पलामू में रात-दिन के तापमान में भारी अंतर, रेगिस्तान बनने की ओर संकेत

1951 में पलामू क्षेत्र में 43 प्रतिशत जंगल होता था और आज केवल 12 फीसदी रह गया, नेचर कंजर्वेशन सोसायटी का अध्ययन
झारखंड के पलामू और इसके आसपास के क्षेत्र की मिट्टी का तेजी से क्षरण हो रहा है। Photo: wikimedia commons
झारखंड के पलामू और इसके आसपास के क्षेत्र की मिट्टी का तेजी से क्षरण हो रहा है। Photo: wikimedia commons
Published on

जलवायु परिवर्तन को लेकर झारखण्ड के पलामू की जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, वह काफी डरावनी है। पलामू क्षेत्र के पर्यावरणीय पहलुओं पर 1970 से नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी काम कर रही है।

सोसायटी के अध्यक्ष डीसी श्रीवास्तव का कहना है कि पलामू, गढ़वा, लातेहार यानी पूरा का पूरा पलामू क्षेत्र धीरे-धीरे रेगिस्तान बनने की ओर अग्रसर होते जा रहा है। उनका कहना है कि पलामू और इसके आसपास के इलाके में 1951 में 43 प्रतिशत वन क्षेत्र हुआ करता था और आज 2022 में यह घटकर केवल 12 प्रतिशत रह गया है।

जंगलों के कम होने से पत्थर दिखने लगे हैं। और इन पत्थरों को पिछले तीन दशक से गैर कानूनी तरीके से पत्थर माफियाओं द्वारा लगातार दोहन किया जा रहा है। ऐसे इलाके आधे से अधिक पहाड़ जमींदोज हो चुके हैं।

इसके चलते इस इलाके की मौसम में भारी परिवर्तन दिखाई देने लगा है। यह परिवर्तन जिले के आसपास के तापमान में भारी अंतर पैदा कर रहा है। पलामू में दिन और रात की गर्मी का आकलन करें तो पता चलता है कि उसमें बहुत बड़ा अंतर आ गया है। नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी का अध्ययन बताता है कि झारखंड के पलामू और इसके आसपास के क्षेत्र की मिट्टी का तेजी से क्षरण हो रहा है।

यह रेगिस्तान होने की पहली निशानी मानी जाती है। जिले के आसपास की मिट्टी का क्षरण यहां पहली बार हो रहा है।

डॉ श्रीवास्तव ने डाउन टू अर्थ से बातचीत करते हुए बताया कि पलमू में दिन और रात के तापमान में अंतर तेजी से बढ़ते जा रहा है, इसे अच्छे संकेत के रूप में नहीं देखा जा सकता। दिन में जहां गर्मी का तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस है तो रात में वही 18-20 डिग्री सेल्सियस रह जाता है, ऐसा केवल रेगिस्तानी इलाके में ही संभव है।

यह जगजाहिर है कि रेगिस्तानी इलाकों में दिन में जितना अधिक गर्म होता है, रात उतनी ही अधिक ठंडी जाती है। उन्होंने बताया कि हमने जिले और आसपास के तापमान के आंकड़े पिछले सात सालों से एकत्रित कर इनका विश्लेषण कर रहे हैं। इन्हीं आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर हमारा मानना है कि यह इलाका शनै: शनै: रेगिस्तान बनने की ओर अग्रसर हो रहा है।

क्षेत्र के एक और पर्यावणीय कार्यकर्ता सेकत चेटर्जी बताते हैं कि पिछले 37 सालों से मैं इस इलाके में काम कर रहा हूं। हमने यहां तक महसूस किया है कि जिस तरह से रेगिस्तानी इलाकों में बड़े चक्रवात आते हैं, यहां पर उस बड़े पैमाने पर तो नहीं हां छोटे-छोटे और कम समय में खत्म हो जाने वाले चक्रवात आए दिन यहां देखने को मिलते हैं।

श्रीवास्तव का कहना है कि पलामू में दिन और रात के तापमान में करीब 20 डिग्री सेल्सियस या उस से अधिक अंतर आ रहा है और यह कोई अच्छा संकेत की ओर इशारा नहीं करता। इतना अंतर तो रेगिस्तान इलाकों के तापमान में ही संभव होता है। उनका कहना है कि पूर्व में पलामू में दिन और रात के तापमान में अंतर 10 या फिर 12 डिग्री सेल्सियस का ही होता था, वहीं अब इतना बड़ा अंतर यह संकेत दे रहा है की पलामू रेगिस्तान बनने की और अग्रसर है।

सोसायटी ने अपने अध्ययन में यह भी अगाह किया है कि अगर इसी तरह से चलता रहा तो जलवायु परिवर्तन के कारण जो परिणाम सामने आएंगे वो काफी भयावह होगे। सबसे पहले इस तूफान का असर क्षेत्र के पड़वा से लेकर विश्रामपुर के इलाके में दिखेगा। अगर हम इस तबाही को रोकना चाहते है तो अभी भी हमारे पास समय है। यदि पहाड़ों को पत्थर माफिया से बचाकर उसे हरा-भरा कर दिया जाए तो आगामी तीन से पांच साल के भीतर तापतान के अंतर को कम किया जा सकता है।

ध्यान रहे कि पलामू के आसपास के जंगलों में खैर के वृक्ष बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं और इसकी अवैध कटाई बड़े पैमाने पर जारी है। खैर का पेड़ व्यापारिक दृष्टकोण से इसकी काफी लाभप्रद माना जाता है। हॉटकेक के नाम से मशहूर इस वृक्ष की लकड़ी से ही कत्था और गुटखा बनाया जाता है। वन विभाग ने अनुमान लगाया है कि इस इलाके के 80 फीसदी से अधिक कत्थे के वृक्ष अब खत्म हो गए हैं।

ध्यान रहे कि भूक्षरण को जैव विविधता और अर्थव्यवस्था के संदर्भ में भूमि की उत्पादकता में गिरावट के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह जलवायु और मानव प्रेरित कारकों सहित विभिन्न कारणों से होता है और देश के सभी राज्यों को प्रभावित कर रहा है। भारत में भूक्षरण भविष्य की खाद्य उत्पादकता और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनते जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान का संकट स्थिति को और विकराल बना सकता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने भी देश भर में बढ़ते रेगिस्तान पर अध्ययन किया है। उनके अनुसार राजस्थान, महाराष्ट्र और गुजरात में देश की करीब 50 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण से गुजर रही है। झारखंड में सर्वाधिक 68.77 प्रतिशत भूमि क्षरित हो चुकी है। वहीं 62 प्रतिशत क्षरित भूमि के साथ राजस्थान दूसरे स्थान पर है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in