बीमा कपंनी ने हरियाणा के सात जिलों के किसानों की फसल का प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत बीमा करने से अपने हाथ पीछे खींच लिए। इसकी वजह इन जिलों में बाढ़ व सूखे की स्थिति बनी है। अब जब खरीफ की फसल तैयार होने को है तो किसानों को इस बात का पता चला कि उनके बैंक खाते से राशि काटे जाने के बाद भी उनकी फसल का अभी तक कोई बीमा नहीं हुआ है।
खरीफ फसल के बीमा के लिए हरियाणा सरकार ने किसानों के बैंक खातों से 31 जुलाई से पहले ही प्रीमियम की राशि काट ली थी। अगस्त महीने के अंतिम दिनों में कृषि विभाग हरियाणा ने फसल बीमा करने वाली कंपनियों के लिए टेंडर निकाले, लेकिन, कलस्टर-2 में आने वाले जिलों अंबाला, हिसार, गुरुग्राम, जींद, करनाल, महेंद्रगढ़ और सोनीपत के किसानों की फसल का बीमा करने से कंपनी ने साफ इंकार कर दिया।
इंश्योरेंस कंपनी और सरकार इसकी वजह छिपा रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि इंश्योरेंस कंपनी ने हरियाणा में किसानों की फसल बर्बाद होते हुए देख ली और इसलिए बीमा करने से इंकार कर दिया। जुलाई महीने में कुछ जिले बाढ़ की चपेट में आ चुके थे और अधिकतर फसल बर्बाद हो चुकी थी, जबकि अगस्त के महीने में रिकॉर्ड सूखे के कारण बची-खुची फसलों को फिर से नुकसान हो गया।
देखा जाए तो हरियाणा सरकार को बीमा कराने के लिए टेंडर मई में ही फाइनल कर लेना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया। ज्यादा से ज्यादा प्रीमियम एकत्रित करने के लिए 31 जुलाई तक किसानों के बैंक खातों से राशि काटी। फिर अगस्त के अंतिम सप्ताह में बीमा कराने की याद आई। ऐसे में बीमा कंपनी पहले ही किसान की तबाही का मंजर देख चुकी थी। जिसके कारण उन्हें बीमा करने में फायदा कम नुकसान अधिक महसूस हुआ और केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना फसल बीमा योजना से अपने हाथ पीछे खींच लिए।
भारतीय किसान यूनियन, चढूनी के युवा प्रदेश उपाध्यक्ष सतीश बिठमड़ा कहते हैं कि सरकार और कृषि विभाग तो बीमा कंपनी के एजेंट बने हुए हैं। इसलिए किसान की इजाजत के बिना ही उसे खाते से प्रीमियम की राशि काट लेते हैं। बीमा कंपनी के हाथ खड़े करने से सरकार और बीमा कंपनी की मिलीभगत उजागर हो गई है। फसल बीमा को बंद कर देना चाहिए, नुकसान पर सरकार की मुआवजा प्रदान करे।
हरियाणा में खरीफ की फसल के तौर पर मुख्य तौर पर धान, कपास, बाजरा की खेती होती है। इनमें अंबाला व करनाल जिले में बाढ़ का अत्यधिक असर रहने से धान को काफी नुकसान हुआ। जबकि, हिसार, गुरुग्राम, जींद, महेंद्रगढ़ व सोनीपत में सूखे का प्रभाव रहा। इस बार हाइब्रिड बाजरे में पहली बार सुंडी की बीमारी आई, जिससे 20 प्रतिशत तक फसल को नुकसान है।
धान भी पत्ता लपेट बीमारी की चपेट में आया और इसका उत्पादन भी 20 प्रतिशत तक गिरने का अनुमान है। कपास में भी गुलाबी सुंडी का प्रभाव देखने को मिला। महेंद्रगढ़ व हिसार जिले में कपास को बड़े नुकसान का अनुमान है। कई जगह 85 प्रतिशत फसल गुलाबी सुंडी से प्रभावित है, जबकि 50 प्रतिशत तक फसल बर्बाद हो चुकी है।
तीन साल के करीब 4 हजार करोड़ बकाया
हरियाणा के किसानों का पिछले 3 साल का करीब 4 हजार करोड़ रुपए का क्लेम बीमा कंपनियों की ओर बकाया है। सबसे ज्यादा प्रभावित सिरसा और फतेहाबाद जिला है, जहां आए दिन धरने-प्रदर्शन चलते रहते हैं। बीमा क्लेम के लिए कोर्ट तक मामले पहुंच चुके हैं तो प्रदेश सरकार जल्द सैटलमेंट होने की बात कहती नजर आती है।
युवा किसान अशोक दनोदा कहते हैं कि बीमा योजना के तहत पूरे गांव को एक ईकाई माना जाता है। जबकि, सच तो यह है कि किसी भी गांव में सारी फसल एक जैसी हो ही नहीं सकती। हमारे दनोदा गांव में 10 हजार एकड़ जमीन है, जिसमें से ढाई हजार एकड़ फसल खराब हो गई है। लेकिन, पूरे गांव की फसल खराब नहीं हुई, इसलिए बीमा कंपनी इनका क्लेम पास नहीं करेगी। जो कि गलत है।
पुराना तरीका सही
विशेषज्ञों का कहना है कि फसल खराब होने पर सरकार की ओर से किसानों को मुआवजा देने का जो प्रावधान था, वह सही था। आईसीएआर-आईएआरआई के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डॉ वीरेंद्र सिंह लाठर कहते हैं कि सर छोटूराम ने तत्कालीन पंजाब सरकार में 1938 में किसानों को बाढ़, सूखा, बीमारी आदि आपदा से फसल को होने वाले नुकसान की भरपाई का कानून बनवाया था। हरियाणा और पंजाब के किसानों को इसी के तहत फसल नुकसान की एवज में राज्य सरकार भरपाई करती रही हैं। लेकिन, खुद को बचाने के लिए केंद्र सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लेकर आ गई, जिससे किसानों से प्रीमियम लिया जाने लगा, जो सरासर गलत है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की महासचिव एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा कहती हैं कि हरियाणा सरकार के संरक्षण के कारण बीमा कंपनियों ने फसल बीमा के नाम पर अकेले हरियाणा से 55 हजार करोड़ रुपए से अधिक की कमाई की है। हरियाणा सरकार किसानों से प्रीमियम ले चुकी, लेकिन अब बीमा न होने से किसान खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। किसानों को प्रदेश सरकार व बीमा कंपनियों की मिलीभगत व करतूत समझ आने लगी है। विश्वासघात करने वाली बीमा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई जरूर होनी चाहिए।
वहीं, कृषि मंत्री जेपी दलाल का कहना है कि किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है, सरकार उनके साथ खड़ी है। बीमा कंपनी पीछे हटी हैं, लेकिन सरकार पीछे नहीं हट रही। सरकार उनकी फसल का बीमा करेगी। प्रीमियम राशि में भी कोई बदलाव नहीं होगा। किसी किसान को दिक्कत नहीं आने दी जाएगी।