देश में एक ओर बाढ़ तो दूसरी ओर सूखे जैसे हालात हैं। कई राज्यों में भारी बारिश से बाढ़ आने के बावजूद देश के लगभग 38 प्रतिशत जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। इनमें से 16 फीसदी जिलों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। यही वजह है कि इस साल अब तक पिछले साल के मुकाबले 20 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुआई नहीं हो पाई है।
मौसम विभाग के क्लाइमेट रिसर्च एंड सर्विसेज, पुणे की सूखा शोध ईकाई ने 14 जुलाई को जारी मानकीकृत वर्षा सूचकांक (एसपीआई) में बताया गया है कि देश के तीन फीसदी इलाके में एक्सट्रीम ड्राई (चरम सूखा), पांच फीसदी इलाके में सीवियर ड्राई (गंभीर सूखा), आठ फीसदी इलाके में मॉडरेट ड्राई (मध्यम सूखा) और 32 फीसदी इलाके में माइल्ड ड्राई (हल्का सूखा) है।
साथ ही, शुष्कता विसंगति सूचकांक के आधार पर जारी साप्ताहिक सूखा आउटलुक के मुताबिक देश के चार प्रतिशत यानी 5 प्रतिशत जिलों में सीवियर एरिड (गंभीर शुष्कता) और सात फीसदी इलाके (8 फीसदी जिलों) में मॉडरेट एरिड (मध्यम शुष्कता) और 16 फीसदी इलाके में माइल्ड एरिड (हल्का शुष्कता) है। यह सूचकांक 6 से 12 जुलाई 2023 के हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मॉनसून सीजन के एक जून से 14 जुलाई तक के आंकड़ों के मुताबिक अभी भी 12 राज्यों में सामान्य से कम बारिश हुई है, जबकि 9 राज्यों में सामान्य से बहुत ज्यादा और चार जिलों में सामान्य से ज्यादा बारिश की श्रेणी में रखा गया है।
मौसम विभाग के मुताबिक जिन इलाकों में सामान्य से 60 फीसदी से अधिक बारिश होती है, उसे बहुत ज्यादा यानी लार्ज एक्सेस और सामान्य से 20 से 59 प्रतिशत अधिक बारिश होने पर ज्यादा यानी एक्सेस की श्रेणी में रखा जाता है। इसी तरह सामान्य से 60 फीसदी कम बारिश होने पर बहुत कम यानी लार्ज डेफिसिएट और 20 से 59 प्रतिशत कम बारिश होने का डेफिसिएट की श्रेणी में रखा जाता है। सामान्य से 19 फीसदी कम या ज्यादा होने पर मौसम विभाग उसे सामान्य बारिश ही मानता है।
मौसम विभाग के मुताबिक देश के 26 जिले ऐसे हैं, जहां सामान्य से 60 फीसदी से भी कम बारिश हुई है। इनमें झारखंड के छह जिले, ओडिशा का एक, पश्चिम बंगाल के दो, बिहार के तीन, उत्तर प्रदेश के पांच, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मणिपुर के दो-दो, तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश व मेघालय का एक-एक जिला शामिल है। जबकि 245 जिलों में सामान्य से 20 से 59 फीसदी बारिश कम हुई है।
ये आंकड़े बताते हैं कि एक बार फिर से देश में बारिश की भारी अनियमितता देखने को मिल रही है। इसका असर सीधे-सीधे खरीफ फसलों की बुआई पर पड़ा है। 14 जुलाई 2023 तक के केंद्रीय कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि देश में पिछले साल जुलाई के दूसरे सप्ताह तक के 586.44 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी, लेकिन इस साल 566.44 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में ही बुआई हो पाई है।
जो पिछले साल से 3.43 प्रतिशत कम है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात यह है कि पिछले साल भी कम बारिश के चलते जुलाई तक की बुआई कम हुई थी, इसलिए यदि 2021 से तुलना की जाए तो 2023 में बुआई का रकबा लगभग 25 लाख हेक्टेयर में घटा है।
प्रभावित राज्य वही हैं, जिनका हम ऊपर जिक्र कर चुके हैं। यानी कि जिन राज्यों में बारिश कम हुई है, वहां बुआई भी प्रभावित हुई है। पिछले साल से ही तुलना करें तो जुलाई का लगभग आधा महीना बीतने के बावजूद महाराष्ट्र में 30.35 लाख हेक्टेयर में बुआई नहीं हो पाई है। इसी तरह कर्नाटक में 17.19 लाख हेक्टेयर, छत्तीसगढ़ में 6.73 लाख हेक्टेयर, ओडिशा में 4.39 लाख, पंजाब में 4.60 लाख, तेलंगाना में 2.74 लाख, पश्चिम बंगाल में 1.38 लाख हेक्टेयर, अरुणाचल में 2.66 लाख, असम में 2.08 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कम बुआई है, लेकिन राजस्थान में इस साल 31.62 लाख हेक्टेयर में बुआई अधिक हुई है। अधिक बुआई करने वाले राज्यों में उत्तर प्रदेश व गुजरात भी शामिल हैं।
धान, दलहन की बुआई कम
खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान है। पिछले सप्ताह हुई बारिश के कारण धान की रोपाई के आंकड़े में थोड़ा सुधार तो आया है, लेकिन पिछले साल के मुकाबले भी 6.13 प्रतिशत कम है। हालांकि 2021 के मुकाबले अभी तक 20 प्रतिशत कम क्षेत्र में धान लगाया गया है। साल 2021 के जुलाई के दूसरे सप्ताह तक देश में 155.52 लाख हेक्टेयर में धान लगाया गया था, जबकि 2022 में 131.23 लाख हेक्टेयर में लगाया गया था, लेकिन चालू सीजन में 123.18 लाख हेक्टेयर में धान लग पाया है।
खरीफ सीजन में लगभग 399.45 लाख हेक्टेयर में धान लगाया जाता है और माना जाता है कि जून से 15 जुलाई तक के दौरान लगाई गई धान की पैदावार अच्छी होती है। हालांकि जिस तरह जुलाई के इस पखवाड़े में भारी बारिश हुई है, उसकी वजह से जो धान लगाई भी जा चुकी है, उसके भी सुरक्षित न रहने की आशंका जताई जा रही है।
दलहन तिलहन में भी गिरावट
खरीफ सीजन की दलहन की बुआई में भी इस साल 13.28 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। पिछले साल 77.17 लाख हेक्टेयर में दालों की बुआई हुई थी, लेकिन इस साल अब तक 66.93 लाख हेक्टेयर में ही बुआई हुई है। सबसे अधिक गिरावट अरहर के रकबे में (38.25 प्रतिशत) कमी आई है। हालांकि मूंग का रकबा 7.56 फीसदी बढ़ा है। तिलहन के रकबे में भी पिछले साल के मुकाबले 10.37 प्रतिशत कमी दर्ज की गई है। सबसे अधिक कमी सूरजमुखी और सोयाबीन में आई है।
ज्वार-बाजरा बढ़ा
राजस्थान में हुई भारी बारिश के कारण यहां बाजरा-ज्वार के रकबे में भारी उछाल आया है। केवल यही फसल है, जो पिछले सालों के मुकाबले काफी ज्यादा है। बाजरा पिछले साल के मुकाबले 45.76 प्रतिशत और ज्वार 26.65 प्रतिशत अधिक बोया गया है।