पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश बनने से 13 महीने और आम चुनाव से करीब एक महीना पहले यह देश विश्व के सबसे जानलेवा चक्रवाती तूफान का गवाह बना था। इस चक्रवात ने पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सैन्य शासन के खिलाफ गहरा असंतोष पैदा किया। काफी हद तक इसी चक्रवात के परिणामस्वरूप शेख मुजिबुर रहमान की आवामी लीग को दिसंबर 1971 के आम चुनाव में प्रचंड जीत मिली। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस के मॉडर्न एशियन स्टडीज जर्नल में सितंबर 2020 में प्रकाशित श्रावनी बिश्वास और पैट्रिक डली के अध्ययन के अनुसार, “चक्रवात ने पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्तता की मांग को और तेज किया।” इसे द ग्रेट भोला चक्रवात के रूप में जाना जाता है। 8 नवंबर 1970 को यह चक्रवात बंगाल की खाड़ी में बनना शुरू हुआ और 12-13 नवंबर को बांग्लादेश के तटीय क्षेत्र से टकराया।
इस बेहद शक्तिशाली चक्रवात के कारण 115 मील प्रति घंटे की गति से हवा चली। हरिकैन साइंस के अनुसार, “चक्रवात ने समुद्र में 20 फीट ऊंची लहरें पैदा कीं। मौसम विज्ञानी चक्रवात को बांग्लादेश की ओर बढ़ते देख रहे थे लेकिन उस समय तटीय और गंगा डेल्टा के निचले मैदानों में रहने वाले लोगों को सचेत करने की व्यवस्था ने होने से लोगों को सतर्क होने का अवसर नहीं मिला, नतीजतन 3-5 लाख लोगों को जान गंवानी पड़ी। चक्रवात से समय बहुत से लोग नींद में थे।
जून 1971 में बुलेटिन ऑफ अमेरिकन मेट्रोलॉजिकल सोसायटी जर्नल में प्रकाशित नील एल फ्रेंक और एसए हुसैन के अध्ययन के अनुसार, मृतकों का शुरुआती अनाधिकारिक अनुमान 10 लाख था जो व्यवहारिक नहीं लगता क्योंकि बहुत से लापता लोग बाद में लौट आए थे। उन्होंने अपने अध्ययन में मृतकों की संख्या 3 लाख बताई है।
बांग्लादेश हमेशा से चक्रवाती तूफानों के प्रति संवेदनशील रहा है क्योंकि इसका 35 प्रतिशत क्षेत्र समुद्र से 6 मीटर (20 फीट) से भी कम ऊंचाई पर है और इसका 20 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र हर साल बाढ़ में डूब जाता है। साथ ही इसका 575 किलोमीटर तटीय क्षेत्र, इसे चक्रवाती तूफानों का आसान शिकार बनाता है। यह देश साल में औसतन 5 ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात झेलता है। द ग्रेट भोला चक्रवात बांग्लादेश ही नहीं दुनिया के सबसे भीषण चक्रवातों में एक माना जाता है। इसने बांग्लादेश को 490 मिलियन डॉलर (2009 की गणना) की क्षति पहुंचाई। हरिकैन साइंस के मुताबिक, चक्रवात ने क्षेत्र के 85 प्रतिशत घरों को उजाड़ दिया।
ताजुमुद्दीन इलाके की 45 प्रतिशत आबादी यानी 1,67,000 लोग चक्रवात की भेंट चढ़ गए। क्षेत्र 77,000 में से 46,000 मछुआरे चक्रवात में मारे गए और जो जिंदा बचे, वे बेहद गंभीर रूप से जख्मी हो गए। मरने वालों में करीब 30 बच्चे और 20 प्रतिशत बुजुर्ग थे। अनुमान है कि तटीय क्षेत्र का 65 प्रतिशत मछली उद्योग नष्ट हो गया। इस घटना के बाद प्राकृतिक आपदाओं से जानमाल के नुकसान को कम करने के लिए 1971 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के ट्रॉपिकल साइक्लोन प्रोग्राम (टीसीपी) की शुरुआत हुई। बाद के वर्षों में भले ही पूर्वानुमान प्रणाली में सुधार हुआ लेकिन जलवायु परिवर्तन के चलते ऐसे चक्रवातों की तीव्रता बढ़ गई।