वित्त मंत्रालय का अंदेशा, अल नीनो सक्रिय होने से घट सकती है फसलों की पैदावार

फरवरी में अप्रत्याशित गर्मी ने रबी की फसल को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है, वहीं अल नीनो की भविष्यवाणी खरीफ पर भारी पड़ सकती है
वित्त मंत्रालय का अंदेशा, अल नीनो सक्रिय होने से घट सकती है फसलों की पैदावार
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एक ओर जहां फरवरी से पड़ रही अप्रत्याशित गर्मी ने रबी की फसलों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया है, वहीं दूसरी ओर आगामी मॉनसून सीजन में अल नीनो की आशंका के चलते खरीफ की फसलों को भी नुकसान पहुंचने का अंदेशा जताया जा रहा है।

केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इस आशंका को और मजबूती प्रदान कर दी है। 23 फरवरी 2023 को वित्त मंत्रालय द्वारा तैयार की जाने वाली मासिक आर्थिक रिपोर्ट में अंदेशा जताया गया है कि प्रशांत क्षेत्र में अल नीनो की वापसी की भविष्यवाणी की जा रही है, जिससे भारत में आगामी मॉनसून कमजोर रह सकता है।

इसका मतलब है कि आने वाले रबी के सीजन में उत्पादन कम रहेगा और खाद्य वस्तुओं की कीमतें उच्च रहेंगी।

अब तक सरकार यह मानती रही थी कि रबी के मौसम में बंपर उत्पादन होगा। कृषि मंत्रालय की ओर से कृषि वर्ष 2022-23 के दूसरे अग्रिम अनुमान में 11 करोड़ 21 लाख टन गेहूं के उत्पादन का दावा किया गया था, लेकिन उसके बाद से लगातार बढ़ती गर्मी की वजह से सबसे अधिक गेहूं को नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है। बावजूद इसके सरकार नुकसान की बात नहीं स्वीकार कर रही थी।

हालांकि कुछ प्राइवेट एजेंसियां रबी सीजन में फसलों के नुकसान को लेकर अनुमान जारी करने लगी हैं। स्वतंत्र एनालिटिक्स एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर मार्च तक तापमान में इसी तरह की बढ़ोतरी होती रही तो गेहूं की पैदावार पर असर पड़ सकता है। या तो गेहूं की पैदावार पिछले रबी सीजन के स्तर पर रहेगी या उससे भी कम हो सकती है।

क्रिसिल ने राज्यवार ब्यौरा देते हुए कहा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में समय पर बुआई होने के कारण गेहूं पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं की फसल प्रभावित हो सकती है।

पंजाब और हरियाणा में चूंकि इस समय गेहूं में फूल आने की अवस्था है और अगेती गेहूं में दूधिया अवस्था में है। दोनों ही अवस्था में अधिक तापमान फसल के लिए नुकसानदायक हो सकता है। क्रिसिल ने मध्य प्रदेश और बिहार में भी गेहूं को नुकसान पहुंचाने की आशंका जताई है। 

वहीं जिन इलाकों में रबी सीजन में धान की खेती की जाती है, वहां भी धान की पैदावार कम रहने की आशंका जताई है। इस मामले में तमिलनाडु एक बड़ा उदाहरण है। 

यहां यह समझना जरूरी है कि आखिर अल नीनो किस तरह आगामी मॉनसून सीजन को प्रभावित कर सकता है। अल नीनो क्या है? यहां जानें। 

अल नीनो के दौरान, मध्य और पूर्वी भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में सतह का पानी असामान्य रूप से गर्म होता है। पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ती हैं और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में रहने वाली गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है। इस वजह से मॉनसून के दौरान बारिश कम होती है।

हालांकि अभी भारतीय एजेंसियां यह नहीं मान रही हैं कि इस साल अल नीनो सक्रिय होगा, लेकिन आशंका से पूरी तरह इंकार भी नहीं कर रही हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अप्रैल तक ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि अल नीनो सक्रिय होगा या नहीं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि हमें इस वर्ष अल नीनो के लिए तैयार रहना चाहिए। 

लेकिन अगर अल नीनो सक्रिय हो गया तो पहले से ही संकट में चल रही भारत की अर्थव्यवस्था के लिए नई चुनौती खड़ी हो जाएगी। खासकर देश को एक अभूतपूर्व खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।  

यहां यह उल्लेखनीय है कि यह लगातार तीसरा वर्ष होगा, जब किसानों को लगातार मौसम की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सबसे अधिक दिक्कत उन किसानों को होगी, जिनकी खेती पूरी तरह से मॉनसूनी बारिश पर टिकी रहती है। क्योंकि उनके पास सिंचाई के कोई अन्य साधन नहीं हैं।

भारत में कुल बुआई क्षेत्र 13.942 करोड़ हेक्टेयर है। इसमें से लगभग 55 प्रतिशत क्षेत्र अभी भी बारिश पर ही निर्भर है। वैसे ही पिछले कुछ सालों में मॉनसून के दौरान बारिश कम हो रही है, ऐसे में अल नीनो की वजह से बारिश और कम हुई तो देश में एक बड़ा खाद्य संकट खड़ा हो सकता है, जिसकी आशंका वित्त मंत्रालय ने जाहिर कर दी है।

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