पर्यावरण में आ रहे बदलावों को दरकिनार कर विकास की अंधी दौड़ में दौड़ रहे हिमाचल में प्राकृतिक आपदाएं साल दर साल बढ़ती जा रही हैं। प्राकृतिक आपदाओं की ज्यादातर घटनाएं किसी न किसी परियोजना स्थल के आस-पास घट रही हैं। हाल ही में हिमाचल प्रदेश में पिछले एक सप्ताह में 6 स्थानों में बादल फटे हैं। इन घटनाओं में 6 लोगों की मौत हुई है और 47 लोग अभी भी लापता हैं। हाल ही में घटी इन घटनाओं में 4 ऐसे स्थान थे जहां पर कोई न कोई जल विदुयत परियोजनाएं थीं।
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में पिछले एक वर्ष घटित हुई प्राकृतिक आपदाओं के घटना स्थलों का आकलन करें तो उसमें भी ज्यादातर घटनाएं किसी न किसी न किसी पावर प्रोजेक्ट या नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट के आस पास घटती हुई पाई गई है। जिससे विकास की परियोजनाओं को लेकर सवाल उठने शुरू हो गई हैं। पर्यावरणविद् और वैज्ञानिकों ने भी परियोजना स्थलों में परियोजनाओं के कारण वहां की पारिस्थितिकी में पड़े असर से आपदाओं को जिम्मेवार माना है। हिमालय नीति अभियान के संस्थापकों में से एके पर्यावरणविद कुलभुषण उपमन्यू ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया कि हाईड्रो पावर प्रोजेक्टस के बनने से उस क्षेत्र की पारिस्थितिकी में भारी बदलाव देखने को मिलते हैं।
पावर प्रोजेक्टस एरिया में जो डैम बनते हैं वहां पर मलबे और पानी के भीतर मलबे में लकड़ी और अन्य ऑर्गेनिक मैटर होते हैं वे धीरे-धीरे ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सड़ते रहते हैं जिससे मिथेन गैस उत्पन्न होती है, जो वहां के तापमान को सामान्य के मुकाबले कहीं अधिक बढ़ा देती है। इससे परियोजना क्षेत्रों में बादल फटने और लैंड स्लाइड जैसी आपदाएं अधिक आती हैं।
उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 1976 में जब पौंग डैम बना उसके बाद से उसके उपर के क्षेत्र की पारिस्थितिकी पूरी तरह बदल गई। उन्होंने बताया कि जहां पहले वहां रेनी डेज अधिक हुआ करते थे अब वहां पर वो घट गए हैं और एक साथ हैवी रेन के इवेंट बढ़ गए हैं।
2024 की आपदाएं
1 जनवरी से 31 जुलाई तक हिमाचल प्रदेश में 7 स्थानों में बादल फटने की घटनाएं हुई हैं। इसमें से 4 ऐसे स्थान थे जहां पर पावर प्रोजेक्ट्स थे। 25 जुलाई को मनाली के धुंधी में अंजनी महादेव नाले में बादल फटने के बाद बाढ़ आ गई थी, जिससे राष्ट्रीय राजमार्ग बंद हो गया था। इस स्थान पर 9 मेगावाट को पावर प्रोजेक्ट लगा हुआ है। इसके अलावा 31 जुलाई की रात हिमाचल में एक साथ चार स्थानों में बादल फटने की घटनाएं हुई। इसमें मलाणा पावर प्रोजेक्ट स्टेज 1 के डैम के पास बादल फटने से भारी बाढ़ आ गई और इससे मलाणा स्टेज वन के डैम फटने से निचले क्षेत्रों में भारी जलभराव से नुकसान हुआ है।
वहीं इसी रात शिमला के रामपुर क्षेत्र में झाकड़ी के समीप समेज में बादल फटने की घटना भी 6 मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट के पास में हुई। इस घटना में 2 लोगों की मौत हो गई और 34 लोग लापता हैं। जिनकी तलाश का काम जारी है। इसके अलावा 31 जुलाई को पार्वती वैली में तोष के पास भी बादल फटने से भारी नुकसान हुआ है और इस स्थान पर हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट पार्वती स्टेज टू है। इतना ही नहीं यदि पिछले साल और पूर्व मे घटित हुई प्राकृतिक आपदाओं को देखा जाए तो ये घटनाएं भी किसी न किसी पावर प्रोजेक्ट या राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ में होती पाई गई हैं। पिछले वर्ष कुल्लू मलानी और सैंज घाटी में आई भारी त्रासदी जान माल के साथ हजारों करोड़ की संपतियों का नुकसान उठाना पड़ा। इन त्रासदियों में अधिक नुकसान के पिछे भी मलाणा पावर प्रोजेक्ट, सैंज पावर प्रोजेक्ट, पार्वती पावर प्रोजेक्ट, लारजी पावर प्रोजेक्ट, भाखड़ा और पौंग डैम बड़े कारण थे।
जम्मू सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर सुनिल धर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हिमाचल के पहाड़ कमजोर पड़ गए हैं और मानवीय दखल जिसमें अवैज्ञानिक कटान, मिटट्ी की डंपिंग और अन्य कारणों से लैंडस्लाइड की घटनाएं अधिक देखने को मिल रही हैं।
हिमाचल प्रदेश में आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले हिमधारा कलेक्टिव की सह.संस्थापक मानसी अशर ने डाउट टू अर्थ को बताया कि जिन क्षेत्रों में परियोजनाओं के निर्माण के लिए बहुत अधिक पेड़ काटे जाते हैं, लैंड यूज बदला जाता है, भूमि को काटा जाता है। वहां पर छोटी सी घटना भी बड़ी आपदा का रूप ले लेती है। परियोजना स्थलों के आसपास की गई कटिंग और मिटटी की डंपिंग से नदी या पानी के स्त्रोत के बहाव में रूकावट आती है और जब भी बारिश होती है तो इससे वहां बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है। उनका कहना है कि किसी भी प्रोजेक्ट के बनने से पहले पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करना होता है,लेकिन उसे सही तरीके से नहीं किया जाता।
मानसी कहती हैं कि यदि अधिक बारिश की बात करें तो 31 जुलाई को सबसे अधिक बारिश पालमपुर क्षेत्र 212 एमएम हुई है। लेकिन वहां तो कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन कुल्लू, मनाली और रामपुर क्षेत्र में परियोजनाएं हैं वहां कम बारिश में भी बहुत अधिक नुकसान देखने को मिला है।
हिमाचल प्रदेश में 174 छोटी बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं हैं। जिनमें 11209 मेगावाट बीजली का उत्पादन हो रहा है। हिमाचल में 30 हजार मेगावाट बीजली पैदा होने की क्षमता है जिसे बढ़ाने के लिए प्रदेश की सरकार काम कर रही है।
लेकिन पिछले कुछ समय से प्रदेश में बढ़ रही प्राकृतिक आपदाओं को लोगों ने अब जल विद्युत परियोजनाओं से जोड़ना शुरू कर दिया है और पुराने अनुभवों को देखते हुए भविष्य में पावर प्रोजेक्टस की परियोजनाओं के खिलाफ मुखर हो रहे हैं। हिमाचल प्रदेश के मंडी, चंबा, किन्नौर, शिमला और लाहौल स्पीति जिलों में कई स्थानों पर पावर प्रोजेक्टस के खिलाफ आंदोलन भी देखने को मिल रहे हैं। राज्य में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के खिलाफ नो मीन्स नो कैंपेन चलाने वाले किन्नौर के युवा महेश नेगी कहते हैं प्रदेश और प्रदेश के बाहर भी कई स्थानों में पावर प्रोजेक्टों के कारण स्थानीय लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करने के साथ प्राकृतिक आपदाओं का दंश भी झेलना पड़ा है। वे कहते हैं कि हमारे किन्नौर में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की वजह से विनाश की स्थिति पैदा हो गई है इसलिए अब भविष्य में हम नए पावर प्रोजेक्ट को किन्नौर में शुरू करने का पूरजोर विरोध करते रहेंगे।
पिछले साल भी हिमाचल प्रदेश को भारी त्रासदी से गुजरना पड़ा था। पिछले चार वर्षाें में बरसात के दिनों में प्राकृतिक आपदाओं के क्रम में बढ़ोतरी के साथ नुकसान का आंकडा भी बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2021 में प्राकृतिक आपदाओं में 476 जानें गई थी और 1151 करोड़ की संपती का नुकसान हुआ था। वर्ष 2022 में 276 जानें और 939 करोड़ का नुकसान और पिछले वर्ष 12 हजार करोड़ रूपये का नुकसान और 441 की जानें चली गई थी। इस वर्ष अभी तक के मॉनसून सीजन में यह आंकड़ा 73 लोगों की जान जाने के साथ 648 करोड़ रूपये की संपती के नुकसान तक पहुंच चुका है।
पर्यावरण में आ रहे बदलावों को देखते हुए विशेषज्ञों ने राय दी है कि हिमाचल प्रदेश में परियोजनाओं के निर्माण से पहले उस स्थान की पारिस्थितिकी का अच्छे से आकलन करना चाहिए। इसके अलावा उस क्षेत्र के स्थानीय लोगों की भी राय ली जानी चाहिए। साथ ही पावर प्रोजेक्टस के निर्माण के लिए हाईकोर्ट के निर्देषों पर बनी अभय शुक्ला कमेटी की सिफारिशों को ध्यान में रखना चाहिए।