अरावली के दक्षिण पूर्व में पूरी तरह सूख चुकी बड़खल झील को पुनर्जीवित करने का काम शुरू हो चुका है। यहां शहर के सीवर के पानी को ट्रीट करके डाला जाएगा। इस तरह के कई प्रयोग सफल भी रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस काम में सतर्कता बरतने की जरूरत होती है, वर्ना यह प्रयास विफल भी हो सकता है।
अरावली श्रृंखला में कई जलश्रोत में से एक थी बड़खल झील, जिसे 1960 के दशक में बनाया गया था, लेकिन साल 2006 के आसपास यहां जलस्तर कम होने लगा और कुछ साल बाद यह झील पूरी तरह सूख गई।
यूं तो झील के पुनर्जीवन को लेकर कई योजनाएं बनीं, लेकिन जब एनडीए सरकार में स्मार्ट सिटी मिशन में इस परियोजना को मंजूरी दी गई, तब थोड़ी बहुत उम्मीद बंधी। बड़खल, हरियाणा के जिले फरीदाबाद के अंतर्गत है। फरीदाबाद नगर निगम ने स्मार्ट सिटी के चयन के लिए जो प्रस्ताव भेजा, उसमें बड़खल के पुनर्जीवन का भी प्रस्ताव था। स्मार्ट सिटी के रूप में मंजूरी मिलने के बाद एक स्टडी कराई गई। इस स्टडी में सुझाव आया कि झील में फिर से पानी भरने के लिए कुछ दूरी पर एक सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) बनाया जाए और सीवर का पानी ट्रीट करके झील में डाला जाए। इससे तीन मकसद पूरे होंगे, शहर के सीवर के पानी का कुछ हद तक निपटान हो जाएगा और दूसरा झील का सौंदर्यीकरण भी होगा। साथ ही, आसपास के भूजल स्तर में सुधार होगा। इस स्टडी रिपोर्ट की जांच आईआईटी रूड़की से कराई गई। आईआईटी, रूड़की की टीम ने झील का दौरा भी किया और प्रोजेक्ट को सैद्धांतिक मंजूरी दे दी।
मंजूरी मिलने के बाद फरीदाबाद स्मार्ट सिटी लिमिटेड ने एक टेंडर तैयार किया। इस टेंडर डॉक्यूमेंट के मुताबिक, एसटीपी का निर्माण सीक्वेंशल बैच रिएक्टर (एसबीआर) टेक्नॉलोजी पर आधारित होगा। यह सेक्टर-21 में बनाए जाने वाले एसटीपी में पानी को ट्रीट करके सीधा बड़खल झील तक पहुंचाया जाएगा। इस एसटीपी में प्रतिदिन करीब 10 एमएलडी पानी 5 बीओडी मात्रा तक ट्रीट होगा। इस पानी को हर रोज पाइप के जरिये झील तक पहुंचाया जाएगा।
झील को 300 दिन में छह मीटर ऊंचाई तक पानी से भर दिया जाएगा। इसके बाद एसटीपी से हर रोज 3 एमएलडी पानी ही झील के अंदर डाला जाएगा। बाकी के बचे हुए 7 एमएलडी पानी को शहर के अन्य कामों में इस्तेमाल कर लिया जाएगा। इस प्रोजेक्ट की लागत लगभग 30 करोड़ 71 लाख रुपए है।
फरीदाबाद स्मार्ट सिटी लिमिटेड के तकनीकी सलाहकार एनके कटारा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि टेंडर दिल्ली की एक कंपनी जीएसजे इन्वो लिमिटेड को दिया गया है। जो जल्द ही काम शुरू कर देगी और तय समयसीमा का भीतर एसटीपी का निर्माण पूरा हो जाएगा।
उधर, सवाल यह उठ रहा है कि क्या सीवर के ट्रीटेड (उपचारित) पानी से झील को भरना सही है? सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के सीनियर डायरेक्टर एवं अनिल अग्रवाल इन्वायरमेंट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के एकेडमिक डायरेक्टर (स्कूल ऑफ वाटर एंड वेस्ट) सुरेश कुमार रोहिल्ला का कहना है कि बेशक यह आदर्श योजना नहीं है, लेकिन शहरी जल स्त्रोतों के पुनर्जीवन के लिए यह योजना पूरी तरह से व्यावहारिक है।
रोहिल्ला कहते हैं कि कई जगह इस तरह के प्रयोग सफल रहे हैं। जैसे कि राजधानी दिल्ली की हौजखास झील और वसंतकुंज की नीला हौज को सीवर के पानी से रिवाइव किया गया है। नीला हौज को रिवाइव करने में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सीआर बाबू और इंटैक के प्रिंसिपल डायरेक्टर मनु भटनागर की भूमिका अहम रही।
जिस तकनीक (एसबीआर) का इस्तेमाल बड़खल के रिवाइवल के लिए होगा, उसके बारे में दिल्ली में वाटर और सीवर के मुद्दे पर काम कर रही संस्था सिटीजन्स फ्रंट फार वाटर डेमोक्रेसी के एसए नकवी कहते हैं कि एसबीआर एक बेहतर तकनीक है, जिससे पानी की गुणवत्ता 5 बीओडी तक पहुंचाई जा सकती है। इस तकनीक से सीवर के पानी को पीने लायक तक बनाया जा सकता है। लेकिन सवाल केवल तकनीक का नहीं है, इस तरह के सरकारी प्रयासों के साथ दिक्कत यह है कि अधिकारियों का सारा ध्यान ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण तक रहता है, क्योंकि प्लांट बनाने पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं, इसके बाद ये अधिकारी यह ध्यान नहीं देते कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट सही से काम कर भी रहे हैं या नहीं।
नकवी उदाहरण देते हुए बताते हैं कि यमुना एक्शन प्लान के नाम पर दिल्ली में दर्जनों सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए, लेकिन यमुना साफ होने की बजाय और गंदी होती चली गई।
रोहिल्ला भी कहते हैं कि नदियों और नालों पर लगे सीवर ट्रीटमेंट प्लांट के काम न करने के कारण हैं, जैसे कि ऑपरेशन एंड मेंटनेंस में कमी, कर्मचारियों की कमी, देखरेख का अभाव, तकनीकी खामियां। ऐसे में, बड़खल के पुनर्जीवन को लेकर बनी परियोजना पर इन खामियों का ध्यान रखना होगा।