उत्तराखंड में भारी बारिश के बाद तबाही, जलस्तर की निगरानी तक नहीं कर रहा प्रशासन

ऋषिकेश में 434.6 मिमी, नीलकंठ में 244 मिमी, टिहरी के नरेंद्र नगर में 180.1 मिमी, चंपावत के टनकपुर में 124 मिमी, जौलीग्रांट में 109 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई
उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष एवं कोटद्वार की विधायक ऋतु खंडूरी भूषण टूटे हुए पुल के पास। फोटो : @RituKhanduriBJP / Twitter
उत्तराखंड विधानसभा की अध्यक्ष एवं कोटद्वार की विधायक ऋतु खंडूरी भूषण टूटे हुए पुल के पास। फोटो : @RituKhanduriBJP / Twitter
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टूटकर नदी में समाते घर, दरकते-टूटते पुल, सड़कों पर दौड़ता नदियों-गदेरों का पानी। उत्तराखंड के पौड़ी जिले की तलहटी में बसा कोटद्वार इस समय भारी बारिश की मार झेल रहा है। शिक्षक विमल ध्यानी याद करते हैं “8-9 अगस्त की रात हुई बारिश ने कोटद्वार में 17-18 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। यहां 12 घंटे में 277 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई। हमने ऐसी बारिश पहले नहीं देखी”।

कोटद्वार में भारी बारिश के चलते खोह नदी उफान पर है। नदी के तेज बहाव में किनारे बसे घरों का कटाव हो गया है। शहर की सड़कों पर गदेरों का पानी बह रहा है। विमल बताते हैं “बारिश में इस बार यहां बहुत नुकसान हुआ है। क्योंकि यहां आबादी ज्यादा है, अवैध कब्जा ज्यादा है, लोगों ने नदियों के ठीक किनारे घर बनाए हैं। कुछ घर तो ऐसे हैं कि इनमें झाड़ू लगाएं तो कचरा नदी में गिरेगा।”

कोटद्वार से विधायक और विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी भूषण कहती हैं “पहाड़ों में बादल फट रहे हैं और इसका असर तराई के इलाकों में हो रहा है। लोगों के घर टूट रहे हैं। हमें इस समय लोगों को बारिश से बचाना है।”

बारिश में आ रहे बदलाव को वह भी महसूस करती हैं। वह कहती हैं “8 अगस्त की रात कोटद्वार के नजदीक यमकेश्वर और दुगड्डा में बादल फटे थे। उस समय कोटद्वार में भी 3-4 घंटे इतनी भयंकर बारिश हुई कि लगा बादल यहीं फटा है। हैरत की बात थी कि शहर के एक कोने में बारिश हो रही थी और दूसरे कोने में बिलकुल नहीं हो रही थी। बादल फटने जैसी बातें हमने पहले कभी नहीं सुनी थी।”

“हमें लोगों को जागरूक करना होगा कि नदियों के किनारे घर न बनाएं। बदलती जलवायु के मुताबिक हमें घर,सड़कें और पुल समेत बुनियादी ढांचे को तैयार करना होगा”, विधानसभा अध्यक्ष अपने क्षेत्र में बारिश से हुए नुकसान को लेकर परेशानी जताती हैं।

गढवाल मंडल के तराई में जो स्थिति कोटद्वार की है, वैसे ही हालात कुमाऊं मंडल के तराई वाले क्षेत्र हल्द्वानी और उधमसिंह नगर में है। 8-9 अगस्त की भारी बारिश के बाद यहां सड़कों पर नदी की तर्ज पर पानी दौड रहा था। लोगों के घर रहने के लिहाज से असुरक्षित हो गए।

हल्द्वानी में गौला नदी तेज बहाव में बह रही है। जबकि काठगोदाम में कलसिया नाले का पानी लोगों के घरों में घुस गया है। जिससे मकान क्षतिग्रस्त होने और घरों को नुकसान पहुंचने की खबरें हैं।

उधमसिंह नगर जिला आपातकालीन परिचालन केंद्र के मुताबिक भारी बारिश और जलभराव के चलते सुरक्षा के लिहाज से सितारगंज और खटीमा के 99 परिवारों के 461 लोगों को प्राथमिक विद्यालयों में ठहराया गया है।

 केंद्रीय जल आयोग की वेबसाइट पर नैनीताल और उधमसिंह नगर के कई स्टेशन पर जलस्तर की निगरानी का ग्राफ उपलब्ध नहीं है।

यह समय नदियों के जलस्तर की निगरानी करने का था, ताकि लोगों को सही समय पर चेतावनी दी जा सके। केंद्रीय जल आयोग की बाढ़ की निगरानी करने वाली वेबसाइट पर नैनीताल के काठगोदाम और गर्जिया स्टेशन का जलस्तर डाटा उपलब्ध नहीं है। जबकि रामनगर बैराज का डाटा, 10 अगस्त को, सिर्फ 8 अगस्त तक की सूचना दे रहा है। उधमसिंह नगर को लेकर भी नदियों के जलस्तर का डाटा या तो उपलब्ध नहीं है या पुराना है। जबकि दोनों ही जिले भारी बारिश के चलते बढ़े पानी से जूझ रहे हैं।

8 अगस्त को मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून के आंकड़े

बदली-बदली बारिश

भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 9 अगस्त को भी राज्य के कहीं हिस्सों में भारी बारिश देखने को मिली। देहरादून जिले के ऋषिकेश में 434.6 मिमी, हरिपुर में 141 मिमी, जौलीग्रांट में 109 मिमी, रायवाला में 123 मिमी बारिश हुई। पौडी के नीलकंठ में 244 मिमी, यमकेश्वर में 133 मिमी, जबकि टिहरी के नरेंद्र नगर में 180.1 मिमी, चंपावत के टनकपुर में 124 मिमी, उधमसिंह नगर के गूलरभोज में 125 मिमी बारिश दर्ज की गई।

चंपावत जिले में सामान्य से 460% अधिक, बागेश्वर में सामान्य से 854% अधिक, पौड़ी में 374% अधिक, नैनीताल में 610% और उधमसिंह नगर में 763 प्रतिशत अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई।

मौसम विज्ञान केंद्र देहरादून की वेबसाइट के मुताबिक 8 अगस्त को देहरादून के सहस्त्रधारा में 251 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई, जबकि इस दिन देहरादून की कुल बारिश 9.9 मिमी रही।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर एंड पीपल के एसोसिएट कोऑर्निडेटर भीम सिंह रावत वर्षा से जुड़े इन आंकड़ों का अध्ययन कर रहे हैं।

वह कहते हैं “राज्य के कुछ पॉकेट्स में बादल फटने की तर्ज पर तेज बारिश होती है लेकिन जिला स्तरीय रिकॉर्ड में वह सामान्य बारिश के तौर पर दर्ज हो रही हैं। जैसा कि 8 अगस्त को देहरादून का डाटा दर्शाता है। इसी तरह राज्य में स्थानीय स्तर पर अतिवृष्टि की घटनाएं भी बढ़ती दिखाई दे रही हैं।

परन्तु पर्याप्त निगरानी के अभाव में उनका रिकॉर्ड कहीं भी नहीं रखा जा रहा है। जबकि जलवायु परिवर्तन के असर को समझने और रोकथाम के समुचित उपाय के लिए राज्य में वर्षा जल मापन तंत्र और दस्तावेजीकरण प्रणाली में अत्यधिक सुधार की आवश्यकता है”। 

जलवायु प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा

द ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन जैसे अचानक बारिश, भूस्खलन, बाढ़ और नदियों का कटाव देखते हुए भविष्य के मकानों, सड़कों, पुलों और इमारतों को जलवायु प्रतिरोधी बनाए जाने की जरूरत बढ़ती जा रही है।

उत्तराखंड में भारी बारिश से मकान, दुकानें, राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग, गांवों के मोटर मार्ग और पुलों के टूटने की सूचनाएं आ रही हैं। उधमसिंह नगर में 461 लोगों को प्राथमिक विद्यालयों में रहने के लिए आना पड़ा क्योंकि उनके घर सुरक्षित नहीं रहे। 

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण  के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला कहते हैं, “पिछले कुछ वर्षों में बारिश से होने वाला आर्थिक नुकसान बढ़ा है, लेकिन इसका डाटा उपलब्ध नहीं है। मॉनसून में नुकसान से जुड़े आंकड़े, कुल दिए गए मुआवजे के आधार पर होते हैं। यदि 10 घर टूटे तो उसके एवज में कितना मुआवजा देना पडा। मॉनसून के दौरान हुए आर्थिक नुकसान का आकलन और उसका रिकॉर्ड रखने की व्यवस्था अभी तक नहीं है। हालांकि विशेष परिस्थितियों जैसे 2013 की केदारनाथ आपदा या 2017 में भारी बारिश से हुए नुकसान की रिपोर्ट तैयार की गई थी।”

“आर्थिक नुकसान बढ़ने की वजह गलत तरीके से या गलत जगह किए गए निर्माण कार्य भी हैं। देहरादून के सहस्त्रधारा में बारिश से नुकसान हुआ है क्योंकि लोगों ने नदी के अंदर घर बना दिया है। नदी कभी न कभी अपने रास्ते पर लौटेगी और फिर नुकसान बढेगा। पर्वतीय क्षेत्रों में लोग सड़क किनारे मकान या दुकान आर्थिक मजबूरी के चलते बनाते हैं। उन्हें पता है कि वहां आमदनी होगी। तो वो सोचा-समझा जोखिम लेते हैं”, रौतेला आगे कहते हैं।

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