चार राज्यों में सूखे जैसे हालात, तो क्यों नहीं की जा रही है सूखे की घोषणा?

केंद्र सरकार के राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र के मुताबिक चार राज्यों के 91 जिलों के 700 से अधिक ब्लॉकों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं
फाइल फोटो
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देश के चार राज्यों में बारिश की कमी के चलते खरीफ की बुआई बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद आखिर क्यों राज्य सरकारें सूखे की घोषणा करने से कतरा रही हैं?

हालांकि आठ सितंबर 2022 को उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी जिलों में सूखे की स्थिति का सर्वे करने का निर्देश दिया है और तब तक ट्यूबवेल के बिलों की वसूली पर रोक लगा दी गई है, लेकिन जून से शुरू हुए खरीफ सीजन के लगभग तीन माह बाद उठाया गया यह कदम अब रस्म अदायगी जैसा लग रहा है।

केंद्र सरकार की एजेंसी महलानोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र की रिपोर्ट में माना गया है कि उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में 323 ब्लॉक सूखे से प्रभावित हैं, जबकि 382 ब्लॉक ऐसे हैं, जो सूखा संभावित हैं।

यहां पाठकों के लिए यह जानना जरूरी है कि 2012 में इस केंद्र की स्थापना, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित अत्याधुनिक तकनीकों और पद्धतियों का उपयोग करके मौसमी फसलों पूर्वानुमान और सूखे की स्थिति का आकलन करने के लिए किया गया था।

राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा है कि जिन ब्लॉकों में वर्षा आधारित सिंचाई होती है, वहां पर फसलों की स्थिति में सुधार की संभावना सीमित है। बेशक केंद्र ने सरकारी संयमित भाषा का इस्तेमाल किया है, लेकिन इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन चार राज्यों में खरीफ सीजन की फसल की क्या स्थिति रहने वाली है।

एक बड़ा राज्य होने के कारण उत्तर प्रदेश में हालात बेकाबू होने पर राज्य सरकार को सूखे के सर्वे के आदेश जारी करने पड़े। फसल पूर्वानुमान केंद्र की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश में 31 जिलों के 71 ब्लॉक में प्रभावित हैं, जबकि 101 ब्लॉक प्रभावित हो सकते हैं।

बारिश की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में 1 जून से लेकर 8 सितंबर के दौरान सामान्य से 46 प्रतिशत कम बारिश हुई है। प्रदेश में इस अवधि के दौरान सामान्य तौर पर 647.3 मिलीमीटर बारिश होती है, लेकिन इस साल 348.5 मिमी ही बारिश हुई है।

राज्य के 75 में से केवल आठ जिले हैं, जहां सामान्य बारिश रिकॉर्ड की गई है। जबकि 46 जिलों में सामान्य से कम और 20 जिलों में सामान्य से बहुत कम (60 प्रतिशत से भी कम) बारिश हुई है।

केवल एक जिले में सामान्य से अधिक बारिश हुई है। राज्य के फरूखाबाद में सामान्य से 79 प्रतिशत बारिश कम हुई है, जबकि गाजियाबाद में 80 प्रतिशत, गौतमबुद्ध नगर में 78 प्रतिशत, रामपुर में 73 प्रतिशत, कुशी नगर में 70 प्रतिशत, बागपत में 69 प्रतिशत, संत कबीर नगर में 65 प्रतिशत, मऊ में 62 प्रतिशत, गोंडा में 63 प्रतिशत बारिश कम रिकॉर्ड की गई है।

हालात सबसे ज्यादा झारखंड के खराब हैं। दो सितंबर 2022 तक के आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में पिछले साल के मुकाबले धान की रोपाई लगभग 55 प्रतिशत और दलहन की बुआई 30 प्रतिशत कम हुई है। झारखंड में 1 जून से लेकर 8 सितंबर 2022 के दौरान सामान्य बारिश से 26 प्रतिशत बारिश कम हुई है।

यहां सामान्य बारिश का आंकड़ा 866.2 मिलीमीटर है, लेकिन अब तक 640.3 मिमी बारिश हुई है। लेकिन राज्य के कुल 24 में से केवल 7 जिलों में ही सामान्य बारिश हुई है, जबकि 15 में सामान्य से कम और दो जिलों में सामान्य से बहुत कम बारिश हुई है।

मौसम पूर्वानुमान केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड के 17 जिलों के 61 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं और 56 ब्लॉक सूखा संभावित स्थिति में हैं।

इसी तरह बिहार के 32 जिलों के 136 ब्लॉक सूखा प्रभावित हैं, जबकि 162 जिलों में सूखे की संभावना है। पश्चिम बंगाल में 11 जिलों के 55 ब्लॉक प्रभावित हैं, जबकि 63 संभावित हैं।

इन चारों राज्यों में खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान का रकबा बहुत अधिक है और चूंकि धान को पानी बहुत अधिक जरूरत होती है, इसलिए किसान धान की बुआई नहीं कर पाए हैं। बल्कि इन राज्यों में जहां बारिश हुई भी है तो जुलाई के बाद हुई है। जो कि धान की फसल बहुत लाभदायक नहीं होती।

डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर व विज्ञानी अब्दुस सत्तार बताते हैं कि धान की रोपाई का सबसे अनुकूल वक्त 15 जुलाई तक ही होता है। इस अवधि तक रोपाई से बढ़िया उत्पादन होता है। अगस्त में भारी बारिश की वजह से धान को नुकसान होने का अंदेशा रहता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश में जहां किसानों ने धान की फसल लगा ली थी, वहां फसल सूख कर खराब हो गई है। धान की खराब फसल का आंकड़ा 10 लाख हेक्टेयर बताया जा रहा है।

अब सवाल उठता है कि जुलाई में जब इन राज्यों में बारिश की भारी कमी थी और किसान धान की फसल बिल्कुल भी नहीं लगा पाए थे तो राज्य सरकारों ने सूखे की घोषणा क्यों नहीं की?

इसकी बड़ी वजह यह है कि सूखे के हालातों से निपटने के लिए राज्य सरकार को खुद वित्तीय इंतजाम करने होंगे। 7 सितंबर 2022 को कृषि मंत्रालय द्वारा रबी सीजन की रणनीति तैयार करने के लिए बुलाई गई बैठक में कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग के संयु्क्त सचिव (सूखा प्रबंधन) द्वारा एक प्रस्तुति दी गई।

इसमें बताया गया कि सूखे की घोषणा, राहत और सूखे का प्रभाव कम करने की जिम्मेवारी राज्य सरकारों की है। राज्यों को राज्य आपदा रिस्पांस फंड और राज्य आपदा न्यूनीकरण कोष में से राहत प्रदान करनी होगी।

केंद्र हालातों की निगरानी करेगा और समीक्षा करेगा और जरूरत पड़ने पर ही राज्य सरकार की मदद करेगा। राष्ट्रीय आपदा रिस्पोंस फंड या राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण फंड का इस्तेमाल तब ही किया जाएगा, जब हालात बहुत गंभीर हो जाएंगे।

दरअसल दिसंबर 2016 में प्रकाशित सूखा प्रबंधन के संशोधित मैन्युअल (नियमावली) की वजह से ये हालात पैदा हुए हैं। इस नियमावाली के तहत सूखा प्रबंधन के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले केंद्र के दायरे को सीमित कर दिया गया था।

इससे पहले सूखा प्रबंधन नियमावली 2009 के तहत राज्य सरकारों को केवल दिशानिर्देश दिया गया था, जो राज्यों के लिए अनिवार्य नहीं था। इसके अलावा संशोधित नियमावली में 'मध्यम' सूखा श्रेणी को हटा दिया गया। जिसका मतलब है कि सूखा प्रभावित क्षेत्रों को 'सामान्य' और 'गंभीर' के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा और केवल 'गंभीर' सूखे की स्थिति में, कोई राज्य राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (एनडीआरएफ) से केंद्रीय सहायता के लिए पात्र होगा।

उस समय कर्नाटक सहित कुछ राज्यों ने 2016 की संशोधित नियमावली का विरोध भी किया था। यही वजह है कि राज्य सरकारें सूखे की घोषणा से कतरा रही हैं। अब देखना यह है कि अगले सप्ताह उत्तर प्रदेश सूखे की घोषणा करती है या नहीं?

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