशों में अधिक संवेदनशीलता देखने को मिली, जैसे कि बाढ़ से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में कमजोर ढांचे और पोषण की समस्याएं।
इस शोध से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जो प्राकृतिक आपदाएं बढ़ रही हैं, उनका बच्चों पर अत्यधिक असर पड़ रहा है, खासकर उन देशों में जहां सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कमजोर है। ऐसे में भविष्य में इस बढ़ती समस्या से निपटने के लिए इन देशों में अधिक सशक्त आपदा प्रबंधन और बच्चों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
वर्तमान में इन विभिन्न देशों के बीच अंतर का कारण समझना, और यह जानना कि कौन से विशेष उपाय बच्चों की सुरक्षा के लिए काम कर सकते हैं, एक बड़ी चुनौती बन गई है। आने वाले समय में इस दिशा में और शोध होने की आवश्यकता है, ताकि बच्चों को इस बढ़ती जलवायु संबंधी आपदा से बचाया जा सके।