हिमाचल प्रदेश के गांव उर्नी में मकानों में दरारें आई हुई हैं। फोटो: रोहित पराशर
हिमाचल प्रदेश के गांव उर्नी में मकानों में दरारें आई हुई हैं। फोटो: रोहित पराशर

हिमाचल से ग्राउंड रिपोर्ट: हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की भेंट चढ़ा एक गांव!

हिमाचल प्रदेश के इस गांव के नीचे हाइड्रो प्रोजेक्ट की चार टनल बिछाई गई हैं
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हिमाचल प्रदेश के लिए मानसून सीजन 2021 बेहद कष्टदायक रहा है। इस दौरान हुई दुर्घटनाओं में 481 लोगों की जान चली गई, जबकि 13 लोग लापता हैं। बढ़ती दुर्घटनाओं का कारण जानने के लिए डाउन टू अर्थ की टीम हिमाचल के कुछ इलाकों में गई। पहली रिपोर्ट में अपना पढ़ा कि 28 लोगों की मौत का कारण बने निगलसुरी भूस्खलन का कारण क्या रहा? पढ़ें, इससे आगे की रिपोर्ट - 

हिमाचल प्रदेश में बन रहे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की वजह से किस तरह वहां आपदाएं बढ़ी हैं, इसका बड़ा उदाहरण है, किन्नौर जिले का गांव उरनी।

उरनी ग्राम पंचायत चागांव ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है और सतलुज नदी के दायें किनारे खड़ी चट्टान पर बसा हुआ है। स्थानीय भाषा में इसे ढांक कहते हैं। यहां लगभग डेढ़ दशक से भूस्खलन सक्रिय है।

2009 में यहां करचम वांगटू हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बनना शुरू हुआ था। तब से इस गांव के लोगों की मुसीबतें शुरू हो गई थी। सतलुज नदी पर बने इस प्रोजेक्ट की क्षमता 1091 मेगावाट है।

इसकी चार टनल (फ्लशिंग टनल, हेड रेस टनल और दो एडिट टनल) इस गांव के ठीक नीचे से गुजर रही हैं। 2013 में हुई भारी बारिश के कारण यहां भूस्खलन की घटना हुई। जो लगभग 600 मीटर लंबा और 300 मीटर चौड़ा था।

उरनीके नीचे से गुजर रहा नेशनल हाइवे-पांच पूरी तरह बह गया। जिसे बाद में सतलुज के दूसरी ओर शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन उरनी गांव को उसके हाल पर छोड़ दिया गया।

इस भूस्खलन में पूरा गांव तबाह हो गया। गांव के लगभग 20 परिवारों के सेब के बगीचे ढह गए। उरनी गांव के रामानंद नेगी कहते हैं कि उनकी आंखों के सामने सब कुछ ढह गया। ये तो शुक्र है कि किसी की जान नहीं गई, लेकिन नीचे रह रहे चार परिवारों के घर भी ढह गए।

वह कहते हैं कि तब से ही पूरा गांव डरा सहमा सा रहता है। खासकर मानूसन के दिनों में जरा सी तेज बारिश उन्हें डरा देती है। वह अपने घर की दीवारों पर आई दरारें दिखाते हुए कहते हैं कि जब उनके गांव के नीचे से टनल बिछाई जा रही थी तो उनसे मंजूरी लेना तो दूर उन्हें बताया तक नहीं गया। जब विस्फोटों के कारण हमारे घर हिलने लगे तब प्रशासन से शिकायत की गई, लेकिन उनकी एक नहीं सुनी गई।

77 वर्षीय रामानंद बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट ने गांव वासियों की रोजी रोटी को भी प्रभावित कर दिया। बागीचों में लगातार दरारें बढ़ रही हैं। सिंचाई और पीने के पानी के लिए हम लोगों चश्मों पर निर्भर थे, लेकिन जब से टनल बिछाई गई हैं, चश्मे सूखते जा रहे हैं। दिक्कत यह है कि हमारी सरकार ही हमारी बात नहीं सुनती।

रामानंद कहते हैं कि हम इंसानों द्वारा बनाई गई आपदा के शिकार हैं, लेकिन प्राकृतिक आपदा बता कर हमें मुआवजा तक नहीं दिया गया। सरकार ने प्राकृतिक आपदा का शिकार शिकार बता कर हमें राहत राशि प्रदान कर दी। जो बहुत कम थी, जबकि हम मुआवजे की मांग कर रहे थे।

वह कहते हैं कि उरनी ही नहीं, आसपास के चार और गांव (चागांव, यूला, मीरो और रुनांग) को इन टनल से नुकसान पहुंचा है। नेशनल हाईवे को तो दूसरी ओर शिफ्ट कर दिया गया, लेकिन इन गांवों के लोगों के बारे में नहीं सोचा गया।

उरनीके ही दीपक कुमार बताते हैं कि उन्होंने अपना घर 2013-14 में बनाया था, लेकिन घर बनाने के एक साल के दौरान ही उनके घर की दीवारों पर दरारें आ रही हैं। बड़ी मेहनत से घर बनाया था, अब इसे देख कर रोना आता है।

रामानंद कहते हैं कि जब से हाइड्रो प्रोजेक्ट बना है, उसके बाद से आसपास के चश्मे (पानी के स्त्रोत) सूख गए हैं। इसका असर हमारी खेती पर पड़ा है। खेतों के लिए पानी नहीं मिल पा रहा है।

इसके साथ-साथ मौसम ने भी ग्रामीणों की आर्थिकी को प्रभावित किया है। रामानंद कहते हैं कि पहले उनके गांव में दिसंबर-जनवरी में बर्फ पड़ा करती थी, लेकिन अब फरवरी के बाद ही बर्फ पड़ती है, जो मजबूत नहीं होती। इस वजह से उनकी मुख्य फसल सेब प्रभावित हो रही है।

उरनी और आसपास के गांवों के लोग भी किन्नौर में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के खिलाफ चल रहे आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। रामानंद कहते हैं कि हमारे साथ जो हुआ, वो किन्नौर के दूसरे इलाके के लोगों के साथ न हो, इसलिए हम किन्नौर के युवाओं द्वारा शुरू किए गए आंदोलन के साथ हैं।

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