हाल ही में रटगर्स यूनिवर्सिटी के द्वारा किए शोध से इस बात की पुष्टि हो गई है कि आज समुद्र के जल स्तर में जो वृद्धि हो रही है, वो पृथ्वी की कक्षा में होने वाले परिवर्तन की वजह से नहीं है| बल्कि इसके लिए इंसान जिम्मेवार है| पर साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि लाखों साल पहले जलवायु में जो बदलाव आया था वो पृथ्वी की कक्षा में होने वाले परिवर्तन का नतीजा था| आज के वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन हम इंसानों द्वारा उत्सर्जित की जारी ग्रीनहाउस गैसों और उसके द्वारा हो रही ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहा है। रटगर्स विश्वविद्यालय द्वारा किया गया यह अध्ययन जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुआ है|
आज से करीब 6.6 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर बहुत नाममात्र की ही बर्फ मौजूद थी| साथ ही उस समय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर भी आज की तुलना में काफी कम था| जोकि दिखाता है कि उस समय बर्फ न होने के पीछे कार्बन डाइऑक्साइड के साथ-साथ पृथ्वी की कक्षा में होने वाले परिवर्तन का असर भी था| इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता और रटगर्स विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ एंड प्लैनेटरी साइंसेज में प्रोफेसर केनेथ जी मिलर ने बताया कि पृथ्वी पर हिमनदीकरण का इतिहास हमारी सोच से ज्यादा जटिल है| उस समय पृथ्वी की कक्षा में आने वाला मामूली सा बदलाव भी बर्फ की मात्रा और समुद्र के स्तर पर मुख्य रूप से प्रभाव डालता था| हालांकि उनका मानना है कि प्राचीन समय में बर्फ के न होने के पीछे कार्बन डाइऑक्साइड का भी योगदान है|
गौरतलब है कि पृथ्वी की कक्षा में परिवर्तन आने से जो प्रभाव पड़ते हैं उन्हें मिलानकोविच चक्र के रूप में जाना जाता है, जिसका नाम सर्बियाई वैज्ञानिक मिलुटिन मिलानकोविच के नाम पर रखा गया है। पर अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार पृथ्वी की जलवायु को यह लम्बे समय में जोकि हजारो लाखों सालों की अवधि में ही प्रभावित कर सकते हैं| पर वर्तमान में जिस तरह से साल-दर-साल जलस्तर बढ़ रहा है| इसमें इनका योगदान बहुत ही सीमित है|
इस शोध में वैज्ञानिकों ने डायनासोर युग के ख़त्म होने के बाद से हिमनदों के इतिहास को फिर से पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है| जोकि 6.6 करोड़ साल पहले हुआ था| जिसके लिए शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर समुद्र के स्तर में हो रही वृद्धि का तुलनात्मक अध्ययन किया है| शोध के अनुसार 1.7 से 1.3 करोड़ साल पहले धरती की बर्फ लगभग समाप्त हो गयी थी| उस समय भी मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर आज की तुलना में कम ही था|
गौरतलब है कि कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो जलवायु में आ रहे बदलावों के लिए जिम्मेदार है| हालांकि, हिमयुग की शुरुवात 4.8 से 3.4 करोड़ वर्ष पहले हुई थी| माना जाता था उस समय पृथ्वी पर बर्फ मौजूद नहीं थी|
मिलर ने बताया कि हमारे शोध से पता चला है कि मानव द्वारा जलवायु को प्रभावित किये जाने से पहले बर्फ की मात्रा और समुद्र का स्तर मुख्य रूप से पृथ्वी की कक्षा में आने वाले मामूली से बदलाव और सूरज से दूरी पर निर्भर करते थे| हालांकि कार्बन डाइऑक्साइड ने भी हिमयुग को समाप्त करने पर प्रभाव डाला था|
लगभग 20,000 साल पहले पिछले हिमयुग के दौरान समुद्र का जल स्तर सबसे ज्यादा घट गया था| उस समय जल स्तर में लगभग 400 फीट की गिरावट आ गयी थी। इसके बाद से समुद्र तल में प्रति दशक एक फुट की दर से वृद्धि हो रही थी| लेकिन उसमें आ रही यह तीव्र वृद्धि करीब 10,000 से 2,000 साल पहले धीमी हो गई थी। उसके बाद से 20वीं सदी की शुरुवात (1900) तक यह वृद्धि थम सी गयी थी|
पर जब से मानव गतिविधियों ने जलवायु को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, इसमें फिर से वृद्धि होना शुरू हो गई है| हाल के दशकों में समुद्र का जल स्तर तेजी से बढ़ रहा है| यही वजह है कि सदी के अंत तक यह तट के करीब बसे शहरों, उसकी आबादी और बुनियादी ढांचे के लिए एक बड़ा खतरा बनकर उभरेगा| जिससे कई देशों पर इसका व्यापक असर पड़ेगा|
हाल ही में एक अन्य शोध जोकि वैज्ञानिक जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस द्वारा प्रकाशित किया गया है| उससे पता चला है कि सदी के अंत तक दुनिया में करीब 20 करोड़ लोग समुद्र के बढ़ते जल स्तर से प्रभावित होंगे। जबकि समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण अन्य 16 करोड़ लोगों पर बाढ़ का खतरा मंडराने लगेगा| इसका सबसे ज्यादा असर एशिया पर पड़ेगा| अनुमान है कि इन 20 करोड़ लोगों में से 70 फीसदी एशिया के आठ देशों के होंगे| जिनमें से करीब 4.3 करोड़ लोग चीन के होंगे| वहीं बांग्लादेश के 3.2 और भारत के करीब 2.7 करोड़ लोगों पर इसका असर पड़ेगा| इसके साथ ही वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और जापान पर भी इसका व्यापक असर होगा| ऐसे में उत्सर्जन में कमी लाना ही इससे बचने का सबसे बेहतर विकल्प है|