एक अध्ययन में विभिन्न भारतीय नदी घाटियों में तेज वर्षा के पैटर्न में वृद्धि होने के कारण भविष्य में शहरों में बाढ़ आने के लिए नए संभावित हॉटस्पॉट (संवेदनशील) क्षेत्रों का पता चला है। अध्ययन में कहा गया है कि पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर नदी घाटियों में बारिश की आवृत्ति तीव्र होने की संभावना है, जबकि ऊपरी गंगा और सिंधु घाटियों में भारी बारिश की तीव्रता में वृद्धि होने का पूर्वानुमान है।
प्रेस सूचना ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्ति में इस अध्ययन की जानकारी देते हुए बताया गया है कि पिछले कुछ दशकों में, ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारतीय नदी घाटियों (आईआरबी) पर हाइड्रोक्लाइमेट (जल जलवायु) चरम घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति के कारण बाढ़ से संबंधित आपदाओं, मृत्यु दर और आर्थिक नुकसान में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इससे सकल घरेलू उत्पाद भी प्रभावित हो रहा है।
इसलिए भविष्य में हाइड्रोक्लाइमेट चरम सीमाओं की जांच करना और भारतीय नदी घाटियों (आईआरबी) के ऊपर उन हॉटस्पॉट क्षेत्रों की पहचान करना बहुत जरूरी हो गया है, जो हाइड्रोक्लाइमेट चरम सीमाओं के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। इससे तत्काल नीतिगत उपायों, शमन और अनुकूलन रणनीतियों को प्राथमिकता दी जा सकती है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग-महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च (डीएसटी-एमसीईसीसीआर) के समन्वयक प्रोफेसर आर.के. मल्ल और पीएच.डी. विद्वान पवन कुमार चौबे की टीम द्वारा किए गए एक शोध में भारत की विभिन्न नदी घाटियों में आगामी हाइड्रोक्लाइमेट चरमसीमाओं की जांच करने के लिए युग्मित मॉडल इंटरकंपेरिजन प्रोजेक्ट-6 (सीएमआईपी-6) के प्रयोगों से हाई-रिज़ॉल्यूशन सिम्युलेटेड वर्षा का उपयोग किया गया।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के तहत समर्थित इस कार्य में विशेष रूप से पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर नदी घाटियों में भारी वर्षा और ऊपरी गंगा और सिंधु घाटियों में भारी वर्षा की तीव्रता (14.3%) में वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है इसके साथ ही गंभीर सूखे की तीव्रता होने का भी पता चला है।
औसत वर्षा में गिरावट के कारण निचली गंगा घाटी में कृषि सूखा होने के बारे में प्रकाश डाला गया है। यह अध्ययन प्रसिद्ध जर्नल ‘अर्थ्स फ्यूचर, अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन (एजीयू)’ में प्रकाशित हुआ था। इसमें नीति निर्माताओं से जल की अधिकता या कमी से निपटने के लिए अपनी रणनीति तैयार करने का भी आग्रह किया गया है।
इस शोध में विस्तार से यह भी बताया गया है कि भारतीय नदी घाटियों के पश्चिमी भाग में लगभग चार प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक भारी वर्षा की वृद्धि होने का अनुमान है। भविष्य में, कुछ विशेष कार्बन उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत, लूनी, सिंधु और ऊपरी गंगा नदी घाटियों सहित पश्चिम की ओर बहने वाली कच्छ और सौराष्ट्र की नदियों की घाटी में प्रति दिन लगभग 30 प्रतिशत तक अधिक वर्षा होने की संभावना है।
इन परिणामों से यह भी पता चला कि हाइड्रोक्लाइमेट चरम घटनाओं की आवृत्ति में होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तन का कृषि, स्वास्थ्य और समाज की अन्य सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। भविष्य में शहरी बाढ़ के लिए पहचाने जाने वाले भारी आबादी वाले शहरों के प्रमुख हॉटस्पॉट नीति निर्माताओं को उचित घाटीवार जलवायु अनुकूलन और शमन रणनीतियों के अनुसार नीति तैयार करने में मदद कर सकते हैं। इसके अलावा घाटियों में चरम सीमाओं के कारण होने वाले जोखिम को कम करने के लिए पानी और आपातकालीन सेवाओं की नीतियों सहित उचित बेसिन-वार जलवायु अनुकूलन और शमन रणनीतियों को डिजाइन करने में मदद कर सकते हैं।
प्रकाशन लिंक: https://doi.org/10.1029/2023EF003556 (पृथ्वी का भविष्य, एजीयू)
चित्र 1 1995-2014 के सापेक्ष निकट भविष्य (2021-2040) के लिए निम्न से उच्च उत्सर्जन परिदृश्यों में वार्षिक औसत वर्षा परिवर्तन (प्रतिशत) के बढ़ते और घटते रूझान।
चित्र: 2 अत्यधिक वर्षा की घटनाओं (5-दिवसीय वर्षा) की प्रेक्षित और अनुमानित तीव्रता और चरम घटनाओं (शुष्क दिन) की आवृत्ति में स्थानिक परिवर्तन।